कामरेड धनवंतरि रियासत जम्मू और कश्मीर के एकमात्र मात्र ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्होंने देश आजाद करवाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी थी और काले पानी की सजा पाई। कामरेड धनवंतरि का जन्म सात मार्च १९०२ को जम्मू शहर के काली जन्नी मोहल्ले में कर्नल दुर्गादत्त के घर हुआ था। पढ़ने के लिए वह जब लाहौर गए तो नेशनल कालेज में उनका परिचय शहीद भगत सिंह, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों के साथ हुआ। उन्होंने कई कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। काकोरी ट्रेन कांड, वायसराय की ट्रेन पर बम फेंकने और सांडर्स मर्डर के में सक्रिय भागीदारी के कारण उनको सजा-ए-मौत सुनाई गई, जिसको बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। उन्हें सन १९३० में गिरफ्तार किया गया और १९३३ में कालापानी भेज दिया गया। वहां पर उन्होंने खुशी राम मेहता और शिव वर्मा के साथ मिल कर लंबी भूख हड़तालें की और यातनाएं सहीं।
सन १९३९ में उनको रिहा किया गया लेकिन पुलिस उनका पीछा करती थी। १९४० में उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया और १९४६ तक जेल में रखा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उनके नाम से पंजाब में वारंट जारी होते रहे। जब अंग्रेज भगत सिंह की तलाश कर रहे थे तो धनवंतरि के प्रयासों की वजह से ही वह सकुशल पंजाब से बाहर निकल पाए। यही नहीं, असेंबली में बम फेंकने के बाद धनवंतरि ने ही सत्तर हजार पंफलेट पूरे देश में बंटवाने का प्रबंध ·किया। सिर्फ यही नहीं, १९३१ में भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद एचआरए का काम उन्होंने ही देखा था। ४५ वर्ष की आयु में धनवंतरि जम्मू आए और रियासत के भूमि सुधारों का खाका उन्होंने ही तैयार किया था। यातनाओं के कारण कमजोर हुए शरीर के बावजूद उन्होंने अपना अभियान जारी रखा। १३ जुलाई १९५३ में उनका निधन हो गया।
कई साल पहले बनी थी मूर्ति
जम्मू में कामरेड धनवंतरि के नाम पर केवल एक लाइब्रेरी है। जम्मू विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय का नाम धनवंतरि लाइब्रेरी है। इसके अलावा अन्य कोई निशान इस स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर नहीं है। हालांकि कामरेड धनवंतरि की मूर्ति जम्मू के प्रसिद्ध मूर्तिकार रविंद्र जम्वाल ने बनाई है। लगभग एक दशक पहले यह मूर्ति जम्मू विकास प्राधिकरण ने बनवाई थी। तब यह योजना थी की मूर्ति को जम्मू में लगाया जाएगा। लेकिन अभी तक इसका इंतजार है।
{कामरेड धनवंतरि की पुण्यतिथि (१३ जुलाई १९५३) पर विशेष। अपरिहार्य कारणों के चलते समय पर ऐसा नहीं किया जा सका। इसका खेद है।}