Monday, September 23, 2013

मनोज शर्मा



खुलते किवाड़ पर पहली बार बड़े भाई और मित्र मनोज शर्मा की चार कविताएं सहर्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है कि भविष्य में भी इस प्रकार से सहयोग और प्रोत्साहन मिलता रहेगा। अपरिहार्य कारणों के चलते पोस्ट करने में देरी हुई, उसके लिए खेद है।






रात


मुझसे बाहर

उतर रही थी

रात

जैसे कि कहावतें

कहानियों में उतरती हैं



हवा सी

पोरों पे रेंग रही थी ऐसे

ज्यूं घास पर

सरकता है सांप



आसमान से निचुड़ी

इस रात में

ऐसी लचक थी

कि घोंसले से

ज़रा सी निकली चोंचे

वापिस दुबुक गयीं



सुला देने पर तुली थी

रात

कुछ गीत थे

जिनके बोल धुंधलाने लगे थे



घड़ी के आखिरी घंटा बजाते ही

एक चूहा बेहिचक निकला

और कुतरने लगा

रोटी



यह हाल की ही बात है

कि जब

मुझसे बाहर उतरी थी रात

और आसमान में

दिन ने छींटा दे दिया था.



चलो बताऊं

जिसने नहीं देखा कभी

कोई सपना

उसे रातें तंग करती हैं




पता नहीं जिसे खुशबू का

उसकी नाक तक नहीं पहुंचता कभी

झोंका हवा का




जिसे याद नहीं रहता, चंदा

वह रोता-चिल्लाता है

गलियारों में बिखर जाता है




इस बीच, मुझे

अपनी सांसें सुनायी देने लगती हैं

एक साथ दिखायी पड़ते हैं मुझे

पहाड़, सूरज, और दरख्त

फिर सारी गड़बड़ियां  हिचकियां खाती हैं

पर्त-दर-पर्त सूखती जाती हैं




तभी, मैं छ्त्त पर जाता हूं

और नाचते मोर-मोरनी के आगे

बाजरे की थैली खोल आता हूं.  




सब बात

सुख भी नकली

दु:ख भी नकली

नकली अपनों की चीख

किसको ढो लें

किसको खोलें

किसे कहें सब ठीक



उठता-पड़ता

पल हर गिरता

बोले, आ तो पास

सारी खुशियां

सारे सपने

रहेंगे कब तक खास



क्यूं अंतर बढ़ता जाए है

क्यूं धुंधलाए साच

किस पाले में

कौन खड़ा है

बढ़ता जाए नाच



अब तो चेतो भाई लोगो

सोचो ज़रा संग-साथ

गड़्बड़ झटको

जुआ उतारो

कह डालो,सब बात.


तारीख-  2010

बहुत कुछ के बीच 

निजी भी है बहुत

और इस निजता के अंदर ही

अपना कहने को

बचा नहीं है कुछ भी

एक निवाला तक नहीं---



सूख रहा है कंठ

एक घूंट तो दे दो भाई

बज रहा है पेट

मारो गोली स्वाद को

कुछ तो दो---



थोड़ी सी चीनी

चुटकी भर नमक

बस चोंच जित्ती दाल

कुछ तो दो

कि मैं भी अपने सपने

सुन-सुना पाऊं---



क्या बोले हो भाई

ये प्रेम-ब्रेम क्या होता है

और लहराता पानी

और लहराते पहाड़

और लहराता संगीत---





पगलाने से पहले

मां! बोलती थी

कि उसके पास

हरेक मौके के खास गीत हैं

मां तो अब रही नहीं

जैसे कि समय



इत्ते सारे में

इस तारीख में

भूखे पेट भाई

किसे दोहराऊं

पूछूं किसे आज
किसके पास जाऊं---


सम्पर्क  :-

e.mail :- smjmanoj.sharma@gmail.com


(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)