Thursday, January 16, 2014

पम्मी शर्मा


जन्म - १८ अप्रैल १९९३ में हीरानगर के दयालाचक गाँव में
शिक्षा - राजकीय महाविधालय हीरानगर से स्नातक  
लेखन - २०१० में कविताओं से आरम्भ 
प्रकाशित - मई २०१३ में एक लघु प्रेम आधारित उपन्यास 'द जर्नी वी लेफ्ट' प्रकाशित 
प्रिय कवि - जॉन मिल्टन 
अन्य - फेस बुक पर सक्रिय रहते हैं

पम्मी शर्मा मूलत: अंग्रेजी में लिखते हैं। इनकी कुछ कविताएँ अंग्रेजी के दैनिक 'डेली एक्सेलसियर' में प्रकाशित हुई हैं। मैं इनकी कविताएँ पढ़ता रहता हूँ। इनमें अभी स्वाभाविक कच्चापन है।  जो धीरे- धीरे परिपक्वता में बदलता दिख रहा है। इन कविताओं में  इनकी संवेदनशीलता और पक्षधरता देखते बनती है। यहाँ सृजित मानवीय बिम्ब इनकी कविता को आत्मीय बना देते हैं। आशा है वे जल्दी अपना काव्य मुहावरा अर्जित कर लेंगे। अनंत शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं यहाँ पम्मी की दो कविताएँ। 



मैंने उसको देखा 

मैं जानता हूँ
वह वहाँ था 
मैं उसे चकाचौंध में भी
देख सकता था 
मैंने उसे भरपूर नज़र से देखा भी 
पर जैसे ही 
हमारी आँखें चार हुई 
वह तेज कदमों से आगे बढ़ गया
मैं वही घुटनों पर सिर रख बैठ गया 
सनसनाती हवा से मैंने जाना
कुछ नज़रें मुझे घूर रही हैं 
अपनी आवारगी में आगे बढ़ते
मैंने एक प्रेमी जोड़े को 
आलिंगनबद्ध देखा
फिर मैंने 
किसानों को खेती करते देखा 
पक्षियों को दाना चुगते देखा 
पशुओं को घास चरते देखा 
चरवाहों को गाते देखा 
फूलों को खिलते मुरझाते देखा  
लोगों को हँसते रोते देखा ...

मैं उड़ते बाज की ताकत भी देख सका 
सब कुछ देख सका 
कुछ न देख सका तो बस इतना 
कि वो रुकता और 
एक बार पलट कर देखता।



वो सर्द रात 

यह एक सर्द रात थी

धुंध और कोहरे में वहाँ खड़ा रहना 
अति दुर्गम था 
वहां बतियाने के लिए 
मुश्किल से कोई उपस्थित था 
इस बीच मैंने एक पुलिस वाले को देखा 
इससे पहले कि
मैं उससे कोई बात करता 
मैंने जाना 
वह घड़ाभर शराब पिए 
अन्धी ताकत वाला हाथी था 
वह सीधे कोने में दुबके भिखारी के पास 
अपनी सूंड लहराता 
उसे टटोलने लगा 
पर उसे वहां 
सिर्फ साँस लेता 
एक पिंजर ही मिला 
उसने एकाएक ताबड़तोड़ 
उस पर लात घूसे बरसाना शुरू कर दिए 
वह चीख पड़ा -
बचाओ बचाओ 
मदद करो मदद करो ...
उसकी दर्दभरी कराह ने 
मेरी अंतरात्मा को भेद दिया 
पर मेरे हाथ पैर सुन्न हो गए थे 
आँसू सूख गए थे 
सर्दी के कारण नहीं 
बर्दी के कारण ...
स्टेशन को दूर तक टटोलने के लिए 
वह आगे जा चुका था 
मैं वही खड़ा था 
मैंने अब हिम्मत दिखाई 
मगर अब देर हो चुकी थी। 

सम्पर्क :-
गाँव व डाक - दयाला चक,
तहसील - हीरानगर , जिला - कठुआ,
जम्मू व कश्मीर।
दूरभाष -०९९०६३५०२६४


अनुवाद व प्रस्तुति :-
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा 
जम्मू व कश्मीर [ १८४१२१ ] 
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३