Friday, December 18, 2015

ध्यान सिंह




जन्म - दो मार्च 1939 को घरोटा (परताड़ा) 
शिक्षा - एमए (इतिहास, राजनीति शास्त्र), बीएड शिरोमणी। सेवानिवृत्त जिला शिक्षा योजना अधिकरी, जम्मू (31-03-1997)
संस्थापक प्रधान - डुग्गर संस्कृति संगम बटैह्ड़ा, जम्मू (1986)

ध्यान सिंह डोगरी साहित्य के लिए जाना माना नाम है। बारह के करीब रचनाएं छप चुकी हैं जिनमें फिलहाल, सिलसला, रूट्ट-राह्डे, पढ़दे गुढ़दे रौहना, सरिशता, सोस, रमजी मिसल, ज्ञान-ध्यान, पिंड कुन्ने जोआड़ेआ, झुसमुसा, अबज समाधान, परछामें दी लोs आदि शामिल हैं। इसके अलावा अनुवाद कल्हण भी चर्चा में रहा। डोगरी के साथ साथ दबे और हाशिए पर खड़े इंसान की बात जोर से करते हैं। डोगरा संस्कृति को बचाने में अहम भूमिका निभा रहे। अहम डुग्गर पर्वों पर अपने स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। पाठकों के लिए उनकी तीन रचनाएं पेश कर रहा हूं। 
साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर 'खुलते किवाड़' की ओर से हार्दिक बधाई।


(मेरे वह दोस्त जो डोगरी नहीं जानते हैं का सुझाव है कि डोगरी या अन्य भाषा की रचनाएं देते समय अगर उनका हिंदी में भावार्थ दिया जाए तो रचनाओं को ज्यादा लोग समझ पाएंगे और इन भाषाओं  के साहित्यकारों की सोच, चिंताओं, चुनौतियों समेत अन्य पहलुओं से रूबरू हो पाएंगे। इसलिए इस बार डोगरी रचनाओं का उनका हिंदी भाषा में भावार्थ भी दे रहा हूं। यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।)




ऐगड़ (भेड़ों का झुंड)

चिट्टी काली भिड्डें दा
(सफेद काली भेड़ों का)
बैह्कल ऐगड़
(व्याकुल झुंड)
कुत्तें दे पैहरै च
(कुत्तों के पहरे में)
धुन्ध भरोची काली पक्की छिड़का पर
(धुंध से भरी काली पक्की सड़क पर)
सज्जै खब्बै आपूं चं खैरदे
(दाएं बाएं आपस में टकराते हुए)
बज्जा सज्जा टुरदा
(बंधे बंधाए चलता)
जा करदा ऐ बूचड़ खाने
(बूचड़खाना जा रहा है)
दलाल रबारे बलगता दे जित्थे
(दलाल अगुआ जहां इनका इंतजार कर रहे हैं)
इंदा अपना कोई मुल्ल नहीं
(इनका अपना कोई मूल्य नहीं)
होन्द दा अह्सास बी नेईं
(अस्तित्व का अहसास भी नहीं)
त्रिंबा द्रुब्बां चुग्घने कारण
(घास-दूब चुगने के कारण)
इन्दी मुंडी ढिल्ली रेही थल्ले
(इनकी गर्दन नीचे ढीली रही)
जीने दा कदें हक्क जतान एह्
(कभी यह जीने का हक जताएं)
भगयाड़ें गी नत्थ पान एह्
(भेडियों को ये नकेल डालें)
ऐहड़ बैह्कल बैत्तल होई जा
(व्याकुल भेड़ों का समूह विद्रोही हो जाए)
हर बूचड़खान्ना करन तबाह्।
(हर बूचड़खाने को तबाह कर दें)







जकीन करो (यकीन करो)

रुख अपने
(पेड़ अपने)
पीले भुस्से पत्तर
(पीले मुरझाए पत्ते)
तुआरी जार'दे न
(उतारते जा रहे हैं)
पत्तर भुज्जां दे पैर बंदी
(पत्ते जमीन के पांव छू कर)
शीरबाद लै दे न
(आशीर्वाद ले रहे हैं)
पौन पुरै दी बी तौले
(पुरवाई भी जल्दी)
पत्तर झाड़ा दी ऐ
(पत्ते झाड़ रही है)
रुख नंगे मनुंगे
(नंगे पेड़)
सुच्चे होई
(शुद्ध हो कर)
धुप्प शनान करा दे न
(धूप स्नान कर रहे हैं)
डाहलियां काहलियां
(डालियां कलियां)
डू.र खुंडा दियां न
(अंकुरित हो रही हैं)
जकीन करो
(यकीन करो)
पौंगर पवा दी ए
(कोंपलें फूट रही हैं)
जकीन करो ब्हार अवा दी ऐ
(यकीन करो बहार आ रही है)
थकेमा तुआरने आस्तै
(थकावट उतारने के लिए)
राह् राहून्दुयें गी
(रास्ते पर निकले राहगुजारों को)
घनी छां थ्योनी ऐ
(घनी छाया मिलनी है)
जकीन करो
(यकीन करो)
फुल्ल बी ते खिड़ने न
(फूल भी तो खिलेंगे)
खश्बोs भी तो बंडोनी ऐ
(खुशबु भी तो बंटनी है)
पक्खरुएं डुआरियां भरनियां न
(पक्षियों ने उड़ान भरनी है)
जनौरें छड़प्पे लाने न
(दीवानों ने नाचना है)
जकीन करो
(यकीन करो)
सुर संगम दी लैहरें बिच
(सुर संगम की लहरों के बीच)
ब्हार पक्क औनी ऐ
(बहार जरूर आएगी)
जकीन करो
(यकीन करो)
असें-तुसें नंद लैना ऐ
(मैंने-आपने आनंद लेना है)
सारें ई नंद थ्होना ऐ
(सभी को आनंद मिलेगा)
जकीन करो
(यकीन करो)
ब्हार पक्क औनी ऐ
(बहार पक्का आएगी)







चन्नै बनाम (चांद बनाम)

न्हेर मनेहरै चन्न चढ़ेआ
(अंधेरे गुप्प अंधेरे में चांद निकला)
तां उसगी पुच्छेआ
(तब उसको पूछा)
चन्न दिक्खेया ई?
(चांद देखा है?)
किन्ना शैल दिक्ख हां उप्पर
(कितना सुंदर देखो तो ऊपर)
तां ओह् दिखदे सार गै आक्खै
(तब उसने देखते ही कहा)
मक्कें दा ऐ पीला ढोडा!
(यह मक्की की पीली रोटी है!)
सही कीता जे ओह् भुक्खा ऐ
(मालूम हुआ कि वह भूखा है)
में झट-पट अंदर जाई
(मैंने झट-पट अंदर जा कर)
ढोडा उसी पूरा खलाया
(उसको मक्की की पूरी रोटी खिलाई)
ते गलाया चन्न कैसा ऐ
(फिर कहा चांद कैसा है)
तां उसने अग्गी दा गोला गलाया
(फिर उसने आग का गोला कहा)
तां मे उसकी ठंडा पानी पलाया
(इसलिए मैंने उसको ठंडा पानी पिलाया)
ते फ्ही पुच्छेया चन्न कैसा ऐ
(तब फिर पूछा चांद कैसा है)
उन्ने झट सुखना गलाया
(उसने झट से सपना सा कहा)
तो मैं झट उसी सुआली दित्ता
(तब मैंने उसे झट सुला दिया)
बाकी ढोडा जां अग्ग लब्भै उसगी
(बची मक्की की रोटी या आग दिखे उसको)
में सुखने ने मन परचाया
(मैंने सपने से मन को संतुष्ट किया)
सुखने नै गै मन पत्याएआ
(सपने ने ही मन को बहलाया)
 


संपर्क-
ग्राम- बटैह्ड़ा (अखनूर रोड)
तहसील और जिला- जम्मू
मोबाइल-0-94-192-59879
 

  
(इस्तेमाल किए गए कुछ चित्र गूगल से साभार लिए गए हैं)