Saturday, October 8, 2016

खुद से लड़ता, खुद को गढ़ता मूर्तिकार



रियासत जम्मू व कश्मीर के विश्व विख्यात मूर्तिकार रविंद्र जम्वाल पर हाल ही में कला, संस्कृ​ित और भाषा अकादमी के केएल सहगल हाल पर झरोखाश्रंखला के तहत कार्यक्रम का ओयाजन किया गया। कार्यक्रम अकादमी तथा रेडियो कश्मीर जम्मू  की ओर से किया गया था। इसमें विभिन्न सम्मान हासिल कर चुकी प्र​ितष्ठित साहित्यकार योगिता यादव ने जम्वाल के व्यक्तित्व एवं कृतियों पर पेपर पढ़ा। 
हार्दिक आभार और  अनंत शुभकामनाओं सहित योगिता यादव का पेपर सहर्ष पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। उम्मीद है कि पेपर पाठकों को रविंद्र जम्वाल के कर्म के साथ साथ उनकी विचारधारा, चिंताओं और व्यक्तित्व के  और पास ले जाएगा। 


('खुलते किबाड़' पर योगिता यादव का स्वागत इस उम्मीद के साथ भविष्य में भी उनका सहयोग ऐसे ही प्राप्त होता रहेगा।)






वे अपने लिए कुछ रेखाएं खींचते हैं, कुछ मिट्टी जुटाते हैं, फिर उनमें भाव खोजते हैं। आस्था बनती है। फिर कोई नया ख्य़ाल, कोई नया भाव आकर अब तक की तमाम मान्यताओं को धराशायी कर देता है। अधिकतर कलाकार ऐसे ही बनते हैं और ऐसे ही बिगड़ती हैं एक के बाद एक निर्मित हुईं उनकी अवधारणाएं। जम्मू की शान, शान-ए-डुग्गर, लोकप्रिय शख्सियतों में से एक रविंद्र जम्वाल कलाकारों के मूल प्राणतत्व से भला अलग कैसे हो सकते हैं। वे भी अपने लिए मिट्टी जुटाते हैं, मजबूत धातुओं को ख्यालात की तरह खूबसूरत मोड़ देते हैं। उनकी संयोजित ऊर्जा और लगन से एक खूबसूरत कलाकृति आकार लेती है। कृति तो पूर्ण हुई पर कलाकार अब भी संतुष्ट नहीं हो पाया। रविंद्र कुछ और करना चाहते हैं। कुछ और खोजना चाहते हैं। वे अपने आसपास के उपलब्ध संसाधनों से सबसे जटिल पत्थर चुनते हैं। उसके गठन के एक-एक तंतु पर बहुत बारीकी से अनुसंधान करते हैं। फिर उसे तोड़ते हैं, ऐसे कि जैसे कोई अब तक की जघन्यतम आस्था को तोड़ रहा हो। उसमें फिर से एक नए रूप, एक नए भाव की स्थापना करते हैं। लीजिए तैयार है किसी खास स्तंभ के लिए बना अब तक का सबसे आकर्षक बुत। पर वह जो चौबीस घंटे, सातों दिन निरंतर क्रियाशील है, उसके लिए चित्ताकर्षक कृति फिनीक्स पक्षी की राख से अधिक और कुछ नहीं है। बेहतरीन कृतियों का ये अनावरण, ये तालियों की गडग़ड़ाहट, प्रशंसा के ये कसीदे.... इन पर रचनाकार घड़ी भर ठहरता जरूर है पर रुकता नहीं है। रविंद्र जम्वाल भी अपनी कल्पनाओं की ऊष्मा में इन सब को स्वाहा कर फिर से विकल हो उठते हैं कुछ और नया गढऩे के लिए। वे अभी संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें अभी कुछ और गढऩा है। उन्हें अभी कुछ और ढूंढना है। इन रेखाओं में, रंगों में, धातुओं में, पत्थरों में वे किसी कलाकृति को नहीं ढूंढ रहे, असल में वे अपनी खोज में हैं। वह ढूंढ रहे हैं उस कौन (?) को जिसने अदृश्य होते हुए भी सभी को ऐसे जोड़ रखा है कि जैसे बिखरे पन्नों पर शीराजा बंधा हो। 
राजपूत बहुल गांव बीरपुर में जन्मे रविंद्र जम्वाल के लिए बहुत आसान था सेना में भर्ती होकर देश की माटी का कर्ज चुकाना। राज्य की राजनीतिक पहचान भले ही बदली हो पर इस गांव की परंपरा नहीं बदली। जब राजतंत्र था तब भी इस गांव के नब्बे प्रतिशत पुरुष सेना में भर्ती हुआ करते थे और अब जब देश में लोकतंत्र है तब भी इस गांव के लगभग हर परिवार से कोई न कोई पुरुष सेना में है। स्वयं रविंद्र जी के पिताजी धु्रब सिंह जम्वाल भी सेना में कैप्टन रहे हैं। पुरुषों के सेना में होने के बावजूद इस गांव के परिवारों का गठन कुछ ऐसा रहा है कि घर अकेले नहीं होते। चार भाई-बहनों में सबसे छोटे रविंद्र जम्वाल भी ऐसे ही भरे-पूरे परिवार के बीच पले-बढ़े। चार तायों के संयुक्त परिवार में पले बढ़े रविंद्र कहते हैं, ''अब जो खालीपन घरों में दिखता है, वह हमें बचपन में कभी महसूस ही नहीं हुआ। परिवार ऐसे होते थे कि घर में हर उम्र का कोई सदस्य होता था। मैं अपने बड़े भाई का अपने पिता की तरह सम्मान करता हूं क्योंकि उनसे हमेशा वही आशीर्वाद, वही सहयोग पाया जो कोई बच्चा अपने पिता से पाता होगा। हालांकि इनके पिताजी ने भी इन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया। जब इन्होंने तय कि इन्हें मिट्टी का कर्ज नहीं चुकाना, उससे बतियाना है, तब भी इनके पिता ने इन्हें प्रोत्साहित किया। वह कृतियां जिन्हें देखकर शहरी तथाकथित पढ़े-लिखे लोग भी दाएं-बाएं देखने लगते हैं, उन्हें बनाने का प्रोत्साहन कैप्टन धु्रब सिंह ने रविंद्र जम्वाल को बीरपुर गांव में दिया। जहां तक गाडिय़ां भी घंटों इंतजार के बाद पहुंचती थीं, वहां तक प्रसिद्धी को तो जैसे ही आना था। गांव के ही स्कूल में किशोर रविंद्र जब चित्रकला की कॉपी में छोटे-छोटे चित्र बनाता था, यह तभी तय हो गया था। चित्रकला के अध्यापक बोधराज जी और फिर जगदीप सिंह जम्वाल ने इसकी परख कर ली थी। उन्हीं के मार्गदर्शन और दो साल के चिंतन मनन के बाद रविंद्र जम्वाल ने जम्मू के फाईन आर्ट कॉलेज में दाखिला लिया। शर्मीले स्वभाव के रविंद्र के लिए बीरपुर गांव से निकल कर सीधे जम्मू के कला पारखियों और बर्हिमुखी लोगों के बीच सामंजस्य बैठाना निश्चय ही मुश्किल होता यदि उन्हें हर्षवर्धन जैसा दोस्त न मिल गया होता। रविंद्र के पास हुनर था और हर्षवर्धन के पास हुनर और उसे प्रस्तुत करने का कौशल दोनों। जहां कहीं भी मुश्किल आती, कोई संकोच रविंद्र के कदम रोकता, हर्षवर्धन उनके कंधे पर हाथ धरे उन्हें वहां से निकाल ले जाते। दोस्ती किस तरह व्यक्ति को आत्मविश्वास से भर देती है यह रविंद्र ने यहां आकर जाना। वहीं जब पद्मश्री राजेंद्र टिक्कू, अरविंद्र रेड्डी और विद्यारतन खजूरिया जैसे महान कलाकारों का मार्गदर्शन मिला तो उनकी कला में और निखार आया। उनके सोचने और काम करने के ढंग में भी अप्रत्याशित बदलाव आया। कोई भी नया प्रशिक्षु गीली मिट्टी की तरह होता है। उसमें कोई भी आकार लेने की असीमित संभावना होती है। पर उसे गढऩे का कौशल कुम्हार ही जानता है। राजेंद्र टिक्कू और पीजी धर चक्रवर्ती ऐसे ही कुशल मार्गदर्शक साबित हुए रविंद्र जम्वाल के लिए। 



उम्र का एक गुलाबी दौर ऐसा भी आता है जब व्यक्ति को हर शाख और हर फूल में एक ही चेहरा नजर आता है। उसने अपनी कृति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति लगती है और जो वह बना रहा होता है, उसके प्रति वह इतना अधिक आसक्त होता है कि उसी स्टाइल को अपना सिग्नेचर बना लेना चाहता है। हर कलाकार के जीवन में ऐसा दौर आता है। जो इससे असहमत होंगे, वे अपने बारे में कुछ अधूरा जानने और मानने वाले लोग होंगे। ऐसे दौर में जब रविंद्र एक खास स्टाइल की तरफ बंधने लगे थे, तब राजेंद्र टिक्कू जी की एक हल्की सी थपकी ने उन्हें जैसे नींद से जगा दिया। जैसे कुम्हार जब पात्र गढ़ रहा होता है, तो वह उसे बाहर से थाप देता है और अंदर से सहारा। इसी थाप और सहारे ने रविंद्र को फिर से खुद पर काम करने, अपनी रचनात्मकता पर मनन करने के लिए प्रेरित किया। यह रविंद्र के जीवन और रचनात्मकता का तीखा मोड़ था। इस मोड़ से गुजर कर वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकार बने। इस दौरान वे बड़ौदा के सायाजी राव विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर कर चुके थे। बड़ौदा के उदार और रचनात्मक माहौल ने भी उनके सोचने के ढंग में उत्तरोत्तर वृद्धि की। कई बार वे चौंकते, तो कभी सुकून भी महसूस करते कि बीरपुर का लड़के का काम बड़ौदा में भी किसी से कमतर नहीं है। यहीं से उनके पास कई तरह के प्रस्ताव आने शुरू हो गए थे। कुछ नौकरी के थे, तो कुछ विदेशों के भी प्रस्ताव थे। पर रविंद्र ने जैसे मन में ठान लिया था कि मुझे अपने गांव की मिट्टी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाना है। तमाम प्रस्तावों को नजरंदाज करते हुए उन्होंने वापस अपने जन्मभूमि अपने गांव लौटने की ठानी और यहीं पर ध्रुबसत्य नाम की अपनी कार्यशाला बनाई। यही रविंद्र की जन्म भूमि है, यही तपोभूमि भी है। यह उनका तपोसाधना ही है कि वे एक साथ व्यवसायिक और रचनात्मक दोनों मंचों पर डटे हुए हैं। न कभी अध्यापन से कोई कोताही की, न कभी रचनात्मक काम से पीछे हटे। दिल्ली, मुंबई, बड़ौसा सहित देश और पेरिस, कोरिया सहित विदेशों में दर्जनों एकल और समूह प्रदर्शनियों में रविंद्र का काम प्रदर्शित होता रहता है। हर काम उन्हें कुछ नया सबक देकर जाता है। हर अनुभव उन्हें रचनात्मकता के स्तर पर फिर से ताजा कर देता है। ऐसा ही एक अनुभव साझा करते हुए वे कहते हैं, ''यह दक्षिण कोरिया की यात्रा थी। वहां की एक उच्चाधिकारी एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने पहुंची थी। अभी कार में बैठे वे कोरिया की सड़कों, वहां की स्वच्छता को देख अभिभूत थे। इसी मुग्ध भाव में वे अनायास ही बोल उठे, 'यहां की सड़कें कितनी साफ हैं। धूल मिट्टी का नामो निशान नहीं है। हमारे यहां तो बहुत गंदगी है।Ó कोरियाई उच्चाधिकारी कुछ क्षण के लिए खामोश रहीं। फिर बोलीं, 'जम्वाल हम अपने देश के लिए कभी ऐसी बात नहीं कह सकते।Ó मेरे लिए यह जिंदगी का सबसे बड़ा सबक था कि देश प्रेम क्या होता है। हम जरा सा छैनी हथोड़े पर हाथ सधते ही देश से ऊपर हो जाते हैं। यहां मैंने देश भक्ति का सबक सीखा। आज मुझे गर्व है कि मैं बीरपुर की मिट्टी में जन्मा हूं और भारत देश का नागरिक हूं।
रविंद्र अपने देश पर जान छिड़कते हैं। देश में घटी कोई भी घटना, दुर्घटना उन्हें उसी तरह उद्वेलित करती है, जैसे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करती है। जब घाटी से कश्मीरी पंडितों का जबरन विस्थापन किया गया, तब रविंद्र के मन को गहरा आघात पहुंचा। अभी तक रविंद्र जम्वाल की कृतियों में डुग्गर की लोक आस्था, विश्वास और कलाएं स्थान पा रहीं थीं वहीं अब विस्थापन की पीड़ा, घुटन भरे माहौल की यंत्रणा और जन्मभूमि से दर बदर कर दिए जाने की पीड़ा अभिव्यक्त होने लगी। लंबे समय तक यही भाव उनकी कृतियों का प्रधान स्वर रहे। रणबीर नहर में सबसे लंबी तैरती कलाकृति बनाकर उन्होंने लिमका बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में अपना नाम भी दर्ज करवाया। 




पर हर आघात की एक सीमा होती है, हर अनुभव का एक दायरा होता है। हमारी आस्था, हमारी नजर, रफ्तार, संहार, पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना, सूरज का ताप, आकाश गंगाओं में तारों का लश्कर.... इन सभी की एक सीमा है। कोई तो दायरा है, जिसमें ये सभी बंधे हैं, यही सोचते हुए अब आपने 'दायरोंÓ पर काम करना शुरू किया। खुशियों के फ्रेम, यंत्रणाओं के फ्रेम और अनुभवों के फ्रेम इनकी कुछ उल्लेखनीय प्रदर्शनियां रहीं हैं। सब कुछ फ्रेम में बंध सकता है पर एक रचनाकार का जन्म ही होता है, इस फ्रेम को तोडऩे के लिए। निश्चित ही रविंद्र जम्वाल भी इस फ्रेम से बाहर आएंगे और कुछ नया अप्रत्याशित गढ़ेंगे। वे बड़े कलाकार हैं, उन्हें अभी और बड़ा बनना है। उनकी प्रतिस्पर्धा स्वयं से है। और यह सबसे जटिल प्रतिस्पर्धा होती है। इस प्रतिस्पर्धा में कोई संबल है तो उनका परिवार, उनकी पत्नी बीना जम्वाल। उनकी भाभियां, उनके भतीजे, भतीजियां। जो संसार में रहते हुए भी उसकी लौकिक कामनाओं से निर्लिप्त रहने वाले इस कलाकार की एक आवाज पर दौड़ पड़ते हैं। रविंद्र बिना मॉडल के कृति नहीं गढ़ पाते, तो उनके भाई जोगेंद्र सिंह वैसी ही जरूरी पोशाक पहनकर उनके लिए मॉडल बनते हैं, तो कभी दूसरे भाई नरेंद्र सिंह उनके लिए जरूरी सामान जुटा देते हैं। भला होगा कोई ऐसा सौभाग्यशाली कलाकार जिसे अपने परिवार का इतना साथ मिले। रविंद्र अपनी जन्मभूमि बीरपुर पर जान छिड़कते हैं। पर उसकी रूढिय़ों के खिलाफ किसी योद्धा की तरह डटकर खड़े हो जाते हैं। जब अपनी इच्छा से विवाह करने वाली बेटियों का राजपूती शान बहिष्कार करती है, तो रविंद्र उन्हें अपने आंगन में जगह देते हैं। जब अंधभक्तों की आस्था कनफोड़ू शोर में बदलने लगती है, तो वह उसके भी खिलाफ खड़े हो जाते हैं। फिर चाहें सारा गांव उनके खिलाफ हो जाए। कोई उन्हें सनकी ही क्यों न कहने लगे। कलाकार कुछ अलग मन लिए होते हैं। वे अपने आसपास से बहुत दूर होते हुए भी उससे बहुत गहरे से जुड़े होते हैं। हर व्यक्ति को अपने कलाकार मित्र, रिश्तेदार, पड़ोसी के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए। इनके हाथों में ब्रह्मा का वास है और हृदय किसी कोमल फूल की तरह है। जो जरा सी धूल, धूप से भी कुम्हला सकता है। सुख जहां ठहरे आसन की तरह है, वहीं दुख और पीड़ा औषधियों की बहती हुई नदी की तरह है। यह निश्चित ही रविंद्र जम्वाल को कुछ सकारात्मक दे कर जाएंगे। उनके हाथ मिट्टी में सने हैं, काग$ज की लुगदी भीगी हुई प्रतीक्षा कर रही है नई शक्ल और आकार की। कुछ धातुएं हैं, जो पिघल जाना चाहती हैं, उनके स्पर्श से एक नए रूप की कामना में। इनकी भाषा सिर्फ रविंद्र समझते हैं और वही इनका उत्तर भी देंगे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ 



Yogita Yadav

911, Subhash Nagar

Jammu – (J&K)

Wednesday, June 15, 2016

महाराज कृष्ण संतोषी



जन्म : कश्मीर, 1954
शिक्षा: एमए अंग्रेजी साहित्य
विधिवत काव्यलेखन सन 1975 के आसपास शुरू किया। पहला काव्य संग्रह 'इस बार शायद' 1980 में प्रकाशित। पहल, साक्षात्कार, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, हंस, आलोचना, कथादेश, विपाशा, जनसत्ता सहित देश की लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र प​ित्रकाओं में कविताएं और कहानियां प्रकाशित।
कुछ रचनाओं के अनुवाद अंग्रेजी, पंजाबी, डोगरी, बंगाली और कश्मीरी में।

प्रमुख कश्मीरी कवियों की प्र​ितनिधि कविताओं के हिंदी में अनुवाद।

प्रकाशित कृ​ितयां 

काव्य: 1. इस बार शायद (1980) 2. बर्फ पर नंगे पांव (1993, पुरस्कृत) 3. यह समय कविता का नहीं (1996) 4. वितस्ता का तीसरा किनारा (2005, पुरस्कृत)
कहानी संग्रह: हमारे ईश्वर को तैरना नहीं आता (2009)

सम्प्र​ित: स्वतंत्र लेखन

हार्दिक आभार और  अनंत शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं अग्रज संतोषी जी की कुछ कविताएँ।




व्यथा

अभी भी जिंदा है मेरे भीतर
गुरिल्ला छापामार
बेहतर दुनिया के लिए लड़ने को तैयार

पर एक कायर से
उसकी दोस्ती है
जो उसे यही समझाता रहता है
दूसरों के लिए लड़ोगे
तो मारे जाओगे

सच कहता हूं
यही है मेरे जीवन की व्यथा
सपना देखा उस गुरिल्ला ने
जीवन जिया इस कायर ने




बेरहम

पहाड़ ने मान रक्खा
मेरे हौंसले का
घाटी ही बेरहम निकली
पेड़ से गिरा दिया
मेरा घौंसला





एक अच्छा दिन

बहुत अच्छा दिन बीता आज

न पढ़ा अखबार
न देखा टेलिविजन ही

सुबह सुबह ओस की बूंदों में
मैंने देखा लिया अपना प्र​ितबिंब
फिर अच्छा लगा यह सोचना
कि ओस ही है हमारे जीवन की आत्मकथा

बहुत अच्छा दिन बीता आज

न मंत्र
न ईश्वर
न मित्र याद आए

आज अकेला ही
हरी हरी घास पर
लंगे पांच चलते हुए
मैंने पृथ्वी का प्यार नाप लिया
और पेड़ों से लिया मौन

बहुत अच्दा दिन बीता आज

ने किसी ने नाम पूछा
न जात
ना गांव

आज ऐसा लगा
दुनिया का सबसे बड़ा अमीर
वहीं हो सकता है
जो सारी पृथ्वी से कर पाए प्यार
और यह बात
मुझे किसी किताब से नहीं
हरी घास की एक पत्ती ने समझाई


काठ की तलवारें

हम काठ की तलवारें हैं
हमें डर लगता है
माचिस की छोटी-सी तीली से भी

हम मंच पर कलाकार का साथ
तो दे सकते हैं
पर सड़क पर किसी निहत्थे की रक्षा नहीं कर सकतीं

हम काठ की तलवारें हैं
हमारा अस्तित्व छद्म है
हमारी निय​ित में कोई युद्ध नहीं
कोई जोखिम नहीं
किसी का प्यार नहीं
हम रहेंगे हमेशा
मौलिकता से वंचित

हम काठ की तलवारें हैं
हमें आग से ही नहीं
छोटे से चाकू से भी डर लगता है।



आतंक और एक प्रेम कविता

अभी जैसे कल की बात हो
जब मुझे उसने चूमा था इस पार्क में

उसके चुंबन का सुख
भीतर ही भीतर छिपाते हुए
मैंने उससे कहा था
और मत करना साहस

अभी जैसे कल की बात हो
जब मौसम था बसंत
और पेड़ फूलों से भरे हुए
इन्हीं फूलों की महक में
हम बातें करते रहे
भूलते हुए समय को
और लौटते हुए घर
जब उसने मुझे भर लिया बाहों में
मैंने उसे चेताया
कहा
यहां हवा जासूस हे
कुछ भी छिपा नहीं रहता

अभी जैसे कल की बआत हो
जब उस ने
पुल और नदी को गवाह बनाकर
मुझे अपने प्यार का विश्वास दिलाया था
उस समय बहुत डर गई थी मैं
कहीं कोई दुश्मन चेहरा
हमें देख तो नहीं रहा था

पर अब जैसे थम गया हो समय
मारा गया मेरा प्यार
बीच सड़क पर
अपनी असीम संभावनाओं के साथ
क्या इसलिए वह मारा तो नहीं गया
कि वह प्यार के सिवा
कुछ जानता ही न था

ऐ मेरे वतन की हवाओं
सचमुच यहां खतरनाक है
प्यार करना
फिर भी कहना
मेरे हमउम्रों से
जोखिम उठाकर भी प्यार करना
जैसे हमने किया
समय के खिलाफ
समय को भूलते हुए।


संपर्क-
फोन: 0-94-190-20190
ई-मेल:  mksantoshi7@gmail.com 

(चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)

Monday, May 2, 2016

लोक मंच द्वारा डॉ० अम्बेडकर और मज़दूर दिवस पर कार्यक्रम : एक रिपोर्ट .


कटती फसलों के गर्म दिन हैं . गर्मी को गर्मी काटती है . इसी के चलते साथियों ने कल दोपहर खूब गर्मजोशी दिखाई . इस बार लोक मंच विजयपुर कस्बे में था . ज्योति पब्लिक स्कूल में सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम में सम्मानजनक आम उपस्थिति रही . शुरुआत डॉ० बी० आर० अम्बेडकर जी को श्रद्धासुमन अर्पित करके की गई . पनपती डियोडरेंट्स संस्कृति में श्रमिक के श्रम सौन्दर्य को रेखांकित किया गया . 


स्वागत सम्बोधन में दलित विचारक डॉ० कुलदीप डोगरा ने बाबा साहब की जीवनी पर प्रकाश डाला . इसके बाद कामरेड सौदागर गुप्ता ने तर्कों के साथ वर्ण व्यवस्था पर विचार रखे . उन्होंने कहा कि हर आदमी में चारों वर्ण होते हैं . ये सुविधा और ज़रूरत अनुसार प्रकट होते हैं . उन्होंने कहा मनुवादी कहते हैं कि शुद्र पैरों से पैदा हुए हैं . यह हीनता नहीं हो सकती क्योंकि पैरों से चला जाता है . इन्हें छू कर आदर भी प्रकट किया जाता है . सुरेन्द्र शर्मा का सम्बोधन बहुत भावुक था . उन्होंने बताया कि दलित साहित्य पढ़कर वे खूब रोये . उन्होंने तथाकथित उच्च जातियों के उस वर्ग को नीच कहा जिन्होंने दलितों का शोषण किया . उन्होंने कहा कि आज भी मानसिकता नहीं बदली है . इसके लिए सामूहिक कार्य करना होगा .


कमल जीत चौधरी ने समता , प्रेम और भाईचारे को लाने के लिए ईमानदारी का होना आवश्यक बताया . उन्होंने कहा कि किसी भी नायक का राजनीतिकरण करना तो आसान है पर उसका अनुकरण करना बहुत कठिन है . आज नायकों को हमसे छीना जा रहा है या उन पर एकाधिकार बढ़ता जा रहा है . जिन संतों ने मूर्तिपूजा और धार्मिक आडम्बरों पर चोट की , दलितों ने उन्हीं के आज मन्दिर बना दिए हैं . उन्होंने दलितों में पनपते जा रहे नव ब्रह्मणवाद को प्रश्नांकित किया . सत्ता के समकक्ष सत्ता खड़ी करना समस्या का समाधान नहीं है . उन्होंने कहा कि आज राष्ट्रप्रेम , द्रोह , हिन्दू राष्ट्र जैसे नारे परिदृश्य पर हावी हैं . फासिस्ट ताकतें उभरी हैं . ऐसे में बाबा साहब और भगत सिंह के विचार बहुत प्रासंगिक और उपयोगी हैं . 




स्कूल शिक्षा विभाग से सेवानिवृत प्रधानाचार्य बलवीर चौधरी ने अपने विचार रखते हुए ऐसे आयोजनों को ज़रूरी बताया . उन्होंने कहा कि तथाकथित उच्च जाति के लोगों का दायित्व अधिक है . उन्हें दलितों के उत्थान के लिए अधिक से अधिक काम करना चाहिए . कार्यक्रम की अगली कड़ी में सुन्दर काव्य गोष्ठी हुई . सबसे पहले स्नातक की छात्रा अदिति शर्मा को मंच पर बुलाया गया . उन्होंने मौलिक स्वर में स्त्री संवेदना और विद्रोह की कविताएँ सुनाई .उनका जोरदार स्वागत हुआ . नवोदित डोगरी कवि ब्रह्म दत्त ने खूब समा बांधा . मोहित शर्मा ने अपने भावुक अंदाज़ में खूब मन जीता . 


किसान और मज़दूर की संवेदना लेकर आए अगले कवि कुलदीप किप्पी थे . उन्होंने लोक गीत गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया . लोक कवि बैसाखी राम मौजी ने नशे , पाश्चात्य और आधुनिक जीवन शैली पर तंज किए . डोगरी कवि कुलदीप डोगरा ने दलित संवेदना और अव्यवस्था पर आधारित कविताओं का प्रभावशाली पाठ किया . अगले कवि कमल जीत चौधरी थे . उन्होंने चिरपरिचित अंदाज़ में राजनीतिक कविताओं का पाठ किया . उनके अग्रेशन और व्यंग्य को सराहा गया . लोक मंच के संयोजक और युवा हिन्दी कवि कुमार कृष्ण शर्मा ने अपनी कविताओं से गम्भीर प्रश्न छोड़े . डोगरी के वरिष्ठ कवि तारा चन्द कलंदरी को भी लोगों ने खूब पसन्द किया . 


अंत में साहित्य अकादमी पुरस्कृत डोगरी के प्रसिद्द लेखक , कवि मोहन सिंह ने कार्यक्रम पर अपने विचार रखे . उन्होंने कहा कि राजनीति को समझे बिना कोई भी अच्छा कवि नहीं हो सकता है . कवियों को स्पेशल स्टेटस की अपेक्षा समाज के प्रति अपने दायित्व पर ध्यान देना चाहिए . उन्होंने मांग पर अपनी कविताओं का पाठ किया . जिन्हें बहुत पसन्द किया गया . कार्यक्रम का संचालन कुमार कृष्ण और धन्यवाद ज्ञापन बलवीर चौधरी ने किया . पोस्टर कविता कार्यक्रम का खास आकर्षण रही . कार्यक्रम में रविन्द्र सिंह , रवि कुमार , प्रवीण कुमार , अश्वनी कुमार , राकेश शर्मा , इंजिनियर देवेन्द्र कुमार , विजय कुमार , हरबंस डोगरा , उदय सिंह , नागरमल वर्मा , राजेन्द्र कुमार आदि साथियों ने विशेष रूप से सहयोग दिया



Friday, March 4, 2016

जेल से रिहाई के बाद JNU में दिया कन्हैया का भाषण



  1. इस देश के संविधान में…इस देश के कानून में…और इस देश की न्याय प्रक्रिया में भरोसा है . इस बात का भी भरोसा है कि बदलाव ही सत्य है और बदलेगा . हम बदलाव के पक्ष में खड़े हैं और ये बदलाव होकर रहेगा . पूरा भरोसा है अपने संविधान पर . पूरे तरीके से खड़े होते हैं अपने संविधान की उन तमाम धाराओं को लेकर जो प्रस्तावना में कही गई हैं…समाजवाद…धर्मनिरपेक्षता…समानता…उनके साथ खड़े हुए हैं.
  2. मैं विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहता हूं इस देश के बड़े-बड़े महानुभावों को जो संसद में बैठकर बता रहे हैं कि क्या सही हैं क्या गलत है. इसको वो तय करने का दावा कर रहे हैं. उनको धन्यवाद. उनकी पुलिस को धन्यवाद. मीडिया के उन चैनलों को भी धन्यवाद देना चाहता हूं . हमारे यहां एक कहावत है कि बदनाम हुए तो क्या हुआ. नाम नहीं हुआ. कम से कम जेएनयू को बदनाम करने के लिए ही उन्होंने प्राइम टाइम पर जगह दी. इसके लिए मैं धन्यवाद देना चाहता हूं.
  3. किसी के प्रति कोई नफरत नहीं है . खासकर के ABVP के प्रति तो कोई भी नफरत नहीं है . पूछिए क्यों ? वो इसलिए कि हमारे कैंपस का जो ABVP है वो दरअसल बाहर के ABVP से ज्यादा बेहतर है और मैं कहना चाहता हूं वो सारे लोग जो अपने आप को राजनीतिक विद्वान समझते हैं तो एक बार पिछले अध्यक्ष पद चुनाव में जो हालत हुई है ABVP उम्मीदवार की…उसका वीडियो देख लीजिए साहब और जो सबसे बुद्धिजीवी व्यक्ति है ABVP का . जो जेएनयू का ABVP है उसको जब हमने पानी पानी कर दिया तो बाकी देश में आपका क्या होगा इसका अंदाजा लगा लीजिए….इसीलिए ABVP के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है क्योंकि हम लोग सच में लोकतांत्रिक लोग हैं . हम लोग सचमुच संविधान में भरोसा करते हैं इसीलिए ABVP को दुश्मन की तरह नहीं विपक्ष की तरह देखते हैं और लोकतंत्र में भरोसा करते हैं . ऐ मेरे दोस्त मैं तुम्हारा शिकार नहीं करूंगा क्योंकि शिकार भी उसका किया जाता है जो शिकार करने के लायक हों.
  4. मैं आज भाषण नहीं दूंगा . आज मैं सिर्फ अपना अनुभव आपको बताऊंगा क्योंकि पहले पढ़ता जाता था सिस्टम को झेलता कम था. इस बार पढ़ा कम है…झेला ज्यादा है. इसीलिए जो कहूंगा जेएनयू में लोग ज्यादा रिसर्च करते हैं. प्राइमरी डाटा है भाई साहब. तो पहली बात ये है कि जो प्रक्रिया न्यायालय के अधीन है उसके ऊपर मुझे कुछ नहीं कहना है. सिर्फ एक बात कही है और इस देश की तमाम वो जनता जो सच में संविधान से प्रेम करती है जो बाबा साहब के सपनों को सच करना चाहती है वो इशारों ही इशारों में समझ गई होगी कि हम क्या कह रहे हैं. जो मामला न्यायालय में है उस पर मुझे कुछ नहीं कहना है.
  5. प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट किया है  कहा है सत्यमेव जयते . मैं भी कहता हूं प्रधानमंत्री जी…आपसे भारी वैचारिक मतभेद है लेकिन सत्यमेव जयते चूंकि आपका नहीं इस देश का है…संविधान का है…मैं भी कहता हूं सत्यमेव जयते…और सत्य की जय होगी.
  6. ये मत समझिएगा कि कुछ छात्रों के ऊपर एक राजनीतिक हथियार की तरह देशद्रोह का इस्तेमाल किया गया है . इसको ऐसे समझिएगा कि…मैंने ये बात अकसर बोली है अपने भाषणों में हम लोग गांव से आते है. मेरे परिवार से भी शायद आप लोग मुखातिब हो चुके हैं तो हमारे हर रेलवे स्टेशन पर जिसको टेशन कहा जाता है वहां पर जादू का खेल होता है . जादूगर दिखाएगा जादू….बेचेगा अंगूठी . मनपसंद अंगूठी और जिसकी जो इच्छा है वो अंगूठी पूरा कर देगी ऐसा जादूगर कहता है. इस देश के भी कुछ नीति निर्माता हैं वो कहते हैं काला धन आएगा . हर हर मोदी . महंगाई कम होगी . बहुत हो गई मत सहिए . अबकी बार ले आइए . सबका साथ सबका विकास . वो सारे जुमले आज लोगों के जेहन में हैं . हालांकि हम भारतीय लोग भूलते जल्दी हैं लेकिन इस बार का तमाशा इतना बड़ा है कि भूल नहीं पा रहे हैं तो कोशिश ये है कि उन जुमलों को भुला दिया जाए और ये जुमलेबाज कर रहे हैं और इसको कैसे भुलाया जाए तो ऐसा करो…इस देश के तमाम जो रिसर्च फैलो हैं उनका फैलोशिप बंद कर दो . लोग क्या करने लगेंगे ? कहेंगे फैलोशिप दे दीजिए . फैलोशिप दे दीजिए . फिर करेंगे कि अच्छा ठीक है जो 5 हजार और 8 हजार देता था वही जारी रहेगा . मतलब बढ़ाने का मामला गया . बोलेगा कौन ? जेएनयू….तो जब आपको गालियां पड़ रही हैं चिंता मत कीजिएगा . जो कमाए हैं वही खा रहे हैं आप लोग . इस देश में जो जनविरोधी सरकार है उस जनविरोधी सरकार के खिलाफ बोलेंगे तो उनका सायबर सेल क्या करेगा ? वो छेड़छाड़ वाला वीडियो भेजेगा . वो आपको गालियां भेजेगा और वो गिनेगा कि आपके डस्टबिन में कितने कंडोम हैं ? लेकिन ये बहुत गंभीर समय है इसीलिए इस गंभीर समय में हम लोगों को गंभीरता से कुछ सोचने की जरूरत है.
  7. जेएनयू पर हमला एक नियोजित हमला है इस बात को आप समझिए और ये नियोजित हमला इसलिए है कि आप यूजीसी से जुड़े आंदोलन को दबाना चाहते हैं  ये नियोजित हमला इसलिए है कि आप रोहित वेमुला के इंसाफ के लिए जो लड़ाई लड़ी जा रही है उस लड़ाई को आप खत्म करना चाहते हैं . आप जेएनयू का मुद्दा इसलिए प्राइम टाइम पर चला रहे हैं माननीय एक्स आरएसएस…क्योंकि आप इस देश के लोगों को भुला देना चाहते हैं कि मौजूदा प्रधानमंत्री ने 15 लाख रुपये उनके खाते में आने की बात कही थी लेकिन एक बात मैं आपको कह देना चाहता हूं जेएनयू में एडमिशन पाना आसान नहीं है . तो जेएनयू के लोगों को भुला देना भी आसान नहीं है. आप अगर चाहते हैं कि हम भुला देंगे तो हम आपको बार-बार याद करा देना चाहते हैं कि इस देश की सत्ता ने जब जब अत्याचार किया है….जेएनयू से बुलंद आवाज आई है और हम उसी को दोहरा रहे हैं और हम बार बार ये याद करा रहे हैं कि तुम हमारी लड़ाई को खत्म नहीं कर सकते.
  8. क्या कह रहे हैं ? एक तरफ देश की सीमाओं पर नौजवान मर रहे हैं . मैं सलाम करना चाहता हूं उनको जो लोग सीमा पर मर रहे हैं . मेरा एक सवाल है . जेल में मैंने एक बात सीखी है कि जब लड़ाई विचारधारा की हो तो व्यक्ति को बिना मतलब की पब्लिसिटी देना चाहिए इसलिए मैं उस नेता का नाम नहीं लूंगा . बीजेपी के एक नेता ने लोकसभा में कहा कि नौजवान सीमा पर मर रहे हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि वो आपका भाई है? या फिर इस देश के अंदर जो करोड़ों किसान आत्महत्या कर रहे हैं. जो रोटी उगाते हैं हमारे लिए और उन नौजवानों के लिए. जो उस नौजवान के पिता भी हैं उसके बारे में तुम क्या कहना चाहते हो? वो इस देश के शहीद हैं कि नहीं? ये सवाल हम पूछना चाहते हैं कि जो किसान खेत में काम करता है . मेरा बाप…मेरा ही भाई फौज में भी जाता है और वही मरता है और तुम ये वानरीपना करके देश के अंदर एक झूठी बहस मत खड़ी करो . जो देश के लिए मरता है वो देश के अंदर भी मरते हैं . देश की सीमा पर भी मरते हैं . हमारा सवाल है कि तुम संसद में खड़े होकर किसके खिलाफ राजनीति कर रहे हो ? वो जो मर रहे हैं उनकी जिम्मेवारी कौन लेगा . लड़ने वाले लोग जिम्मेवार नहीं हैं…लड़ाने वाले लोग जिम्मेवार हैं . और एक कविता की पंक्ति मुझे याद आ रही है…शांति नहीं तब तक…जब तक सुखभाग ना सबका सम होगा…नर का सम है लेकिन मैंने सबका कर दिया है… शांति नहीं तब तक…जब तक…सुखभाग ना सबका सम होगा…नहीं किसी को बहुत अधिक और नहीं किसी को कम होगा…इसीलिए युद्ध के लिए जिम्मेवार कौन है? कौन लड़ाता है लोगों को? कैसे मर रहे हैं मेरे पिताजी और कैसे मर रहा है मेरा भाई ? हम पूछना चाहते हैं वही प्रदर्शन…वही कंटेट उसी डिजाइन के साथ
  9. देश के अंदर जो समस्या है…क्या उस समस्या से आजादी मांगना गलत है ? ये क्या कहते हैं किससे आजादी मांग रहे हो ? तुम्हीं बता दो कि क्या भारत ने किसी को गुलाम कर रखा है ? नहीं…तो सही में भारत से नहीं मांग रहे हैं . भारत से नहीं मेरे भाईयों…भारत में आजादी मांग रहे हैं और से और में….में फर्क होता है. अंग्रेजों से आजादी नहीं मांग रहे हैं . वो आजादी इस देश के लोगों ने लड़कर ली है .
  10. विज्ञान में कहा गया है कि आप जितना दबाओगे उतना ज्यादा प्रेशर होगा . लेकिन इनको विज्ञान से कोई लेना-देना नहीं है…क्योंकि विज्ञान पढ़ना एक बात है…वैज्ञानिक होना बहुत दूर की बात है . तो वो लोग जो वैज्ञानिक सोच इस देश में रखते हैं अगर उनके साथ संवाद स्थापित किया जाए तो इस मुल्क के अंदर जो आजादी हम मांग रहे हैं भुखमरी और गरीबी से…शोषण और अत्याचार से…दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए….वो आजादी हम लेकर रहेंगे…और वो आजादी इसी संविधान के द्वारा इसी संसद के द्वारा और इसी न्यायिक प्रकिया के द्वारा हम सुनिश्चित करेंगे . इसी मुल्क में ये हमारा सपना है . यही बाबा साहब का सपना था . यही साथी रोहित का सपना है . देखो…एक रोहित को मारा है . उसी प्रकिया में जिस आंदोलन को दबाना चाहा था वो कितना बड़ा बनकर उभरा है . कितना बड़ा इस मुल्क में खड़ा हुआ है…इस बात को देखिए .
  11. मुझे जेल में दो कटोरे मिले . एक का रंग नीला था और दूसरे का रंग लाल था . मैं उस कटोरे को देखकर बार-बार ये सोच रहा था कि मुझे किस्मत पर तो कोई भरोसा नहीं है . भगवान को भी नहीं जानते हैं…लेकिन अच्छा कुछ इस देश में होने वाला है कि एक साथ लाल और नीला कटोरा है एक प्लेट में…और वो प्लेट मुझे भारत की तरह दिख रही थी . वो नीला कटोरा मुझे आंबेडकर मूवमेंट लग रहा था और वो लाल कटोरा मुझे लेफ्ट मूवमेंट लग रहा था. मुझे लगा कि इसकी एकता अगर इस देश में बना दी गई . सच कहते हैं…अब नो मोर देखते हैं…बेचने वाले को भेजते हैं . बेचने वाला नहीं चाहिए . सबके लिए जो न्याय सुनिश्चित कर सके हम उसकी सरकार बनाएंगे . सबका साथ सबका विकास… हम सचमुच का स्थापित करेंगे… ये हमारी लड़ाई है .
  12. आज माननीय प्रधानमंत्री जी का…आदरणीय…बोलना पड़ेगा ना ? क्या पता किसको छेड़छाड़ करके फिर से फंसा दिया जाए . तो माननीय प्रधानमंत्री जी कह रहे थे…स्टॉलिन और ख्रुश्र्चेव की बात कर रहे थे . मेरी इच्छा हुई कि मैं टीवी में घुस जाऊं और उनका सूट पकड़कर कहूं मोदीजी थोड़ी हिटलर की भी बात कर लीजिए . छोड़ दीजिए हिटलर की…मुसोलिनी की बात कर दीजिए जिसकी काली टोपी लगाते हैं . जिससे आपके गुरु जी गोलवलकर साहब मिलने गए थे और भारतीयता की परिभाषा जर्मन से सीखने का उपदेश दिया था .
  13. तो हिटलर की बात…ख्रुश्र्चेव की बात…प्रधानमंत्री जी की बात . उसी वक्त योजना की बात हो रही थी . मन की बात करते हैं…सुनते नहीं हैं . ये बहुत ही व्यक्तिगत चीज है . मेरी मां से आज लगभग तीन महीने के बाद बात हुई है . मैं जब भी जेएनयू में रहता था मैं घर बात नहीं करता था . जेल जाकर एहसास हुआ कि बराबर बात करनी चाहिए . आप लोग भी करते रहिएगा अपने घरवालों से बातचीत . तो मैंने अपनी मां को कहा कि तुमने मोदी पर बड़ी अच्छी चुटकी ली तो मेरी मां बोली कि नहीं वो मैंने चुटकी नहीं ली . चुटकी तो वो लोग लेते हैं . हंसना हंसाना उनका काम है . हम तो अपना दर्द बोलते हैं . जिनको समझ में आती है तो रोते हैं…जिनको समझ में नहीं आती वो हंसते हैं . उसने कहा कि मेरा दर्द है इसलिए मैंने कहा था कि मोदी जी भी किसी मां के बेटे हैं . मेरे बेटे को देशद्रोह के आरोप में फंसा दिया है तो कभी मन की बात करते हैं…कभी मां की भी बात कर लें .
  14. ये बात मैंने आज तक आप लोगों को नहीं कही होगी और आप लोगों को मालूम भी नहीं चली होगी कि मेरा परिवार 3 हजार रुपये में चलता है . क्या मैं पीएचडी कर सकता हूं किसी बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में ? और इस तरीके से जेएनयू पर जब हमला किया जा रहा है और जो लोग इसके पक्ष में खड़े हो गए हैं . मुझे कोई सहानुभूति नहीं है किसी राजनीतिक पार्टी से क्योंकि मेरी अपनी एक विचारधारा है . लेकिन जो लोग खड़े हो गए हैं उनको भी देशद्रोही कहा जा रहा है . सीताराम येचुरी को भी मेरे साथ देशद्रोह के केस में डाल दिया . राहुल गांधी को मेरे साथ देशद्रोह के केस में डाल दिया . डी राजा को देशद्रोह के केस में डाल दिया . केजरीवाल को डाल दिया . और जो मीडिया के लोग जेएनयू के पक्ष में बोल रहे हैं दरअसल वो जेएनयू के पक्ष में नहीं बोल रहे…वो सही को सही और गलत को गलत बोल रहे हैं . जो सच को सच और झूठ को झूठ बोल रहे हैं उनको गालियां भेजी जा रही हैं . उनको जान से मारने की धमकी दी जा रही है . ये कैसी स्वयंभू राष्ट्रभक्ति है साहब ?
  15.  कुछ लोग तीन चार कॉन्सटेबल ने मुझसे जेल में पूछा कि सच में नारे लगाए हो? हम बोले सच में नारे लगाए हैं. फिर जाकर लगाओगे? बोले एकदम लगाएंगे. हम बोले फर्क कर पाते हैं कि क्या सही है? भाई साहब दो साल सरकार को आए हुआ है तीन साल और झेलना है. इतनी जल्दी देश अपनी पहचान को खो नहीं सकता है. क्योंकि इस देश के 69 फीसदी लोगों ने उस मानसिकता के खिलाफ वोट दिया है इस बात को लोकतंत्र में याद रखिए. केवल 31 फीसदी लोग और उसमें से भी कुछ आपकी जुमलेबाजी में फंस गए. कुछ को तो आपने हर हर कहकर ठग लिया आजकल अरहर से परेशान हैं. इसे आप अपनी हमेशा के लिए जीत मत समझिए.
  16. इनका ध्यानाकर्षण प्रस्ताव जिसे ये लोकसभा में लाते हैं. बाहर में लोकसभा के बाहर देश में ध्यान भटकाओ प्रस्ताव इनका चलता है. जनता के जो वाजिब सवाल हैं उनसे लोगों को भटका दिया जाए. लोगों को फंसा दिया जाए. किसमें…नया नया एजेंडा है इधर यूजीसी का आंदोलन चल रहा था साथी रोहित की हत्या हो गई. साथी रोहित के लिए आवाज उठाई…देखते ही देखते देखिए देश का सबसे बड़ा देशद्रोह…राष्ट्रद्रोहियों का अड्डा…ये चला दिया. ज्यादा दिन चलेगा नहीं. तो इनकी अगली तैयारी है…राम मंदिर बनाएंगे. आज की बात बताता हूं आज एक सिपाही से बात हुई है निकलने से पहले. कहा धर्म मानते हो? हमने कहा धर्म जानते ही नहीं हैं. पहले जान लें फिर मानेंगे. बोला कि किसी परिवार में तो पैदा हुए होंगे ? हमने कहा इत्तेफाक से हिंदू परिवार में पैदा हुए हैं. तो कहा कि है कुछ जानकारी? हमने कहा जितनी मेरी जानकारी है उसके हिसाब से…भगवान ने ब्रह्माण को रचा है और कण कण में भगवान है. आप क्या कहते हैं? उसने कहा बिल्कुल सही बात है. हमने कहा कि कुछ लोग भगवान के लिए कुछ रचना चाहते हैं इस पर आपकी क्या राय है? कहा महाबुड़बक आइडिया है. काठ की हांडी कितनी बार चढ़ाओगे भाई? 80 से एक बार 180 बना ली थी. बेड़ा पार लगा लिया था…मुख में राम बगल में छुरी. अबकी बार नहीं चलेगा. अबकी कुछ धूरी बदल गई है, लेकिन इनकी कोशिश है कि चीजों को भटकाया जाए. ताकि इस देश के अंदर जो वाजिब सवाल हैं उस पर विमर्श ना खड़ा हो.
  17. आज आप यहां खड़े हैं. आप यहां बैठे हुए हैं. आपको लगता है कि आपके ऊपर एक हमला हुआ है. सचमुच ये बड़ा हमला है लेकिन ये हमला मेरे दोस्त आज नहीं हुआ है. मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में बाकायदा एक कवर स्टोरी जेएनयू के ऊपर की गई थी. स्वामी जी का बयान आया था जेएनयू को लेकर…और मुझे लोकतंत्र में पूरा भरोसा है. अगर एबीवीपी के मेरे दोस्त सुन रहे हैं तो मेरा सादर अनुरोध हैं उनसे एक बार स्वामीजी को ले आइये. आमने-सामने विमर्श कर लेते हैं…मगर तार्किक तरीके से कुतर्क से नहीं. अगर तार्किक तरीके से वो साबित कर देंगे कि जेएनयू को चार महीने के लिए बंद कर देना चाहिए तो मैं उनकी बात पर सहमत हो जाउंगा. अगर नहीं तो मैं उनसे आग्रह करूंगा जैसे पहले देश से बाहर थे फिर से चले जाइये देश का कल्याण हो जाएगा.
  18. इस तरीके से हमला किया जाता है . मजेदार बात मैं आपको बताऊं…शायद आप लोग कैंपस के अंदर थे तो उन चीजों को देख नहीं पाए . कितनी प्लानिंग थी…पूरा प्लान . पहले दिन से प्लान था . इतना भी दिमाग नहीं लगाते हैं मेरे दोस्त…यहां के ABVP वालों का दोष नहीं है वो बाहर का ABVP है कि पोस्टर तक नहीं बदलता है . जो प्रदर्शन जिस हैंड बिल के साथ…जिस तख्ती के साथ…हिंदू क्रांति सेना करती है . वही प्रदर्शन उसी तख्ती के साथ ABVP करता है . वही प्रदर्शन…वही कंटेट उसी डिजाइन के साथ कोट एंड कोट एक्स आर्मी मैन मार्च करते हैं . इसका मतलब है कि सबका कार्यक्रम नागपुर में तय हो रहा है.
  19.  दो स्तर पर ये लड़ाई रहेगी . पहली जो जेएनयू छात्र संघ का अपना एजेंडा है हम उसको लेकर आगे बढ़ेंगे और दूसरा जो देशद्रोह का आरोप लगाया गया है उस आरोप के खिलाफ हम संघर्ष को तेज करेंगे और इस बात को झंडेवालान या नागपुर में नहीं तय करेंगे…विद्रोही भवन में तय करेंगे . अपने जेएनयू छात्र संघ के दफ्तर में तय करेंगे . अपने संविधान से तय करेंगे जो हमको लड़ने का अधिकार देता है . अपनी संविधान सम्मत लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे और तमाम टीचर…तमाम वो लोग हमारे साथी…जिनके ऊपर देशद्रोह का आरोप लगा है और जो लोग जेल में हैं उमर और अनिर्बान उनकी रिहाई के लिए संघर्ष करेंगे.
  20.  अदालत तय करेगी कि क्या देशद्रोह है और क्या देशभक्ति है ? ये मैडम स्मृति ईरानी नहीं तय करेंगी कि क्योंकि हम उनके बच्चे नहीं हैं. वो माय चाइल्ड….माय चाइल्ड…ये कहकर के बड़ा सॉफ्टली हम लोगों को निशाना बना रही हैं . एक बात मैं कह देता हूं और मेरी जो महिला साथी हैं वो अन्यथा ना लें…मैंने पहली बार स्मृति ईरानी जी के अभिनय कौशल को देखा. संसद में क्या परफॉर्मेंस था. फिर थोड़ी देर के लिए भूल गया कि मैं क्या देख रहा हूं. ये लोकसभा चैनल है. लोकसभा टीवी है या स्टार प्लस है? आदरणीय…परम आदरणीय…परम परम आदरणीय मैडम स्मृति ईरानी जी…हम आपके बच्चे नहीं हैं. हम जेएनयू वाले हैं और हम छात्र हैं. आप गंभीरता से हमारे बारे में सोचिए जो आप नहीं सोचती हैं . तो ये देशद्रोह का तमाशा बंद कीजिए. हमारी फैलोशिप हमको दे दीजिए और रोहित की हत्या जो हुई है उसकी नैतिक जिम्मेवारी ले ली लीजिए क्योंकि वो नैतिकता की बहुत बात करती हैं. नैतिकता की बहुत बात करते हैं तो नैतिक जिम्मेवारी लेकर के जो आपको उचित लगे…आपसे इस्तीफा भी नहीं मांगते हैं…वो आप कर दीजिए . नारेबाजी हम फिर भी करेंगे क्योंकि हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है.


(साभार : एबीपी न्यूज)