Tuesday, February 28, 2017

कुंवर शक्ति सिंह


जन्म- 10 जनवरी 1977, अखनूर (जम्मू व कश्मीर)
शिक्षा- यूनिवर्सिटी आफ जम्‍मू से फाइन आर्ट्स में पांच वर्षीय प्रोफेशनल डिग्री
पहचान- जर्नलिस्ट और कालमनिस्ट
 

दैनिक कश्मीर टाइम्स को सन 1994 में पत्रकार के रूप में ज्वाइन किया। सन 1998 में साप्ताहिक कालम 'दस्तक' को शुरू किया। उसके बाद सन 1996 से 1999 तक सब एडिटर के तौर पर कार्यरत रहे। सन 1999 में दैनिक जागरण के साथ पत्रकार के तौर पर काम भी किया।
फ्रीलांसर के तौर पर जम्मू से जुड़े मामलों और अनुभव कई पत्रिकाओं जैसे आटउलुक और द संडे इंडियन आदि में सन 2004  से साझा कर रहे।
 

दूरदर्शन जम्मू, श्रीनगर और दिल्ली के लिए नो वृतचित्रों को लिख चुके। आकाशवाणी के भी कई कार्यक्रमों में‌ शिरक्त।

छपे साक्षात्कार- वीपी सिंह, डा. असगर वजाहत, निदा फाजली, उस्ताद अहमद हुसैन, उस्ताद मोहम्‍म्द हुसैन, पद्मा सचदेव, अमृता प्रीतम, मधुकर, पंडित शिव कुमार शर्मा, जगजीत सिंह, उमर अब्दुल्ला, सईद अली शाह गिलानी, राजेंद्र यादव आदि
 

परिचर्चा- राम जेठमलानी, डा. फारूक अब्दुल्ला, उस्ताद अल्लाहरखा खान, उस्ताद जाकिर हुसैन, नक्‍श लायलपुरी, रामानदं सागर, डा. कर्ण सिंह, खुशवंत सिंह, महीदा गौहर आदि।



कुंवर शक्ति सिंह का काव्य संग्रह 'शहर जब सो जाता है' कुछ महीने पहले विमोचित किया गया। इसी संग्रह में से तीन कविताएं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हैं: 


जासमीन के फूल
(दिवंगत कामरेड मित्र मोहसिन के लिए)

जासमीन का फूल था वो
मुरझाने से पहले
टूट की बिखर गया
सब का कहना है-
'मोहसिन तो मर गया है'
मुझसे मेरे भीतर से
कोई बार बार कह रहा है
बांध टूट गया है, शहर बह गया है
यह कहां की है खुदाई
कि जगह जगह नजर आते है
उसके फूल से चेहरे पर
मुझे काली स्याही फेंक देनी होगी
घाव होने के कारण
मुझे जिस्म का वह हिस्सा ही काट देना होगा
ओ साथी
मैं क्या करूं
नेहरू से गांधी हुई पीढि़यों का
या 26 जनवरी के दिन
लोकतंत्र की सलवार फहराने वालों का
मेरे लिए तो अहमियत रखता है
अपने कसबे में बहनता चिनाब
विनोद दुआ की खबरें
या तुम्हारी चिट्ठी
हम एक और एक ग्यारह थे
हम किसी से कम नहीं थी
हममें से एक भी बचा तो
हम दोनों जिंदा हैं
हलाल पसीने की खातिर
लड़ते रहेंगे हम
ढलान से चढ़ाव की तरफ चलेंगे
बहाव के विपरीत बहेंगे
और दिन-दोपहर में
काले ही आसमान की स्टेज के पीछे
जा कर ही रहेंगे


 दस्तक

मेरी शायरी तवायफ ही सही
पर ऐसा भी नहीं
कि तुम जब भी दस्तक दो इस द्वार पर
यह खुल जाए...
छलनी में अटक गए हैं कुछ टुकड़े गुनाहों के
मेरी रात के सिरहाने
आहट आती रहती है जिनके पिसने की
कई सालों से सोया नहीं हूं
सन्नाटा पसरता रहता है आत्मा में
अनचाही स्मृतियों के साथ
सोचता हूं तो
तुम्हारा चेहरा नहीं दिखता
खुद को देखता हूं पत्थर हो चुका
शायद
तुम्हारी चूड़ी का कोई टुकड़ा
मेरे कमरे में नहीं है
तुम्हारा दिया हुआ कोई फूल
मेरी किताब में नहीं है!


अंधेरे से सनसेट तक, एक मुक्ति यात्रा

सदी के जितनी लंबी
गहरी सुनसान रात में
रोशनी का एक छेद हो गया
समय! जिसकी खबर ही नहीं थी
जमी बर्फ में से निकले लगा
निकल आया मैं भी उस कारावास से
मालूम नहीं था किधर है जाना!
मुक्ति के लिए किधर होता है जाना
पिंजरे से आजाद पक्षी किधर है जाता
कच्चे चूल्हों का धुआं किधर है जाता

एक टूटी फूटी सड़क के किनारे
ठिठुरते हुए कुछ लोग बस का इंतजार कर रहे थे
सोचा, इन्हें पूछूं - जाना है किधर?
फिर रहने दिया
यह जो घड़ियाल लटका है मंदिर के भीतर
कहीं गिर न जाए पुजारी के सिर पर
सोचा, बता दूं, फिर रहने दिया
रहने दिया सारा काम अधूरा ही
रात, जो रातभर
अपने दुपट्टे से आसमान पौंछती रहती
रहने दी।

कहते हैं
जहां वास्तव में होता है सन-सेट
वहीं समाया है समय का भेद
कई जलसमाधियों और अग्निसमाधियों
से होता हुआ उतर आया हूं इस जगह
यहां एक साथ होते रहते हैं
कईं सन-सेट।



संपर्क 
हाउस नंबर 48, वार्ड नंबर 2
अखनूर- जम्मू व कश्मीर
मोबाइल - 94196-31196
ई-मेलः  dastak.kt@rediffmail.com


(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)