Thursday, May 15, 2014

कुलदीप कुमार 'किप्पी'




डोगरी भाषा के युवा कवियों में कुलदीप कुमार 'किप्पी' की अलग पहचान है। तीन अगस्त 1975 को जन्म कुलदीप की किताब 'कोसा पानी' छप चुकी है। मानव जीवन के विभिन्न आयामों के पर कुलदीप की अच्छी पकड़ हैं। कवि सम्मेलनों में अपनी मधुर आवाज में रचना को पढ़ना किप्पी की एक और विशेषता है। साइंस में स्नातक के अलावा उर्दू और पंजाबी में डिप्लोमा के साथ किप्पी डोगरी में शिरोमणि हैं। कुलदीप इस समय होड़ कैंप स्कूल में शिक्षक है। नई चार गजलों के साथ  'खुलते किवाड़' पर दूसरी बार कुलदीप का स्वागत है। 



गजल

चोर चलाकी चलनी नेइयों
(चोर चलाकी नहीं चलेगी)
ठग्गी ठौरी फलनी नेइयों।
(ठगी-फरेबी नहीं फलेगी)।

 
भामें किन्ने पुठ्ठ करी लै
(चाहे कितनी भी कोशिश कर लो)
होनी आखर टलनी नेइयों।
(होनी आखिर नहीं टलेगी)।


भाईचारे दी बंड कराऊ
(भाईचारे को जो बांट कराए)
लंबडदारी चलनी नेइयों।
(नंबरदारी नहीं चलेगी)।


गिल्ला बाल्लन लाई बट्हलै
(नीचे गिला जलावन लगा कर)
सौ फूकं बी बलनी नेइयों।
(सौ फूंक मारो आग नही जलेगी)।


कर हीला कोई भावें 'किप्पी'
(चाहे कितनी भी कोशिश करो किप्पी)
गल्ले तेरी गलनी नेइयों।
(बातों से दाल नहीं गलेगी)।




गजल

सौ ही'लें निं उस्सरै बोह्ड़
(सौ कोशिशें की लेकिन बरगद नहीं बढ़ा)
खबरै कुस गल्‍ल दी थोड़।
(पता नहीं किस चीज की रही कमी।)

माली शरमें पानी होआ
(माली शर्म के मारे पानी पानी हुआ)
सारा बाग त्रट्टी चौड़।
(सारे का सारा बाग बिगड़ा हुआ है)

खुरपी गैंती विलखै करदी
(खुरपा और कुदाल बिलख रही है)
बागे अ'ल्ल मुहारां मोड़।
(अपना मुहं बाग की तरफ मोड़।)

'किप्पी' अपनें उद्दम ही'लें
(किप्पी अपने प्रयास से ही)
चुनदा जा बत्ता दे रोड़।
(रास्ते के पत्‍थर उठाता जा।)




गजल

सोंचे दे घेरें की खोहल दना
(सोच की घेरे को खोलो थोड़ा)
चुप्पी त्रोड़ियै बोल दना।
(चप्पी तोड़ कर बोलो थोड़ा।)

भागे दी काहरें भरोसा बी केह्
(भाग्य की लकीरों पर क्या भरोसा)
करमें दी लस्सी गी छोल दना।
(करमों की लस्सी को मथ्‍ाना थोड़ा।)

बेला सदा लेई रौहना निं इक्क
(समय ने सदा एक सा नहीं रहना)
बेले दा किश ते ऐ मोल दना।
(समय का भी तो मूल्या है थोड़ा।)

जीवन दे पैंडे कटोने निं कल्ले
(जीवन का सफर अकेले नहीं काटा जाएगा)
कर हां तुम्मी ते रहोल दना।
(तुम भी तो मेरा साथ दो मेरा थोड़ा।)



गजल

अंदर मेरे मरदा रोज
(मेरे अंदर मरता है रोज)
तां बी जी-जी करता रोज।
(तब भी जीना जीना करता है रोज।)
 

मैं मेरी बेपर्दा करदी
(मेरी मैं मुझको बेपर्दा है करती)
ऊ'यां करना पर्दा रोज।
(वैसे पर्दा करता हूं रोज।)

तुगी केह् उसनै जित्त दुआनी
(वह आपको क्या जीत दिलाएगा)
आपूं शां जो हरदा रोज।
(जो खुद से हार जाता है रोज।)

मन मेरे सौ चानन करदा
(मेरे मन में वह चांदनी कर देता है)
मोर इक नचदा, मरदा रोज। 

(मोर एक नाचता और मरता है रोज।)




पता -  
होड़ कैंपपोस्ट आफिस हरिपुर मोड़ 
तहसील हीरानगर,  कठुआ (जम्मू व कश्मीर)
मोबाइल - 0-94192-74987

(अनुवाद : कुमार कृष्णा शर्मा