31जुलाई 2013 का दिन जम्मू और कश्मीर के लिए ऐतिहासिक रहा। कारण था लोक मंच जम्मू और कश्मीर की ओर से मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कार्यक्रम
का आयोजन करना। जम्मू विश्वविद्यालय के सेंटर फार प्रोफेशनल स्ट्डीज इन उर्दू के सहयोग
से आयोजित कार्यक्रम में कवि और आलोचक प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव मुख्य वक्ता के तौर
पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में जम्मू विवि की डीन अकादमिक अफेयर प्रो. नीलम सराफ मुख्य अतिथी थीं जबकि वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर टाइम्स ग्रुप के चेयरमैन वेद भसीन ने कार्यक्रम की अध्यक्षता
की।
अपने व्याख्यान में प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव ने मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तित्व
के साथ साथ उनके कृतित्व के प्रत्येक पहलु पर विस्तार से विचार रखे। उनका कहना था कि
साहित्य कोई मनोरंजन की चीज नहीं है। प्रेमचंद ने जो लिखा उसके सामाजिक, राजनीतिक और
आर्थिक सरोकारों को जानना और समझना जरूरी है। प्रेमचंद उर्दू और हिंदी के पहले ऐसे
साहित्यकार थे जिन्होंने पति की संपत्ति में पत्नियों के अधिकार की बात की। वह लड़कियों
की शिक्षा के भी पक्षधर थे। प्रेमचंद मानते थे कि जिस प्रकार से हम अपने बेटों पर विश्वास
कर उन्हें घर से दूर शिक्षा के लिए भेज देते हैं, उसी प्रकार से लड़कियों पर भी विश्वास
करना होगा।
प्रो. श्रीवास्तव के अनुसार कि प्रेमचंद तब तक स्वतंत्रता को बेमानी समझते
थे जब तक उसमें मजदूरों और किसानों को हक नहीं मिले। जान की जगह गोविंद का बिठा देने
से कुछ हासिल नहीं होगा। आज के राजनीति के चेहरे को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है
कि प्रेमचंद की आशंका कितनी सही थी। उन्होंने प्रेमंचद के विभिन्न उपन्यासों और कहानियों
का जिक्र करते हुए प्रेमचंद के स्त्री विमर्श, दलित विमर्श समेत अन्य पहलुओं को उठाया।
इस मौके पर उपस्थित विश्वविद्यालय के छात्राओं और शोधकर्ताओं ने कई सार्थक सवाल भी
पूछे जिनका उत्तर प्रो. श्रीवास्तव ने दिया। कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों
ने हिस्सा लिया जिनमें विद्यार्थियों के अलावा साहित्यकार, रंगकर्मी, शिक्षक, मजदूर
और किसान भी शामिल थे।
जब तोड़ी गई परंपरा
कार्यक्रम में अंत में जब विश्वविद्यालय के छात्राओं और शोधकर्ताओं ने
कुछ सवाल पूछना चाहे तो कार्यक्रम में उपस्थित कुछ वरिष्ठ लोगों का तर्क था कि अध्यक्ष
के भाषण के बाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाने जैसी कोई परंपरा नहीं है। इस पर जम्मू विवि
के हिंदी विभाग के डा. ओपी द्विवेदी का कहना था किअगर ऐसी परंपरा है तो हमें ऐसी परंपरा
तोड़ देनी चाहिए। मुंशी प्रेमचंद का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है और ऐसे में इस
प्रकार की परंपराओं की बात क रहे हैं। आखिरकार परंपरा तोड़ी गई और सवाल पूछे गए जिनका
जवाब प्रो. श्रीवास्तव ने दिया।
शोधकर्ताओं और युवा कवियों को बढ़ाया उत्साह
प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव ने शोधकर्ताओं के साथ साथ युवा कवियों के साथ
मुलाकात की। उन्होंने इस मौके पर कविताओं को सुना और युवाओं को उत्साह बढ़ाया। इसके
अलावा प्रो. श्रीवास्तव ने जरूरी मार्गदर्शन भी किया।
कुमार जी, आप और आपकी पूरी टीम को इस सफल आयोजन के लिए बधाई
ReplyDeleteकिसी कारणवश मैं कार्यक्रम में नहीं आ सका, इसका खेद है। सार्थक और सफल आयोजन के लिए लोक मंच जम्मू कश्मीर के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं।
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