Thursday, December 8, 2022

फरीदा खानम- सुर सरहद की बंदिशों के मोहताज नहीं

 

सन 1988-89 की बात होगी। उस समय रियासत जम्‍मू कश्‍मीर में दूरदर्शन के अलावा पाकिस्‍तान टेलीविजिन देखा जाता था। कारण भी साफ था। उस समय टीवी सिग्‍नल ही इन्‍हीं दोनों चैनेलों के ही आते थे। वहीं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दूरदर्शन की तुलना में रियासत के अधिकांश घरों में पाकिस्‍तान टीवी के सीरियल ज्‍यादा मकबूल थे।

सीरियल के अलावा पीटीवी पर ऐसे कई कार्यक्रम चलते थे जिनमें पाकिस्‍तान के मशहूर गायक गजलें या नज्‍में पेश करते थे। मल्लिका-ए-तरन्‍नुम बेगम अख्‍तर, उस्‍ताद मेंहदी हसन, उस्‍ताद अमानत अली खान, इकबाल बानो, हामिद अली खान, मल्लिका पुखराज, गुलाम अली, शौकत अली खान, ताहिरा सईद, आबिदा परवीन, उस्‍ताद नुसरत फतेह अली, अत्‍ताउल्‍लाह खान, महनाज़, आरिफा सिद्दिकी कुछ आदि ऐसे नाम हैं जिनसे पहली बार मेरी मुलाकात पीटीवी के माध्‍यम से ही हुई। 

ऐसी ही एक गजल गायिका जिससे पीटीवी के माध्‍यम से मेरा राबता हुआ वह थीं क्‍वीन आफ गजल कही जाने वाली फरीदा खानम। फ़य्याज़ हाशमी की लिखी गजल- आज जाने की जिद न करो, अतहर नफ़ीस की लिखी- वो जो इश्‍क हमसे रुठ गया, फैज अहमद फैज की लिखी- शाम--फिराक अब न पूछ आदि फरीदा खानम की कुछ गाई ऐसे गज़ले थीं जिनको मैं अकसर गुनगुनाता रहता था। उस समय कभी सोचा भी नहीं था कि जिन चेहरों को मैं पड़ोसी देश के टीवी चैनेल पर देखता रहता हूं, उनमें से किसी एक से भी मिलना कभी नसीब होगा।



सुर सरहद की बंदिशों के मोहताज नहीं

बात तीस मार्च 2007 की है जब मुझे खबर मिली कि फरीदा खानम मंदिरों के शहर जम्‍मू में पहुंची हुई हैं। उस समय मैं अमर उजाला के साथ पत्रकार के तौर पर काम करता था। मुझको जब इस बात का पता चला कि वह हरि निवास पैलेस पर रुकी हुई हैं तो मैं दोपहर बाद करीब एक बजे हरि पैलेस पहुंच गया। वहां पहुंचा तो पता चला कि फरीदा जी शहर देखने निकली हुई हैं, जल्‍द आ जाएंगी। फरीदा जी का इंतजार मेरी सोच से भी ज्‍यादा लंबा निकला। वह चार बजे के करीब होटल पहुंचीं।

आप जमीन के उस हिस्‍से पर खड़ी हैं जो दोनों देशों के बीच तनाज़े का सबब है, उनसे मिलते समय दुआ सलाम के बाद मैंने आपनी बातचीत की शुरुआत सीधे इसी प्रश्‍न से की। इस सवाल पर उनका कहना था कि वह इस तल्‍खी से दुखी है। सियासत उनका मज़मून नहीं है। फिर भी वह यह कहना चाहती हैं कि सियासत दूरियां पैदा करने की चाहे जितनी कोशिश करे, सुर सरहद की बंदिशों के मोहताज नहीं होते। कलाकार को जो मोहब्‍बत और इज्‍जत अपने देश में मिलती है, उससे ज्‍यादा अपनापन और दीवाने दूसरे मुल्‍क में मिलते हैं। फनकार हर धर्म, जाति और देश से उपर होता है। दोनों देशों को चाहिए कि वह अपने झगड़े आपस में बैठ कर सुलझाएं।

 

खान साहिब की हूं मुरीद, फराज-फैज महबूब शायर

भारत रत्‍न बिस्मिल्‍लाह खान की फरीदा खानम खासतौर पर मुरीद हैं। उनका कहना था कि उनके बारे में जो भी कहा जाए वह कम है। उनको सुनना सबके नसीब में नहीं है। वह उन चंद खुशनसीब लोगों में से हैं जिनको खुदा ने खान साहिब की शहनाई सुनने का मौका बख्‍शा है। उनको सुनना अलग ही जोन में चले जाने जैसा है। फरीदा खानम जो की एक गजल गायिका हैंसे उनके महबूब शायरों के बारे में पूछना बनता था। इस बाबत उनका कहना था कि फैज अहमद फैज और फराज अहमद उनके महबूब शायर हैं। 

जब मेंहदी हसन का जिक्र करते लगाए कानों को हाथ

मैं खुद उस्‍ताद मेहंदी हसन का दीवाना हूं। इसलिए मैंने फरीदा खानम से मेंहदी हसन के बारे में खास तौर पर पूछा। उस समय उस्‍ताद जी छाती के संक्रमण के चलते बीमार थे। उनका जिक्र करते समय फरीदा खानम की आवाज भर आई। सम्‍मान में फरीदा खानम ने दोनों कानों का हाथ लगाते और अपनी कुर्सी से थोड़ा उठते हुए मेंहदी हसन का नाम लिया। उन्‍होंने दुआ में हाथ उठाते हुए कहा कि खुदा उनका जल्‍द आराम फरमाए। उस समय मैंने जो बात सीखी वह थी कि कैसे एक बड़ा कलाकार दूसरे बड़े कलाकार का सम्‍मान करता है।

बात बात में मैंने उनसे काफी देर से आने का जिक्र भी किया। उनका कहना था कि जम्‍मू में वह शॉपिंग के लिए गईं थीं। इस शहर में इतना कुछ अच्‍छा है कि उनको समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्‍या कुछ खरीदें और क्‍या नहीं। उनको समय का ध्‍यान ही नहीं रहा और उन्‍होंने चार घंटे इसमें लगा दिए।

 

प्रस्‍तुति और फोटोग्राफ: कुमार कृष्‍ण शर्मा

94191-84412

फरीदा खानम का फोटो उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है। )