Sunday, July 31, 2022
अमरदीप सिंह
Tuesday, July 26, 2022
सेमरसोत में सांझ- प्रकृति, प्रतिरोध और प्रेम का अभ्यारण्य
नुक्तावरों ने हमको सुझाया खास बनो और आम रहो
महफिल महफिल सोहबत रखो, दुनिया में गुमनाम रहो।
पीयूष जी की कविताओं का आधार प्रेम है। प्रेम ही
उनको वह जरूरी भाव, संवेदना, दृष्टि
और शिल्प देता है जो उनकी रचनाओं के कैनवास को सभी जरूरी रंगों से भर देता है।
इनकी कविताओं में कुछ ऐसा खास है जो छत्तीसगढ़ की मिट्टी और पानी की देन है। भारतीय
ज्ञानपीठ की ओर से प्रकाशित पीयूष के पहले काव्य संग्रह में कुल 57 कविताएं हैं।
1 सेमरसोत- उम्मीद और विश्वास
से ओत प्रोत
कहावत है कि रसोइया चावल बनाते समय केवल तीन चार
चावलों की जांच करके ही बता देता है कि चावल खाने के लिए तैयार हुए हैं या नहीं।
वह हर दाने की जांच नहीं करता। उसी प्रकार से सेमरसोत में सांझ काव्य संग्रह की
पहली तीन कविताएं उनके रचना संसार के बारे में बहुत कुछ कह देती हैं। यह तीन
कविताएं भले की सेमरसोत में भोर, बारिश और सांझ का जिक्र कलात्मक
तरीके से करते लगती हों, वास्तव में यह कविताएं उम्मीद,
विश्वास और प्रतिरोध की कविताएं हैं।
पास के ही खैपरैल वाले मिट्टी के घर में
बागर साय का छोटा लड़का
आंगन की धूप में लिख रहा है वर्णमाला
जिसे सुबह देर तक निहार रही है लाड़ से
पीयूष जी खुद शिक्षक हैं। शिक्षा का महत्व जानते
हैं और पिछड़े इलाकों में शिक्षा की ललक को भी। इसलिए वह छोटे लड़के को लाड़ से
देख रहे हैं। कवि लाड़ के स्थान पर स्नेह, प्रेम, ममता आदि शब्द इस्तेमाल कर सकता था। लेकिन उसने लाड़ का ही इस्तेमाल क्यों
किया यह खोजना पाठक का काम है।
आगे घाट के मंदिर का जिक्र है। जो लोग पहाड़ों में
सफर करते हैं वह इस बात को जानते हैं कि पहाड़ों में हर खतरनाक सड़क पर इस तरह के
मंदिर होते हैं जिनके विश्वास पर सफर किया जाता है। यह कविता पढ़ कर ऐसा लग जैसे
में जम्मू कश्मीर के पहाड़ी इलाके में सुबह को देख रहा हूं। हर पाठक कविता को
अपना समझे, यही इसकी ताकत है।
आषाढ़ की बारिश में सोनापति का दोने में लेकर पुटू बेचना, कंडक्टर का कम दाम में देने के लिए कहना, सोनापति
का इंकार में सिर हिलाना, संसाधनों की लूट में मिट्टी पसीने
का शामिल होना, कवि का इसे जरूरी घटना बताना, मंथर सेमरसोत से कवि का पूछना और उसका सहमित में सिर हिलाना कवि के विचार,
शिल्प, पक्षता और उसकी उम्मीद की उम्दा
मिसाल है। कविता सेमरसोत में बारिश कवि के हाशिए पर खड़े लोगों के साथ खड़ा रहने
के लिए याद रखी जाएगी।
सेमरसोत में झप्प से गिरती है सांझ
साल के जंगलों में पसरती
मोड़ की एक चट्टान पर ठहरती है
और लेती है सांस
जिसे बस की खिड़की पर
बैठा कवि जी भर के देखता है
और सांझ लाज से संदूरी हो जाती है
सेमरसोत में सांझ में यह शब्द बताते हैं कि कवि
केवल दर्शक नहीं है, वह इन घटनाक्रमों को जी भी रहा है।
2 मिथकों को ध्वस्त करते मिथक
वर्तमान समय मिथकों को गढ़ने का समय है। एक खास
वर्ग हर दिन आधुनिक मिथक गढ़ जनमत तैयार करने में लगा हुआ । विश्व गुरू भारत, नारी शक्ति, मातृ शक्ति आदि इसके उदहारण है। कवि ने
पैराणिक मिथकों के सहारे वर्तमान को रचा है। अपाला, गार्गी
और लोपामुद्रा ऐसी तीन कविताएं हैं जो समाज के हिंसक भीड़ में बदले जाने और
महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को जोरदार तरीके से उठाती हैं। यह कविताएं स्त्री
सम्मान के लिए गढ़े जाने वाले तमाम मिथकों को ध्वस्तभी करती हैं।
अपाला
काल भिन्न पर देश वही है
आज भी छोड़ने की परंपरा जारी है
जहां छोड़ी हुई गुनाहगार है
जिसे टीआरपी की चोंच लिए गिद्ध
उसमें चर्मरोग खोजते हैं
और दिखाने के लिए सैकड़ों मोतियाबिंद वाले कैमरे
हैं
हजारों चीखते स्क्रीन हैं
कविता अपाला वर्तमान पत्रकारिता को चुनौती देती है। मानवता की सारी हदें पार कर चुकाटीआरपी का खेल हमारी सोच से भी ज्यादा क्रूर है। अपाला मीडिया की अपनी जिम्मेवारी से पलायन की भी मिसाल है।सुशांत सिंह राजपूत हत्याकांड के बाद प्रिया चर्कवर्ती के मीडिया ट्रायल को केंद्र में रखकर लिखी गई अपाला में कवि आगे लिखता है
अपाला
यह संचार का युग है या मध्ययुग
समझ नहीं आता
हिंसक समाज के पैने नाखून
माइक की शक्ल में निकल आए हैं
यहां हर पिता रोता है
कोई इंद्र आगे नहीं आ रहा उसे ठीक करने
हर शाम पांच बजे से लेकर रात दस बजे तक टीवी चैनेलों पर जो जहर परोस जो नैरेटिव सेट किया जा रहा है, अपाला उसे नंगा करती है।
टीवी चैनेलों के अलावा अखबारों, फेसबुक और व्हटसऐप के माध्यम से परोसे जाने वाली झूठी और ध्रणा से भरी जानकारियों के बाद समाज में जो परिवर्तन आया है, गार्गी और लोपामुद्रा उसे आगे बढ़ाती हैं।
जामिया मिलिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्वालयों
में महिला छात्राओं के साथ होने वाली नग्नता और हिंसा को कवि मिथकों की मदद रचता है।
अभी व्यस्त हैं जनक
उनकी ओर उम्मीद मत देखो
या
लोपा
स्त्री प्रताड़नाओं के स्वर्ग
इस नव महादेश में
वैदिक युग के
किसी अगस्त्य की
प्रतीक्षा
व्यर्थ है।
इन पंक्तियों के माध्यम से इस हिंसा को रोकने में
विफल रहे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक सिस्टम को भी कवि ने नंगा किया है।
3 घुटती सांसों को दम देती कविताएं
शायर कमर सीवानी लिखते हैं
खबर क्या थी मिट जाएगी आदमियत
कहीं नस्ल होगी कहीं जात होगी।
पीयूष कुमार की कविताएं नस्ल, जाति, रंग, धर्म, भाषा की दमघोटू हवा में ताजा हवा का झोंका हैं। समकालीन घटनाओं को केंद्र
में रख कर लिखी गई यह कविताएं समानांतर इतिहास भी लिख रही हैं।
जार्ज नाम लिख लेने से
किंग जार्ज नहीं हो सकते थे तुम फ्लॉयड
गोरे रंग पर एकाधिकार है खास नस्ल का
इसलिए व्हाइट हाउस, बर्मिघम
पैलेस
और न जाने कितने राजभवनों का रंग सफेद है
शेक्सपियर मेरे दोस्त, तुमने ठीक कहा था
नाम में क्या रखा है
रखा तो कुलनाम में है
रंग में है
नस्ल में है।
हालांकि इसी कविता में ही परिवर्तन की उम्मीद कवि जगाता है, लिखता है
घुटने को हथियार बनाकर हत्या करने वाले
पुलिसिया डेरेक चौविन की पत्नी केली
तलाक ले रही है उससे
उसे हत्यारे की पत्नी बनना मंजूर नहीं
वह कह सकती थी
ये काले दलित तो मरने के लिए ही हैं
या केस भी रफा दफा करवा सकती थी
क्योंकि ऐसा होता रहता है दुनिया में
पर उसका जमीर जिंदा है
यह जमीरवाली अमेरिकी औरत
उदहारण न बन जाए
आज चिंता का विषय है हत्यारों में।
ढिंग एक्सप्रेस एक साथ कई सवाल खड़े करती है। जाति, बाजार, जमीन और वर्ग विशेष के बर्चस्व की मानसिकता
रेखांकित करती यह कविता अभावों में पल रही बेटियों को आगे बढ़ने का साहस देती है।
हम सभी के आसपास ईंटों का कोई न कोई भट्टा जरूर
होगा। इन भट्टों पर अधिकतर मजदूर छत्तीसगढ के ही होते हैं। इन मजदूरों को ध्यान
से देखों तो उनमें ऐसी बच्चियां भी होती हैं जिनके हाथों में मिट्टी और ईंट के
सांचों के स्थान पर पेंसिल और कॉपी होनी चाहिए।
पिता का कर्ज उतारने
अपनी माटी से दूर
पराई मिट्टी से ईंटे बनाती है, पकाती है
और खुद पकती है
इनके हाथों से बनी
ऊंची ऊंची दीवारों में
लगने वाली ये ईंटें
क्या कभी सोचती होंगी
कि सुदूर छत्तीसगढ़ के
किसी गांव के किसी घर की
मिट्टी की दीवार
कितनी अकेली हैं।
इस कविता को पढ़ने के बाद यह अहसास होता है कि जिस
कमरे में मैं बैठा हुआ, उसके निर्माण में छत्तीसगढ की
किसी बेटी का योगदान भी है। यह अहसास बेचैन कर देता है।
पिछले दिनों रिप्ड जींस भी काफी विवादों में रहीं
और इसको नारी के चरित्र के साथ जोड़ दिया गया। लेकिन पीयूष अपनी कविता रिप्ड जींस
में बाजार के चरित्र और मजदूर की पीड़ा को केंद्र में रखते हैं। इसमें वह श्रम के
समर्थन में खड़े हैं। बाजार किस प्रकार से प्रतिरोध को भी भुना लेता है, रिप्ड जींस उसी का उदहारण है।
बाजार इसे भी भुना लेता है
ब्रांड नेम के साथ कहता है रिप्ड जींस
इन रिप्ड जींसों के बाहर झांकती है त्वचा
और खिलखिलाती है
जिसे कोई कह देता है अपसंस्कृति
रिप्ड दिमागों से छलकती
एक ही कविता में कवि ने इतिहास, वर्तमान, पुरुष सत्ता और मजदूरों को पिरो दिया है।
ऐसी कविताएं आजकल दुलर्भ होती जा रही हैं।
मेरे पिता जी अकसर मुझे संस्कृत भाषा में एक बात
सुनाते हैं। उसका अर्थ यह है कि लक्ष्मीपति अपने सेवकों के दर्द को कहां समझता
हैं। क्षीर सागर में शेषनाग पर लेटे भगवान विष्णु क्या शेषनाग को होने वाले कष्ट
के बारे में सोचते हैं। पिता जी के इस अनुभव का साक्षात्कार लॉकडाउन के दौरान
हुआ। कविता वापसी मजदूरों की इसी पीड़ा का मार्मिक अनुवाद है।
वापसी नियम है
लाखों सालों में पानी वापस आ जाता है
यु्द्ध से भी लौट आता है जीवित बचा सैनिक
निकल आती हैं कटे पेड़ की कोंपल
आ ही जाता है जहाज का पंक्षी
बच्चों की शक्ल में आ जाते हैं पूवर्ज
पेड़ का बीज जमीन पर गिरकर
उग ही जाता है फिर से
कमबख्त भूख भी आ ही जाती है बार बार
मरती नहीं यह
कहीं बंद नहीं होती
काश भूख पर ताला लगाया जा सकता
ताकि न लौटे
कभी कोई इस तरह।
लॉकडाउन में प्रेम कविता भी इस मारक समय में प्रेम
की दशा को शब्द देती है जब किसी के मिलने ज्यादा उसका होना ज्यादा महत्वपूर्ण
हो गया है।
फोन पर यह सब बात करते नम हो जाती है
तुम्हारी आवाज
पूछता हूं कभी अब मिलना होगा
कहती हो
जहां हो, जैसे हो ठीक से
रहो
तुमसे मिलने से ज्यादा
तुम्हारा होना जरूरी है।
4 तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
पाकिस्तान के शायर बिस्मिल साबरी लिखते हैं
वो अक्स बन कर मेरी चश्म-ए-नम में रहता है
अजीब शख्स है पानी के घर में रहता है
किताब में प्यार, बारिश और
यादें शीर्षक से चार, गर्मियां प्यार और यादें शीषर्क से
तीन और सर्दियां, प्यार और यादें से चार कविताएं हैं। इन
कविताओं में प्रेम के सभी रंग और मौसम हैं।
बड़ी मुश्किल से तीन लफ्ज
लिखे थे तुमने...
कहा था अकेले में पढ़ना
बारिश में उड़ता फिरा था मैं
मुट्ठी में वह पुर्जा दबाए...
जब खोला तो पाया
स्याही में बदल चुके थे लफ्ज
नीला होता है प्यार का रंग
उसी बारिश में मैंने जाना था
पीयूष जी उन खुशकिस्मत लोगों में से हैं जिनको प्यार
का रंग जानने का मौका मिला है। प्रेम के रंग पक्के रंग होते हैं, यह आसानी से कहां छूटते हैं। बारिश को लेकर पाकिस्तान के शायर मुनीर
नियाजी लिखते हैं
गम की बारिश ने भी तेरे अक्स को धोआ नहीं
तुमने मुझको खो दिया मैंने तुझको खोआ नहीं।
प्रेम के एक और रंग में पीयूष लिखते हैं
अपनी खिड़की के कांच में
जमी धुंध पर
कभी लिखा था तुमने
उंगलियों से मेरा नाम
वह धुंध लौट आई है अभी
मेरी खिड़की पर
तुम्हारे नाम के साथ
बाल्टी से छलकते पानी की हंसी, कैलेंडर बदलते हैं, प्रेम वहीं रहता है, आंखों में उगा हरापन, सेवंती सी तुम्हारी हंसी,
रजनीगंधा, पटरियों से आती तुम्हारी याद आदि
कविताओं में ऐसे दश्य रचे गए हैं जिनको पढ़ने के बाद यही प्रार्थना निकलती है कि ईश्वर
सभी को प्रेम की ऐसी भावना दे। इन कविताओं को पढ़ते हुए एक ओर शेर अचानक ही याद आ
जाता है
रस्म–ए-उल्फत ही इजाजत नहीं देती वरना
हम भी ऐसा तुझे भूलें कि सदा याद करो।
5 ऑनलाइन, ऑफलाइन और
गांधी जी
वर्तमान समय के प्रेम में इंटरनेट की भूमिका अहम हो
गई है। यही कारण है कि पीयूष की कई प्रेम कविताओं में ऑनलाइन, ऑफलाइन, स्टेटस, व्हाट्स एप्प,
इमोजी, गैलरी, डाटा,
इयरफोन आदि शब्द मिल जाएंगे। इंटरनेट की दुनिया के शब्दों को
मानवीय भावों और आधुनिक जीवन शैली के साथ बहुत ही सहजता से पिरोया गया है। पढ़ने
पर लगता है अरे, ऐसा भी लिखा जा सकता है, ठीक इसी प्रकार
उधर जंगल में नदी सिमट रही खुद में
और किनारों पर
छोड़ जा रही मन की नमी
ताकि सुबह
वहां तुम्हारा नाम लिख सकूं
प्रेम की यह नदी
नहीं सूखेगी गर्मियों में भी
वह भी रहेगी हमेशा ऑन लाइन
तुम्हारा स्टेटस देखता हूं
इमोजी में मुस्कुराता हूं
तुम भी वैसे ही मुस्कुराती हो
दो बार…
सोचता हूं
इस चित्रलिपि ने
क्या सिंधु सभ्यता में भी इसी तरह
इमोशन को जाहिर किया होगा
गांधी जी को अंहिंसा, सत्य,
समानता, लोकतांत्रिक मूल्यों, नैतिकता आदि का केयरटेकर कहा जाता है। बापू को अपने प्रेम में शामिल करना
और उनको अपने प्रेम के उपहार का केयरटेकर बनाना, यह कमाल
पीयूष ने किया है। मेरा मानना है कि गांधी जी ने इस नई जिम्मेवारी को सहर्ष स्वीकार
किया होगा। कविता गांधी जी के पास रखा स्वेटर में कवि लिखता है
सुन रही हो न तुम
मैंने गांधीजी के पास
मेरे नेह की महकती धूप
रख दी है तुम्हारे लिए
अपने प्रेम के स्वेटर में लपेटकर
आकर ले जाना।
पीयूष जी की कुछ कविताओं को पढ़ते समय गुलजार की
याद आ जाती है। हालांकि किताब में गुलजार के लिए भी एक कविता है।
पीयूष जी उस इलाके से आते हैं जिसका बड़ा हिस्सा नक्सलवाद से प्रभावित ह। इसके अलावा आदिवासी इलाका भी है। यह वह इलाका है जिधर से हिंसा और मानवाधिकार हनन आदि की खबरें वेचैन कर देती हैं। अपनी पहली किताब ने पीयूष जी ने आदिवासी लोक संस्कृति को खूब स्थान दिया है। छत्तीसगढ़ का होने के कारण हमारी से कवि से उम्मीद जगती है कि वह अपने राज्य के वह मुद्दे जिनकी अंतरराष्ट्रीय अहमियत है, की पीड़ा और हकीकत अपनी रचनाओं में लाएं। उम्मीद है कि उनके दूसरे संग्रह में हमें ऐसी रचनाएं पढ़ने को जरूर मिलेंगी। इनी शब्दों के साथ आप सभी का धन्यवाद और शुभकामनाएं।
(यह समीक्षा 16 जनवरी 2022 को गाथांतर के फेसबुक
पेज पर आयोजित कार्यक्रम दास्तान-ए-किताब के तहत
पढ़ी जा चुकी है)