माँ : सुश्री नीता
पिता : श्री देव राज
जन्म : १ ५ मार्च १ ९ ९ ४ को
शिक्षा : स्नात्तक दूसरे वर्ष की छात्रा हैं ।
लेखन : अब तक सिर्फ १ ५ -२ ० कविताएँ ही लिखी हैं।
प्रकाशित : ' आते हुए लोग ' और अपने महाविद्यालय की पत्रिका में
अन्य : पर्यावरण प्रेमी हैं और श्रम को शाश्वत सौन्दर्य मानती हैं
इनकी कविताओं में भाव , संवेदना और विद्रोह का सुन्दर संयोजन है। सरल शब्दों में कहने का ढंग पाठक को मोह लेता है।
सच्चे अर्थ में यह स्त्री मन की अभिव्यक्ति है। मानवीय और प्रेम से परिपूर्ण। ढेरों शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत हैं शालू की कुछ कविताएँ।
मन करता है
मन करता है
कुल्हाड़ियों में बदल दूँ
उन कोठरियों को
जिनको लकड़ी नसीब नहीं होती ...
कच्ची सड़कों को
बाढ़ में बदल
मोड़ दूँ
महलों की तरफ
लिख दूँ
उज्ज्वल भविष्य
फुटपाथ के माथे पर ...
मन करता है
भले साध न पाऊँ
पर जीवन में उतार लूँ कविता।
डायरी
एक कोरी
डायरी को भी
तुम भर सकते हो
मेरे पास
जो स्याही है
उसे लेकर
कुछ उकेरना तो शुरू करो
तुम जान जाओगे
तुम्हारे हाथों में
डायरी को किताब बनाने का हुनर है।
मैं और तुम
मैं सड़क किनारे
उग आई कंटीली झाड़ी हूँ-
तुम मुझे गले लगाती हुई धूल।
कुंभ स्नान
खोजने निकली
उड़ान भरती चिड़िया
जले हुए पंख मिले
विषैले साँपों के डंक मिले ...
बाल खुले छोड़
धरती मातम मना रही है
चिड़िया के मरने का
हम कुंभ स्नान कर रहे हैं।
हम यूँ एक हैं
हम यूँ एक हैं -
रात दिन
दीवारों से टकराते
घावों पर पट्टी बाँधते
उनको समझते हुए
जो काटते हैं
हमारे पाँव तले की ज़मीन
सामने रख देते हैं
सजाकर रोटी के टुकड़े ...
हम एक हैं।
सम्पर्क : द्वारा - देव राज
गाँव व डाक - काली बड़ी , साम्बा
( १ ८ ४ १ २ १ ) जम्मू व कश्मीर
( यह प्रस्तुति चर्चित युवा हिन्दी कवि कमल जीत चौधरी द्वारा की गई है। )