Saturday, October 1, 2022

अमन जोशी 'अज़ीज़'


नाम - 
अमन जोशी 'अज़ीज़'

शिक्षा - M.A.,M.Phil.,M.Ed.

युवा शायर अमन जोशी 'अज़ीज़' लुधियाना से संबंध रखते हैं और पंजाब शिक्षा विभाग में बतौर अंग्रेज़ी लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं। बेहद मिलनसार, शांत और सादा तबियत के मालिक अमन से मेरी उनसे मुलाकात लुधियाना में हुई थी। 

'खुलते किबाड़' पर पूरे सम्‍मान के साथ उनकी कुछ गजलों को सहर्ष साझा कर रहा हूं। गजल से पहले उनके कुछ अशआर 

# बात कहने के सौ तरीक़े हैं

कुछ न कहना भी इक तरीक़ा है


# आँख से देखा भी जा सकता है

वैसे रोने के लिए होती है


# पाँव के नीचे से कालीन हटाया जाए

ताजदारों को ज़रा होश में लाया जाए 


# परिंदा रोज़ क्यूँ आ बैठता है मेरी चौखट पर

मेरे दरवाज़े की लकड़ी यक़ीनन जानती होगी


# आप लायक़ नहीं मुहब्बत के

आपका दिल दिमाग़ जैसा है 




गजल


यूँ सर-ए-बज़्म तमाशा न बनाया जाए

बात मेरी है तो फिर मुझको बताया जाए

दिल ब-ज़िद था कि तेरा फ़ोन मिलाया जाए
भूलने वाले तुझे याद तो आया जाए

पाँव के नीचे से कालीन हटाया जाए
ताजदारों को ज़रा होश में लाया जाए

शायरी का ज़रा माहौल बनाया जाए
मुझे हर शेर पे इक जाम पिलाया जाए

एक महताब की आमद का भरम है मझको
बर-सर-ए-राह सितारों को बिछाया जाए

हो किसी की भी मगर इतना तो हक़ रखती है
यार ! मय्यत को सलीक़े से उठाया जाए

ख़ाली जेबें हैं खिलौने न दवा ले पाया
कौन सा मुँह लिए घर लौट के जाया जाए

आबला-पा भी तेरी सम्त चले आएँगे
शर्त ये है कि मुहब्बत से बुलाया जाए

उसकी तस्कीं का तक़ाज़ा है कि मैं चूमूँ फ़लक
और फिर मुझको बुलंदी से गिराया जाए

अपने होने का कुछ एहसास दिलाया जाए
शेर अच्छा लगे तो खुल के बताया जाए



गजल

जब तलक हमने सहा है
तब तलक रिश्ता रहा है

ख़ुद कहन से क़ीमती है
कब कहाँ किसने कहा है

आँखें जब बंजर हुई हैं
इश्क़ नदियों में बहा है

पहले खिसकीं थीं दीवारें
घर तो आख़िर में ढहा है

अब हमारी चुप को समझो
अब सुख़न की इंतिहा है



गजल

ऊपरी तह तो मख़मली होगी
फिर ज़मीं सख़्त-ओ-खुरदरी होगी

इश्क़ वो जंग है नए लड़को
फ़तह होगी न वापसी होगी

जब दीवारों के कान होते हैं
खिड़कियों की तो आँख भी होगी

क़त्ल करती है बेबसी लेकिन
दर्ज काग़ज़ पे ख़ुदकुशी होगी

पाँव चादर में ही रखोगे तो
चादर अगले बरस बड़ी होगी

उसके आने पे इस बग़ीचे ने
उसकी तस्वीर खींच ली होगी

जब भी सिगरेट नई जलाता हूँ
सोचता हूँ ये आख़री होगी



गजल

कड़कती धूप में भी रात रानी याद रखते हैं
उदासी लाख हो हम शादमानी याद रखते हैं

विरासत है हमारी ख़ानदानी याद रखते हैं
मुहाजिर लोग हैं चोटें पुरानी याद रखते हैं

हमें उसकी ख़ुमारी में बहुत आसान है जीना
सुलगती रेत पर चलते हैं पानी याद रखते हैं

किनारे साथ होने का भरम हो ही नहीं सकता
कि हम दरिया हैं सो अपनी रवानी याद रखते हैं

भुला सकते हैं दुश्मन की ख़ताएं लाख हम लेकिन
हम अपने दोस्तों की मेहरबानी याद रखते हैं

मुकम्मल हो नहीं पाया वो शेर-ए-ज़िंदगानी पर
कहीं पर भी रहें हम अपना सानी याद रखते हैं

ज़रा हमदर्दी से पेश आते हैं वो नौजवानों से
बुढ़ापे में जो लोग अपनी जवानी याद रखते हैं

हमारी शायरी के यूँ तो वो क़ायल नहीं लेकिन
हमारे शेर सारे वो ज़ुबानी याद रखते हैं



गजल

उसने दस्‍तक दी मेरे दरवाज़े पर
रंग लौट आया मेरे दरवाज़े पर

आज़माकर सब को बारी बारी वो
फिर चला आया मेरे दरवाज़े पर

मेरी मैं, फिर उसपे दुनिया की हया
यानी, दरवाज़ा मेरे दरवाज़े पर

पुरसुकूँ था तपती दोपहरी के दिन
तेरा रुक जाना मेरे दरवाज़े पर

मैं ख़ुदी के रक्स में मख़मूर था
जब ख़ुदा आया मेरे दरवाज़े पर

बदनसीबी ! आज मैं ख़ुश हूँ बहुत
फिर कभी आना मेरे दरवाज़े पर

'ग़म-गुसारों के लिए फ़ुर्सत नहीं'
मैने लिख डाला मेरे दरवाज़े पर

मैंने सच की राह पकड़ी थी 'अज़ीज़'
लग गया ताला मेरे दरवाज़े पर


अमन जोशी 'अज़ीज़'

संपर्क:- 98142-98099


प्रस्‍तुति और फोटोग्राफ:- कुमार कृष्‍ण शर्मा

94191-84412