Sunday, August 2, 2020

भगवती देवी


भगवती देवी की लेखन यात्रा 2011 में शुरू हुई। वे जम्मू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से Ph.D हैं, इन दिनों वहीं अस्‍थाई तौर पर पढ़ा रही हैं। संघर्ष के इस दौर में कविता को वे निजी व सामूहिक ताकत मानती हैं। सात साल पहले इसी ब्लॉग पर उनकी तीन कविताएँ प्रकाशित हुई थीं। इस बीच उन्होंने छिटपुट शोध-आलेख और कविताएँ लिखीं। वे कुछ पत्रिकाओं और ब्लॉग्स में छप चुकी हैं। कुछ मंचों से कविता पाठ भी किया है। इन दिनों वे 'युवा हिन्दी लेखक संघ' की उपाध्यक्ष हैं। 'सन्दर्भ' नामक ब्लॉग में एक साहित्यिक स्तम्भ और 'तवी' नामक यू-ट्यूब चैनल भी चला रही हैं। लेखन में भी वे एक संयम के साथ सक्रिय हैं। 
इनकी कविताएँ मिलीं, दो-तीन बार पढ़ीं। इनकी कविताएँ व्यवस्था जनित डर के बीच स्त्री के अस्तित्व या अस्मिता की तलाश हैं। इनके सपनों और चुनौती के कदम और मज़बूत हों, भाव संसार  सघन हो, दृष्टि और पैनी हो। इससे आगे की कविताई व उज्ज्वल भविष्य के लिए अतीव शुभकामनाएँ। लीजिए इनकी चार कविताएँ पढ़ें। 


कैद के अन्दर कैद  

देखा सड़कों को उदास 
गलियों को रोते हुए 
मैंने देखा 
सड़कों को सुबकते हुए 

समय बिलकुल थम गया

हमें घर में कैद 
होना पड़ा 
और छोड़ना पड़ा
सड़कों को सड़कों पर उदास।

यह ऐसा समय था 
जिसमें सड़कों पर 
नहीं थे स्कूल जाते बच्चे
न ही अख़बार बेचते बच्चे

नहीं था ठेले वाला 
नहीं था रिक्शे वाला 
नहीं थी गाड़ी 
नहीं थी रेलगाड़ी

हवाई जहाज़ के पहिए भी 
रुक गए
ये ऐसा समय था 
जब योगी गेट*  की सांसे भी 
फूल चुकी थी 
अन्तिम यात्रा को कंधा नहीं था
सड़कों के साथ 
पूरा संसार उदास था 
ये संदेह से भरा समय था 

डर को और ज़्यादा महसूस किया

यह कैद के अन्दर 
एक और कैद की यातना का समय था।  

योगी गेट* - जम्मू में एक शमशान घाट


उसकी आँख

मुझमें वह ढूँढ़ा गया
जो मुझमें था ही नहीं
मीलों चलकर भी 
वह मुझ तक कभी न पहुँच सका

वह जिस दिशा में चलता रहा
वहाँ मेरी तलाश का एक बीज तक न था
वहाँ तो उसकी अपनी आँख टंगी थी।

इस भाषा से

मुझे दरकिनार कर
झुठलाते हो ज़िंदा प्रेम को 
दबाना चाहते हो
इस अंकुर को
तुम्हारी लाख कोशिश के बावजूद भी 
प्रेम फूटेगा ही...
इस पौधे पर 
एक ऐसी भाषा के फल लगेंगे
जिसे तुम सदियों से 
चखना चाहते हो
पर इस भाषा से तुम डरते हो।


नाप

जीवन जीना सबके हिस्से में कहाँ
बेहतर सोचना सबके हिस्से में कहाँ
मन की पतंगे उड़ाना सबके बस में कहाँ
 
सबकी छाप में कहाँ-

भीड़ छोड़कर
सामूहिक गीत गाना सबके गलों की नाप में कहाँ। 


सम्पर्क:-
नरसिंह मन्दिर कॉलोनी, घग्वाल, 
तहसील व जिला- साम्बा, जम्मू व कश्मीर
मेल आई.डी.- parul1286@gmail.com




प्रस्तुति :- 

कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - 09419274403
ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com







फोटोग्राफ: कुमार कृष्‍ण शर्मा

8 comments:

  1. बहुत ही सुंदर 👌👌👌👌💐💐💐

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  2. खुलते किवाड़ ने पुनः मुझे मंच प्रदान किया ।
    बहुत - बहुत धन्यवाद ।

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  3. Bhagwati g aap aise hi kavitayein likh kr sahitya jgat mein naam kmayein. . Yhi shubhkamnayein

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  4. Very very nice dear Bhagwati. You are doing great in your field. M proud of you. Keep shining. Keep writing. God bless you

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