ब्लैक डे का कोई साहित्यिक महत्व नहीं है। लेकिन इसे पोस्ट करने का मकसद केवल और केवल इतना है कि सत्ता और पुलिस के तालमेल से किए जाने वाले दमन की एक पुरानी घटना को याद किया जाए। सत्ता समर्थित आतंक किस प्रकार से काम करता है, यह घटना उसकी एक बानगी है। इसके अलावा वह लोग जो इस बारे में नहीं जानते, कोशिश है, वह भी इस त्रासदी के बारे में जान लें।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। सन 1966 में जम्मू में अलग विश्वविद्यालय की मांग पर छात्र आंदोलन चलाया गया। आंदोलन बहुत उग्र हो गया था। सरकार उसे सख्ती से कुचलने पर उतर आई। दमन के लिए सत्ता जो तरीके अपनाती है, वह सारे अपनाए गए। जानकारी के अनुसार 17 अक्तूबर 1966 को साइंस कालेज के मैदान में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग में तीन छात्र बृज मोहन, गुलशन हांडा और सुभाष चंद्र की मौत हो गई। अन्य छात्र सरदार गुरुचरण सिंह को पुलिस ने जम्मू के राजेंद्र बाजार में शहीद किया। खूनी आंदोलन के खत्म होने के बाद शहीद छात्रों की याद में साइंस कालेज के बाहर शहीदी स्थल बनाया गया। हर साल अक्तूबर माह की 16, 17 और 18 तारीख को ब्लैक डे के रूप में मनाया जाता है। तीन दिनों तक जम्मू संभाग के शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई नहीं होती है और छात्र संगठनों के अलावा अन्य संस्थाएं अपने अपने तरीके से शहीदों को याद करती हैं। चारों छात्रों की शहादत भेदभाव के खिलाफ और अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों को अपने मकसद के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।
गजलों के बादशाह वेदपाल 'दीप' की कविता के कुछ हिस्से शहीदों को समर्पित करते हुए
अज्ज में नईं कल्ला!
(आज मैं अकेला नहीं!)
कल्ल में हा कल्ला मेरे साथी निं गनोने अज्ज!
(कल मैं अकेला था, मेरे साथी आज गिने नहीं जाएंगे)
पिप्पला के पत्ते आंगर, तबी कंडे बट्टे आंगर
(पीपल के पत्तों की तरह, तवी किनारे पत्थरों की तरह)
न्हेरी रातीं तारें आंगर, धारें दे दयारें आंगर
(अंधेरी रात के तारों की तरह, पहाड़ों पर देवदारों की तरह)
नदिया दी लैहरें आंगर, फौजियें दे पैरें आंगर।
(नदी की लहरों की तरह, फौजियों के पैरों की तरह।)
अनसंबी लैहरें आला सागर बजोन अज
(न संभाले जा सकने वाली लैहरों का सागर लग रहे हैं आज)
कल्ल में हा कल्ला मेरे साथी निं गनोने अज्ज!
(कल मैं अकेला था, मेरे साथी आज गिने नहीं जाएंगे)
बामे विच जोर, इंदे मत्थे विच लो ऐ
(बाजूओं में जोर, इनके माथे के बीच रोशनी है)
मरने दी जांच इनें, जीने दा बी थौ ऐ।
(मरने का ढंग इनको, जीने का भी सलीका है)
सिखने दी चाह इनें, दस्सने दा इनें चज्ज
(सीखने की चाह इनमें, सिखाने का भी तरीका है)
कल्ल में हा कल्ला मेरे साथी निं गनोने अज्ज!
(कल मैं अकेला था, मेरे साथी आज गिने नहीं जाएंगे)
सामराजी चाल इक मिट्टी दी खड़ाल ऐ
(साम्राज्यवादी चाल मिट्टी का एक खिलौना है )
टक्कर लै प्हाड़ै कन्ने एदी के मजाल ऐ
(टक्कर ले पहाड़ों से इसकी क्या मजाल है)
कोदी ऐ मजाल जेह्ड़ा औने आला कल रोकै
(किस की है मजाल जो आने वाला कल रोके)
काम्में हत्थ थोह्ड़ा ते दराटी रोकै, हल रोकै
(कामगारों के हाथ से हथौड़ा और द्राती रोके, हल रोके)
लख तुस भाएं इनें तीलें दियां कंदा चाढ़ो
(लाख भले तुम तिनकों की दीवारें चढ़ा दो)
कोदी ऐ मजाल जेह्ड़ा उज्जा आले छल्ल रोके
(किस की है मजाल जो उज्ज वाली लहरें रोके)
तीलें दियें कंदे कन्ने हाड़ नई थमोन अज्ज।
(तिनकों की दीवारों से आज बाढ़ नहीं थमेगी)
कल्ल में हा कल्ला मेरे साथी निं गनोने अज्ज!
(कल मैं अकेला था, मेरे साथी आज गिने नहीं जाएंगे)
शहीद छात्रों को सलाम
ReplyDeleteप्रताप सिंह जम्वाल
जम्मू
जम्मू व कश्मीर