Wednesday, August 13, 2014

शेख मोहम्मद कल्याण


जम्मू कश्मीर में जब बात हिन्दी कविता की हो तो शेख मोहम्मद कल्याण एक स्वाभाविक सा लिया जाने वाला नाम है . कल्याण ने दो दशकों से  ' समज ' और ' युहिले ' जैसी संस्थाओं से जुड़कर  सांस्कृतिक व साहित्यिक भूमिका से जम्मू के कला परिदृश्य को समृद्ध किया है . इन्होंने अपनी शुरूआत नुक्कड़ नाटक और अभिनय से की .
२००३ में प्रकाशित इनका कविता संग्रह ' समय के धागे ' चर्चित तो रहा है पर जितनी बात इस पर होनी चाहिए थी नहीं हुई . कवि आलोचक विजेंद्र ने उनको अवश्य रेखांकित किया है . आजकल विशेषांक , चिट्ठों और सोशल नेटवर्किंग के तथाकथित विशेज्ञ आलोचक समीक्षक हिन्दी कविता का नकली परिदृश्य बना रहे हैं .  इधर जब वे नब्बे के बाद की कविता पर चर्चा कर रहे हैं . वे कभी भी अल्पचर्चित गैरहिन्दी भाषी प्रदेशों की हिन्दी कविता का नाम तक नहीं लेते  . जबकि इस हाशिये की कविता के बिना हिन्दी कविता का समग्र मूल्यांकन नहीं किया जा सकता . न किया जाना चाहिए . मैं कल्याण जैसे कवियों को पढ़े जाने पर जोर दूंगा . यहाँ प्रस्तुत कविताओं में पहली दो कविताएँ  इनके संग्रह से हैं और अगली  तीन कविताएँ नयी हैं . निश्चित विचार से युक्त इनकी कविताएँ अपने आत्मीय भावों से घर , आँगन , गाँव , कस्बे व शहर को उकेरती 
हैं . आदमी को अपने हक़ के लिए लड़ना सिखाती हैं . प्रेम कविताओं और प्रकृति के मानवीय बिम्बों के लिए कल्याण खास पहचाने जाएंगे . अभी उनकी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति की हमें प्रतीक्षा है . शुभकामनाओं सहित उनका हार्दिक आभार कि उन्होंने ये कविताएँ उपलब्ध करवाई. 


(अपरिहार्य कारणों के चलते पोस्ट करने में देरी हुई, उसके लिए खेद है।)





उठो मेरे भाई

उठो मेरे भाई उठो
सम्भालो अपनी - अपनी कुदाल
सूरज ने विद्रोह कर दिया है

जितना भी हो सके
इसे दफन होने से बचाना है
और
उससे पहले खुद को भी
क्योंकि
दफन होता जा रहा हैं विद्रोह सदा
ऊँची लम्बी मीनारों के नीचे
अब के भी यही होगा क्या ...?




बादलों में आग

उसकी आँख में
कौव्वे सी चतुरता है
लोमड़ी सी चालाकी
और कभी - कभी
झपटने के लिए
बिल्ली से तेवर

वह झांकता है
हमारे भीतर
अँधेरे कमरे में बह रही नदी को
खूब आता है उसे
रिसते घावों पर मरहम लगाना ...

आओ
तुम भी आओ
वक्त आ गया है कि
हवा का रुख पहचान
बादलों में आग भर दें .



स्कूटर चलाती बेटी

स्कूटर चलाती
तेज दौड़ाती बेटी
हवा संग बतियाती
बढ़ रही है आगे
परम्पराओं के सारे बंधन
तोड़ देना चाहती है
इतनी तेजी से चला रही है स्कूटर
कि जैसे नाप लेना चाहती है
धरती का आखरी छोर
उसे मालूम है
कैसे लांघने हैं मर्यादाओं के चौक
समय कि रफ़्तार को भी
लांघ सकती है
स्कूटर चलाती बेटी...

उसे खूब आता है
मौसम के बदले मिजाज से लड़ना
अपने दुपट्टे मे बाँध लेती है
खट्टे मीठे अनुभव
समय के पहिये नहीं
रोक पाते उसकी उड़ान
इसी समय के बीच
वह बादल हो जाती है
उलांघती अँधेरे
 दौड़ाती स्कूटर
मंजिल पहुँचती आती है उस तक
गति  को बनाती है हथियार
स्कूटर चलाती, बादल होती
हरियाली हो जाती है

स्कूटर चलाती बेटी ...




चीख और आदमी

वह चीखते रहे
हम सुनते रहे

हम सुनते रहे
वह चीखते रहे...

इस चीखने और सुनने के बीच
गुज़र गयीं
कई सदियाँ
और हम आज भी वहीं खड़े हैं
आवाज़ों को पहचानने के लिए
चीखें तो वही हैं
बस
गले बदल गए हैं ...


वह

वह तौल रहा है हमें
मुझे , तुझे , इसे , उसे
अपनी तेज़
चालाक आँखों से
 वह तौल सकता है
तौलना उसे भलीभाँति आता है
वह ज़बरदस्ती घुस जाता है
हमारी रसोई
हमारे सपनों में
वह हमारी उंगली पर लगे निशान से करता है
अपना जीवन निर्माण
उसे आता है
हमारी उंगली पर
अपने हक़ में
निशान लगवाना ...

वह दिखाता है
हमारे चूल्हे को रंग बिरंगी आग

हमारी उंगली पर लगे
निशान की कीमत

इन दोनों के बीच
वह ...
वह हो जाता है
और हम
रह जाते हैं उंगली के निशान को देखते ...



सम्पर्क :-

नरवाल पाई , सतवारी
जम्मू , जे० & के०
दूरभाष - ०८७१३०९९९२६
ई मेल - smkalyan2010@gmail.com



प्रस्तुति :- 
 
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३

ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com

(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)


3 comments:

  1. phleebaar pda...bhut khoob....shubhkamnayein....iske sath krishan ji or kamal ji bhi dhnyavad

    ReplyDelete
  2. kalayan ji ne jis prakar se manav samvednoao ko ukera hai veh vastav min tareef ke kabil hai....kalyan ji ke sath khultekibad ka aabhar

    ReplyDelete
  3. bhut shandaar.....kumar ji yeh aapka acha pryas hai....sath mein kamal ji or kalyan ji ko bhi bdai

    ReplyDelete