Monday, September 15, 2014

कमल जीत चौधरी

पाठक पैदा किए जा सकते हैं , कवि नहीं !




किसी आयु सीमा से परे प्रगतिशील कविता को ही युवा कविता मानना चाहिए. जम्मू की युवा कविता पर बात करते हुए भी यही पैमाना रखना सही होगा .जम्मू की युवा कविता को एक साथ तीन पीढ़ियाँ समृद्ध कर रही हैं. अपनी प्रवृत्तियों से यह किसी भी प्रकार केवल स्थानीय कविता नहीं कहला सकती . विस्थापन की पीड़ा , जनपक्षधरता , तीखा व्यंग्य , राजनीतिक स्वर , आत्मीय  बिम्ब तथा संवाद इस कविता की ताकत है तो सपाटबयानी , गद्य शैली और नारेबाजी इसकी कमजोरी है . यहाँ का स्त्री स्वर मुख्यधारा के फैशनबल स्त्री विमर्श से परे एक मौलिक और मुखर भावजगत के गवाक्ष खोलता है . २०१० में वरिष्ठ कवि अशोक कुमार द्वारा सम्पादित जम्मू के प्रतिनिधि काव्य संग्रह ' तवी जहां से गुज़रती है ' के सन्दर्भ में डॉ० नामवर सिंह व  सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने भी जोर देकर इस युवा कविता को रेखांकित किया. यह संग्रह निश्चित ही जम्मू की कविता का प्रामाणिक इतिहास होता अगर इसमें युवा कवि कुँवर शक्ति सिंह , योगिता यादव और अरुणा शर्मा की कविताएँ भी होती तथा इसका सम्पादकीय भी लिखा जाता . खैर , मुंबई से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका सृजन सन्दर्भ के मनोज शर्मा द्वारा सम्पादित अप्रैल - जून २०१० के जम्मू विशेषांक ने यहाँ की युवा अभिव्यक्ति को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा मंच दिया . लेखक व धरती के सम्पादक शैलेन्द्र चौहान द्वारा अभिव्यक्ति के अंक ३७ जुलाई २०११  में जम्मू के  पांच कवियों की विशेष प्रस्तुति भी एक खाका खींचती है . इस स्तम्भ में उन्होंने कृष्ण कुमार शर्मा , अमिता मेहता , डॉ० शाश्विता , कमल जीत चौधरी , शेख मोहम्मद कल्याण की कविताओं को प्रकाशित करते हुए लिखा - 'इनकी कविताओं में एक और स्थानीयता की सौंधी महक है तो वही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की प्रतिक्रियाएँ भी हैं . '  यानि यहाँ का युवा स्वर समय समय पर नोटिस होता रहा  है . फिर भी  यहाँ के ज्यादातर कवि जम्मू से बाहर बहुत कम पहचाने जाते हैं . वरिष्ठ कवि रमेश मेहता ,  डॉ० अग्निशेखर व कुछ अन्य तथा ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कृत युवा कहानीकार कवि योगिता यादव और कमल जीत चौधरी , कृष्ण कुमार शर्मा आदि कुछ नाम अपवाद अवश्य हैं .इन्होंने खासकर देश भर में केंद्र से इतर हाशिए पर लिखी जा रही कविता से संवाद कायम किया है . यही आवश्यक है . हिन्दी कविता का समग्र मूल्यांकन इसी कविता से होगा . इससे जुड़ना एक वर्गबोध भी दर्शाता है . २०१३ में वरिष्ठ कवि सम्पादक प्रभात पाण्डेय द्वारा दिल्ली से इतर अखिल भारत सेचयनित ग्यारह कवियों के कविता संग्रह ' स्वर एकादश ' में कमल जीत चौधरी और अग्निशेखर का होना जम्मू के लिए सुखद है .वैसे राजकुमार शर्मा , महाराज कृष्ण संतोषी , कुँवर शक्ति सिंह , कपिल अनिरुद्ध , पवन खजुरिया , संजीव महाजन , संजीव भसीन , अरुणा शर्मा , श्याम बिहारी ,निर्मल विनोद जैसे नाम भी जम्मू के काव्य परिदृश्य में अलग चमक रखते हैं. फिर भी बात घूम फिर कर वही आठ दस कवियों पर आ जाती है तो कुछ सवालों का उठना स्वाभाविक और अनिवार्य हो जाता है . क्या कम पहचाने जा रहे जम्मू के कवि भूख , बेरोज़गारी , शोषण , राजनीतिक भेदभाव , सीमारेखा पर तनाव धर्म की राजनीति से त्रस्त जनता की आवाज़ बन पाए हैं ? क्या कला अकादमी व इससे अनुदान प्राप्त कर रही संस्थाएँ अपनी भूमिका सही निभा पा रही हैं ? काव्यगुरू का ध्यान सतत इस ओर क्यों एकाग्र है कि कैसे किसी नवोदित कवि पर मोहर लगा दी जाए ? यह बात मैं कला अकादमी की पत्रिका शीराज़ा में प्रकाशित नवांकुरों के सन्दर्भ में कह रहा हूँ . इन्हें ही दिशा देने के लिए पत्रिका का न्यून स्तर बनाए रखना ज़रूरी है न कि उनमे छपास की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना . ऐसे ही कुछ मठाधीश किसी युवा के बढ़ते कदमों को देख जगह जगह उसकी कटु आलोचना तो करते हैं ...क्यों ?? पर उन्हें पाठकों और कविता के प्रसार की आवश्यकता कभी ज़रूरी  नहीं लगती ? आदि आदि .





समय को पहचान कर जम्मू के कवियों को छपास और संवाद की तरफ ध्यान देना होगा. प्रिंट में अगर किसी कारण ये छपने से वंचित हैं तो चिठ्ठा जगत और सोशल नेटवर्किंग का सही उपयोग इनको बाहर की कविता से जोड़ सकता है . यहाँ पर इनकी उदासीनता समझ से परे है . जबकि इधर की हिन्दी कविता ब्लॉग्स पर नया इतिहास रच रही है . इधर कृष्ण कुमार शर्मा और कमल जीत चौधरी द्वारा संचालित जम्मू कश्मीर के पहले साहित्यिक ब्लॉग ' खुलते किवाड़ ' ने खासकर जम्मू की युवतर कविता को सामने लाया है . इस पर भगवती देवी , शालूप्रजापति , रिपुदमन परिहार , नरेश कुमार खजुरिया , मुदासिर अहमद भट्ट ,संगीत , पम्मी शर्मा आदि की प्रस्तुति इस बात की प्रमाण है .सांस्कृतिक अकादमी के साथ पच्चीस साल पुरानी साहित्यिक संस्था युहिले और दो साल से सक्रिय लोक मंचक्रमशः कवियों व सांस्कृतिक कर्मियों के लिए भाव और कर्मभूमि सिद्ध हो रहे हैं . साहित्यिक पत्रिकाओं के अभाव में पिछले सालों दैनिक जागरण के साहित्यिक पन्ने ने सार्थक भूमिका निभाई . इस पन्ने को योगिता यादव देखती है . अब सामग्री की कमी के कारण यहाँ जम्मू की भागीदारी न के बराबर हो गई है .
नीरू शर्मा के संपादन में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने सेतु नाम की पत्रिका का अंक निकाला है . कामना है कि यह निकलता रहेगा . कविता के क्षेत्र में अग्निशेखर को प्राप्त सूत्र सम्मान , अरुणा शर्मा को पृथ्वियां पर और पृतपाल बेताब  को शहरे गज़ल  कविता संग्रह पर केंद्रीय हिन्दी निदेशालय का हिन्दीतर सम्मान आश्वस्त करता है . 

अंत में एक दो ज़रूरी बातें  कि आज के परिदृश्यपर कविता से अधिक कवि हावी न हो यह ध्यान रहे. पुरस्कार , जोड़ - तोड़ , आपसी ईर्ष्या  - द्वेष , सरकारी काव्य यात्राएँ , मंचीय प्रशंसा , कला अकादमी , अनुदान और ३१ मार्च से बचना होगा . और हाँ पाठक पैदा किए जा सकते हैं , कवि नहीं !


(दैनिक जागरण से साभार)




 
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३

ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com

(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)

1 comment:

  1. bahut acha lekh....jagran mein isko nhi pad ska...blog pr pad liya hai....badhai

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