जन्म :- १५ अगस्त १९६८ को वाराणसी के भलेहटा गाँव में
शिक्षा :- गोरखपुर वि० वि० से प्राणी विज्ञान में परास्नातक
संग्रह :- हाथ सुन्दर लगते हैं , यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है
अन्य :- महत्वपूर्ण ब्लॉग ' बीच बहस में कविता ' का संचालन करते हैं, महत्वपूर्ण ब्लॉगों और पत्र - पत्रिकाओं में कविताएँ कहानियाँ और आलेख प्रकाशित होते रहते हैं
बहुत ज़रूरी युवा कवि नील कमल को मैं केवल उनकी कविताओं से जानता हूँ .ऐसा जानना आज बहुत ज़रूरी है . कम ही लोग ऐसा जानना चाहते हैं . साहित्यिक मठाधीशों और चमचावाद को ठेंगा दिखाने वाले नील कमल की कविताओं पर दस्तख़त कर सकते हैं . उनको जान भी सकते हैं . वे प्रतिबद्ध और परिपक्व हैं .इनके यहाँ कला जीवन के लिए और कला कला के लिए, दोनों सिद्धांतों में क्रमशः ईमानदारी और मौलिकता हैं . इनकी कविताएँ विचार को जनेऊ की तरह धारण नहीं करती . वे जानते हैं कि कविता की रचना प्रक्रिया के बहाने सुन्दर दुनिया को कैसे दिखाया जा सकता है . सपना यही से शुरू होता है .जो बदलाव की पहली शर्त है . गुलेल को खतरनाक और निर्दोष बताने वाली दृष्टि साँड को भी नया सौन्दर्य देती है . ऋत्विज प्रकाशन से प्रकाशित उनके काव्यसंग्रह ' यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है ' की दस्तक सीधे पाठकों के दिलों पर पड़ी है . इसके लिए उनको हार्दिक बधाई . पूरे संग्रह पर फिर कभी ... फिलहाल आभार सहित यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कविताएँ -
गोदना
सबसे महफूज पनाहगाह
हूँ मैं
बोलती है एक स्त्री की त्वचा
गोदना गुदवाते हुए
दुनिया के तमाम मर्द
जब कहीं नहीं पाते ठौर
तो शरण पाते हैं मुझमें
और जोर देकर कहती है
जो दमक रहा है
मेरी त्वचा के भीतर
उसे सिर्फ काली सियाही
न समझा जाए .
हूँ मैं
बोलती है एक स्त्री की त्वचा
गोदना गुदवाते हुए
दुनिया के तमाम मर्द
जब कहीं नहीं पाते ठौर
तो शरण पाते हैं मुझमें
और जोर देकर कहती है
जो दमक रहा है
मेरी त्वचा के भीतर
उसे सिर्फ काली सियाही
न समझा जाए .
सुना आपने
कभी आप विचार को
जनेऊ की तरह धारण करते हैं
कभी आप जनेऊ को
विचार की तरह धारण करते हैं
दोनों ही स्थितियों में सुविधानुसार
विचार को कान पर टाँग लेने की सुविधा है
कविता की दुनिया में बस यही सुविधा नहीं है
फिलहाल
कविता के कान पर
टंगा हुआ है एक धागा
ख़ता मुआफ़ हो मेरे दोस्तो
आप जो बनते हैं कविता के हिमायती
सबसे ज्यादा साँसत में कविता की जान
आप से .. हाँ आप ही से है ..सुना आपने ?
कभी आप विचार को
जनेऊ की तरह धारण करते हैं
कभी आप जनेऊ को
विचार की तरह धारण करते हैं
दोनों ही स्थितियों में सुविधानुसार
विचार को कान पर टाँग लेने की सुविधा है
कविता की दुनिया में बस यही सुविधा नहीं है
फिलहाल
कविता के कान पर
टंगा हुआ है एक धागा
ख़ता मुआफ़ हो मेरे दोस्तो
आप जो बनते हैं कविता के हिमायती
सबसे ज्यादा साँसत में कविता की जान
आप से .. हाँ आप ही से है ..सुना आपने ?
माचिस
मेरे पास एक
माचिस की डिबिया है
माचिस की डिबिया में कविता नहीं है
माचिस की डिबिया में तीलियाँ हैं
माचिस की तीलियों में कविता नहीं है
तीलियों की नोक पर है रत्ती भर बारूद
रत्ती भर बारूद में भी नहीं है कविता
आप तो जानते ही हैं कि बारूद की जुड़वा पट्टियाँ
माचिस की डिबिया के दाहिने - बाँए सोई हुई हैं गहरी नींद
ध्यान से देखिये इस माचिस की डिबिया को
एक बारूद जगाता है दूसरे बारूद को कितने प्यार से
इस प्यार वाली रगड़ में है कविता.
मेरे पास एक
माचिस की डिबिया है
माचिस की डिबिया में कविता नहीं है
माचिस की डिबिया में तीलियाँ हैं
माचिस की तीलियों में कविता नहीं है
तीलियों की नोक पर है रत्ती भर बारूद
रत्ती भर बारूद में भी नहीं है कविता
आप तो जानते ही हैं कि बारूद की जुड़वा पट्टियाँ
माचिस की डिबिया के दाहिने - बाँए सोई हुई हैं गहरी नींद
ध्यान से देखिये इस माचिस की डिबिया को
एक बारूद जगाता है दूसरे बारूद को कितने प्यार से
इस प्यार वाली रगड़ में है कविता.
गुलेल
यह
रोमन लिपि का
पच्चीसवाँ वर्ण है
हिन्दी की हथेली में कसा हुआ
दो उँगलियों के
फैलाव में बना वह
विजय सूचक चिन्ह है
जिसे संसद की हर बहस के बाद
दिखाते हैं जनप्रतिनिधि
एक खिंची हुई प्रत्यंचा हैं
एक कसा हुआ विवेक
चुटकी में कसमसाता
एक गोली बराबर पत्थर
तना हुआ किसी एक आँख
किसी एक सर पर
सिर्फ गोपियों की मटकी
ही नहीं फोड़ती है गुलेल
वह तोड़ती है पेड़ पर पका
सबसे मीठा आम ..
कितनी खतरनाक है गुलेल
फिर भी कितनी निर्दोष .
रोमन लिपि का
पच्चीसवाँ वर्ण है
हिन्दी की हथेली में कसा हुआ
दो उँगलियों के
फैलाव में बना वह
विजय सूचक चिन्ह है
जिसे संसद की हर बहस के बाद
दिखाते हैं जनप्रतिनिधि
एक खिंची हुई प्रत्यंचा हैं
एक कसा हुआ विवेक
चुटकी में कसमसाता
एक गोली बराबर पत्थर
तना हुआ किसी एक आँख
किसी एक सर पर
सिर्फ गोपियों की मटकी
ही नहीं फोड़ती है गुलेल
वह तोड़ती है पेड़ पर पका
सबसे मीठा आम ..
कितनी खतरनाक है गुलेल
फिर भी कितनी निर्दोष .
साँड
उसे
सचमुच नहीं
मालूम , कि यह
है शांत हरा रंग , और
वह लाल रंग भड़कीला
उसे दोनों का फर्क तक
नहीं पता , यकीन जानिए
वह निर्दोष बछड़ा है
किसी निर्दोष गाय का
जिसके हिस्से का दूध
पिया दूसरों ने हमेशा
वह बचता बचाता
आ गया है सभ्यता के
स्वार्थलोलुप चारागाह से
जहां बधिया कर दिए गए तमाम
बछड़े , खेतों में जोते जाने के लिए ,
उन्हें पालतू मवेशी में बदल दिया गया
साँड को बख्श दीजिए
अफ़वाहें न फैलाइए कि
भड़क जाता है वह लाल रंग देखकर
यह कैसा भाषा - संस्कार है आप का
कि जिसमें बैल कहलाए , जो पालतू हुए , और
जिन्हें पालतू नहीं बना सके आप , वे साँड कहलाए .
उसे
सचमुच नहीं
मालूम , कि यह
है शांत हरा रंग , और
वह लाल रंग भड़कीला
उसे दोनों का फर्क तक
नहीं पता , यकीन जानिए
वह निर्दोष बछड़ा है
किसी निर्दोष गाय का
जिसके हिस्से का दूध
पिया दूसरों ने हमेशा
वह बचता बचाता
आ गया है सभ्यता के
स्वार्थलोलुप चारागाह से
जहां बधिया कर दिए गए तमाम
बछड़े , खेतों में जोते जाने के लिए ,
उन्हें पालतू मवेशी में बदल दिया गया
साँड को बख्श दीजिए
अफ़वाहें न फैलाइए कि
भड़क जाता है वह लाल रंग देखकर
यह कैसा भाषा - संस्कार है आप का
कि जिसमें बैल कहलाए , जो पालतू हुए , और
जिन्हें पालतू नहीं बना सके आप , वे साँड कहलाए .
सम्पर्क :-
२४४ , बाँसद्रोणी प्लेस
कोलकाता - ७०००७०
दूरभाष - ०९४३३१२३३७९
ई मेल - neel.kamal1710@gmail
२४४ , बाँसद्रोणी प्लेस
कोलकाता - ७०००७०
दूरभाष - ०९४३३१२३३७९
ई मेल - neel.kamal1710@gmail
प्रस्तुति :-
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३
ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com
(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)
bhut sunder....neel kamal ji ko phli baar pda....umda....shandar...ummed hai ki inko jald doosri baar bhi padne ko milega...kamal jeet ji ke sath kumar krishan ji ka abhar
ReplyDeleteNakul, Trikuta Nagar, Jammu