Sunday, June 16, 2013
तरुण
11 फरवरी 1977 को दिल्ली में सैनिक के घर जन्मे तरुण की रचनाओं में विरोध का स्वर बहुत तीखा होता है। कालेज से ही लेखन के कार्य में संलग्न रहे हैं। 'कवि बनने से पहले' कविताओं का लघु संग्रह 1998 में प्रकाशित हुआ। तरुण कवि के साथ साथ कहानीकार भी हैं।
प्रस्तुत कविताएं उनके काव्य संग्रह 'रात खामोश है' (अभियान प्रकाशन, हरियाणा) से साभार ली गई हैं। काव्य संग्रह 'रात खामोश है' लीबिया के राष्ट्रीय मुक्ति योद्धा उमर मुख्तार को समर्पित है।
असुरक्षित देश
मेरे देश की सुरक्षा ऐसी नहीं
जिसके लिए तोप टैंक या
आण्विक शस्त्र का निर्माण किया जाए
मेरा देश तब तक असुरक्षित है
जब तक कलुए का बाप बिना जुर्म थाने में
पिटता है
उसकी मां एक गठरी घास के लिए
जमींदार के यहां सोती है
और जब तक मेरे गांव के बच्चे
गोबर में से गेहूं को बीनते हैं
तब तक यह देश असुरक्षित है
और मेरे देश का दुश्मन सरहद पार नहीं
बल्कि खुद दिल्ली है
जो धोखा देने के लिए खुद दुश्मन दुश्मन चिल्लाती है।
गुजारिश
मैं नहीं कहता
आप कोई क्रांति करें
इस समाज को बदलें
या मार्क्सवाद पढ़ें
पर इतना जरूर कहूंगा
आंख, कान और जुबान होते हुए भी
अंधे, बहरे और गूंगे बने रहना
कोई अच्छी बात तो नहीं।
अब हम हाकिमों के गीत नहीं गाएंगे
अब हम हाकिमों के गीत नहीं गाएंगे
अब हम अपने ही गीत गाएंगे
क्योंकि
राजाओं की महफिलों में गाने वाले
कभी न गाएंगे
हमारी गुलामी हमारी उदासी हमारी पीड़ को
अपने गीतों से
इसलिए अपने गीत हमें खुद ही गाने होंगे
टूटे-फूटे, आधे-अधूरे बेशक बेसुरे
हम उन्हें गाएंगे
पर हम हाकिमों के गीत नहीं गाएंगे
महत्वकांक्षा
मैं कोशिश करता हूं
आकाश को अपने आगोश में लेने की
गिर जाता हूं जमीन पर
संभलने पर पाता हूं
आकाश की तरफ फैली बाहें
और उनमें हवा का एक छोटा सा टुकड़ा।
मैं और रात
खामोश और अकेली रातों में
मैं अक्सर उठ कर बैठ जाया करता हूं
जब सपनों की बौछारों से
आंखे भीग जाती हैं
मैं मन को समझाता हूं
इतने सपनों का क्या करोगे
पर मन कहता है
यह रात है
यहां चला नहीं जा सकता
जब तक रास्ते के ऊपर अंधेरा छाया है
इसिलए रात में
सिर्फ सपने देखे जाते हैं
रोशनी की जरूरत के बारे में
मैं फिर लेटकर सोने की कोशिश करता हूं
शायद सपने में कोई मुसाफिर मिल जाए
हाथ में मशाल लिए।
(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)
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Lajimi hai ki hum bhi dekhenge... salaam.
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