साहित्य अकादमी पुरस्कृत मोहन सिंह डोगरी साहित्य में जाना-पहचाना नाम है। साहित्यकार, रंगकर्मी और एक्टिविस्ट मोहन सिंह अपनी मिट्टी, डुग्गर, भेदभाव, अन्याय और हाशिए पर खड़े व्यक्ति की बात को हमेशा जोर से उठाते हैं। डुग्गर मंच के संस्थापक भी हैं। राजनीतिक चेतना इनकी रचनाओं का अहम हिस्सा है। नुक्कड़ नाटकों का मंचन एक ओर उपलब्धि। स्पष्ट और सीधी बात करना इनके व्यक्तित्व का सबसे अहम हिस्सा है। लिखने का अपना अलग अंदाज। इनकी रचनाओं को सुनना या पढ़ना गुप्प अंधेरी डरावनी रातों में सवेरे के आने या फिर हथियार एक तरफ रख थकावट से चूर गुरिल्ला यौद्धा में क्रांति का गीत सुन कर आने वाली नई जान के जैसा है।
मोहन सिंह की चौदह से ज्यादा रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें कविताएं, नाटक, गजल, नुक्कड़ नाटक, गीत आदि शामिल हैं। दो अनुवाद (मछेरे 1995, तषकी शिवशंकर पिल्ले के उपन्यास का डोगरी अनुवाद और मुक्तिबोध 2001, जैनेंद्र कुमार के हिंदी उपन्यास का डोगरी अनुवाद) और दो संकलन (वेदपाल 'दीप' रचना संसार 2003 और केहरि सिंह 'मधुकर' रचना संसार 2012) भी इनके नाम हैं।
हाल ही में उनकी कविताओं पर आधारित किताब 'लारें दे तबारें च' का विमोचन किया गया। उसी किताब में से प्रस्तुत हैं चार रचनाएं
(वह दोस्त जो डोगरी नहीं जानते हैं का सुझाव है कि डोगरी या अन्य भाषा की रचनाएं देते समय अगर उनका हिंदी में भावार्थ दिया जाए तो रचनाओं को ज्यादा लोग समझ पाएंगे और इन भाषाओं के साहित्यकारों की सोच, चिंताओं, चुनौतियों समेत अन्य पहलुओं से रूबरू हो पाएंगे। इसलिए डोगरी रचनाओं का हिंदी भाषा में भावार्थ दिया जा रहा है। यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।)
रवाज (रिवाज)
बब्ब मरै तां पुत्तर साम्भै
(बाप मर जाए तो बेटा संभाले)
पुत्तर नेईं तां धी।
(बेटा नहीं तो बेटी।)
धी नेईं तां नूंह् जां लाड़ी
(बेटी नहीं तो बहू या पत्नी)
बाकी जान तवी।
(बाकी जाएं तवी)
बाकी जान तवी ते भामैं
(बाकी जाएं तवी या फिर)
खड़िया खट्टा जान*।
(चारपाई को खड़ा करके जाएं।)
अड्डियां गोड्डे भन्नन अपने
(ऐडियां घुटने तोड़े अपने)
मुल्ख दुहाई पा।
(देश भर में दुहाई दें।)
चिड़ियां रौला पान ते तां केह्
(अगर चिड़ियां शोर डालें तो क्या)
टली जंदा ऐ बाज।
(बाज टल जाता है।)
लोकें दा ऐ राज एह् भाइया
(लोगों का राज है भैया)
लोकें दा ऐ राज।
(लोगों का है राज।)
लोकें दे इस राज च चलदा
(लोगों के इस राज में चलता)
इ'यै इक रवाज।
(यही है एक रिवाज)
(*डुग्गर में प्रचलित मुहावरा जिसका अर्थ है- हाथ में कुछ नहीं आना)
सब किश किन्ना अपना (सब कुछ कितना अपना)
घाह्
(घास)
मच्छर
(मच्छर)
मौंगनी।
(मौंगनी- मच्छर की एक किस्म।)
गिट्टे
(टखने)
डुंडू
(कलाईयां)
कन्न।
(कान।)
डींगू
(डैंगू)
वायरल
(वायरल)
टिक्कियां
(टिक्कियां)
टीके
(टीके)
पोस्टर।
(पोस्टर।)
फिल्टरड
(फिल्टरड)
मिनरलड
(मिनरलड)
टिनड।
(टिनड्)
संगोष्ठियां
(संगोष्ठियां)
सम्मेलन
(सम्मेलन)
कैंप।
(कैंप।)
अमला
(अमला)
गड्डियां
(गाड़ियां)
बोचर
(बोचर)
तस्वीरां
(तस्वीरें)
भाषण
(भाषण)
ब्यान
(बयान)
रकमां।
(रकम)
धामां
(दावतें)
डकार।
(डकार)
कूलर
(कूलर)
एसी
(एसी)
सप्रे।
(स्प्रे।)
नींद्रां
(नींद)
सुखने
(सपने)
निरोगता।
(निरोगिता)
घाह्
(घास)
चिक्कड़
(कीचड़)
सड़ैन।
(बदबू।)
सब किश किन्ना अपना
(सब कुछ कितना अपना)
सब किश किन्ना फायदेमंद।
(सब कुछ कितना फायदेमंद)
गिट्टें कोला कन्ने तोड़ी
(टखनों से लेकर कानों तक)
रखदा ऐ चतन्न
(रखता है चौकन्ना)
हुशियार
( होश्यिार)
खबरदार
(खबरदार)
ते दिंदा ऐ डरावे
(डराता है)
मलेरिया
(मलेरिया)
डींगू
(डैंगू)
ते वायरल दे।
(और वायरल से)
सब किश किन्ना अपना
(सब कुछ कितना अपना)
सब किश किन्ना परमानंद।
(सब कुछ कितना परमानंद)
बोचरें कोला लेइयै
(बोचरों से लेकर)
डकारें तोड़ी
(डकारों तक)
रखदा ऐ पूरा ख्याल
(पूरा ख्याल रखता है)
हर साल
(हर साल)
ते दिंदा ऐ बरदान
(और देता है वरदान)
होने दा मालामाल
(मालामाल होने का)
हर साल
(हर साल)
हर साल
(हर साल)
घाह्
(घास)
चिक्कड़
(कीचड़)
सड़ैन।
(बदबू)
मक्खी
(मक्खी)
मच्छर
(मच्छर)
मौंगनी।
(मौंगनी-मच्छर की एक किस्म)
संसद
(संसद)
सांसद
(सांसद)
मंत्री।
(मंत्री)
बोज्जे
(जेबें)
ढिड्ड
(पेट)
संदूख।
(संदूख)
तिकड़म
(तिकड़म)
सट्टे
(सट्टे)
फुरतियां।
(चालाकी)
शिक्षा
(शिक्षा)
अमन
(अमन)
विकास।
(विकास)
रिश्ते
(रिश्ते)
मित्तरो-कोठियां
(दोस्तियां)
झोल्ली-चुक्क दलाल।
(चाटुकार दलाल)
सब किश किन्ना सैह्ज
(सब कुछ कितना सहज)
सब किश किन्ना हेजला।
(सब कुछ कितना लाडला)
सांसद कोला मंत्री तोड़ी
(सांसद से लेकर मंत्री तक)
बख्शदा ऐ तेज
(बख्शता है तेज)
करदा ऐ मेहर
(करता है मेहरबानी)
दिंदा ऐ सकत
(देता है सामर्थ)
करने दी लैहर-बैहर
(खुशियां और बहार लाने की )
अपने अंदर-बाहर
(अपने अंदर और बाहर)
ते
(और)
समझांदा ऐ
(समझाता है)
अर्थ
(अर्थ)
अर्थ-व्यवस्था दा
(अर्थ-व्यस्था का)
अर्थ-परनाली दा
(अर्थ-परनाली का)
अर्थ-हीनता जनेई
(अर्थ-हीनता जैसी)
फाश गंदी गाली दा
(नंगी गंदी गाली का)
ते
(और)
अपने आले-दुआलै
(अपने आस-पास)
टैह्कदी
(बैठती)
खुशहाली दा
(खुशहाली का)
घुटाले
(घोटाले)
हवाले
(हवाले)
साम्मियां
(बपौतियां)
जनता दा बरलाप।
(जनता का विलाप)
सब किश किन्ना सम्मना
(सब कुछ कितना समाने वाला)
सब किश चौरे-पैहर।
(सब कुछ चारों पहर)
सब किश किन्ना अपना
(सब कुछ कितना अपना)
सब किश मेरै शैहर।
(सब कुछ मेरे शहर)
चिक्कड़
(चिक्कड़)
मच्छर
(मच्छर)
मलेरिया
(मलेरिया)
तिकड़म
(तिकड़म)
रिश्ते
(रिश्ते)
वोट...
(वोट...)
माऊ दी मनशा {एक} (मां की मंशा {एक})
मेरी मां नैं मिगी दस्सेआ हा
(मेरी मां ने मुझे बताया था)
जे मैं
(कि मैं)
निक्के होंदे थथलांदा हा
(छोटे होते हकलाता था)
ते गल्ल करते घबरांदा हा
(और बात करते घबराता था)
इसकरियै
(इसलिए)
रौंह्दा हा अक्सर घुमसुम
(अकसर गुमसुम रहता था)
जां दिखता रौंह्दा हा
(या देखता रहता था)
बिटबिट
(टिकटिकी लगाए)
हर कुसा पास्सै
(हर किसी की तरफ)
मेरी मां नैं मिगी दस्सेआ हा
(मेरी मां ने मुझे बताया था)
निक्के न्यानें
(छोटे बच्चे)
दुनियां भरा दे निक्के न्यानें
(दुनिया भर के छोटे बच्चे)
शुरू-शुरू च तुतलांदे न
(शुरू-शुरू में तुतलाते हैं )
ते फी तुरतुरे होई जंदे न
(और बाद में तेज-तरार्र हो जाते हैं)
एह् कुदरत दा नियम ऐं
(यह कुदरत का नियम है)
किश म्हातड़ थथलांदे न
(कुछ मेरे जैसे हकलाते हैं)
ते पूरी उम्र थथलांदे रौंह्दे न
(और सारी उम्र हकलाते रहते हैं)
गल्ल करने कोला घबरांदे रौंह्दे न
(बात करने से घबराते रहते हैं)
एह् शरीरिक कमजोरी ऐ
(यह शारीरिक कमजोरी है)
तत्वें दी कमी ऐ
(तत्वों की कमी है)
मधुकर* होर भी
(मधुकर {सम्मान के साथ} भी)
निक्के होंथे थथलांदे हे
(छोटे होते हकलाते थे)
एह् गल्ल
(यह बात)
मधुकर हुंदी मां नै
(मधुकर की मांग ने)
उ'नेंगी दस्सी होग
(उनको बताई होगी)
इ'यां गै जि'यां
(ऐसे ही जैसे)
मेरी मां नैं मिगी दस्सेआ हा
(मेरी मां ने मुझको बताया था)
जे मैं
(कि मैं)
निक्के होंथे थथलांदा हो
(छोटे होते हकलाता था)
ते कुतै
(और कहीं)
पूरी उमर थथलांदा गै नीं रमां
(पूरी उम्र हकलाता ही न रहूं)
इसकरियै सुक्खी ही जीभ ^
(इसलिए मेरी जीभ की मन्नत मांगी थी)
अपनी आस्था दे द्वार
(अपनी आस्था के दरवाजे पर)
तां जे मिगी जीभ थ्होई सकै
(इसलिए कि मुझे जीभ मिल सके)
जेह्डी बोल्लै साफ ते स्पश्ट
(जो साफ और स्पष्ट बोल सके)
सच्च ते बेबाक।
(सच्च और बेबाक)
मैं अपनी मां दा स्हानमंद आं
(मैं अपनी मां का अहसानमंद हूं)
जे उसदे यत्नैं
(कि उसके यत्नों से)
थ्होई मिगी एह् तौफीक
(मुझको यह सामर्थ मिल सका)
जे मैं बोल्ली सकां
(कि मैं बोल सकूं)
जुल्म दे खलाफ
(जुल्फ के खिलाफ)
नां-इंसाफी दे बरुध
(नाइंसाफी के विरुद्ध)
ते हक्का दे हक्का च
(और हक के हक में)
मेरी माऊ दी खुशवा इ'यै मनशा ही।
(मेरी मां की शायद यही मंशा थी)
* केहरि सिंह मधुकर - डोगरी के वरिष्ठ साहित्यकार
^ डुग्गर की मान्यता है कि अगर कोई बच्चा हकलाता या तुतलाता हो तो उसके अभिभावक देव स्थान पर जा कर मन्नत मांगते हैं। बच्चे की जुबान ठीक होने पर अभिभावकों को उसके बदले में देवता को चांदी या सोने (सामर्थ अनुसार) की जीभ अर्पित करनी होती है।
नांह्-नुक्कर (आनाकानी)
कदूं तक्कर
(कब तक)
आखर कदूं तक्कर
(आखिर कब तक)
करनी ऐं तूं नांह्-नुक्कर
(करनी है तुमने आनाकानी)
मेरे अधिकार कोला
(मेरे अधिकार से)
बड्डी नीं ऐ तेरी नांह्-नुक्कर
(तुम्हारी आनाकानी बड़ी नहीं है)
इक न इस दिन
(इक न इक दिन)
तुगी मननैं गै पौंनी ऐं
(तुमको माननी ही पड़ेगी)
मेरी गल्ल
(मेरी बात)
झुकना गै पौंना ऐं
(झुकना ही पड़ेगा)
मेरे निश्चे दे अग्गैं
(मेरे निश्चय के आगे)
की जे एह् पक्का ऐ
(क्योंकि यह पक्का है)
अटल ऐ असल ऐ
(अटल है असल है)
मेरे आंगरा
(मेरी तरह)
दुनियां दे कुसा बी
(दुनिया के किसी भी)
मेहनतकश दी मेहनत आंगरा
(मेहनतकश की मेहनत की तरह)
जंग जित्तने आस्तै जंदे
(युद्ध जीतने के लिए जा रहे)
कुसा सपाई दे
(किसी सिपाही के)
जजबे आंगरा
(जज्बे की तरह)
लैहरें कन्नै लड़ियै पार पुज्जने दी
(लहरों के साथ लड़ कर पार पहुंचने की)
कुसा मलाह् दी
(किसी मल्लाह की)
इच्छाशक्ति आंगरा
(इच्छाशक्ति की तरह)
तेरी नांह्-नुक्कर ते
(तेरी आनाकानी तो)
तेरे आंगरा गै
(तुम्हारी तरह ही)
खोखली ते अधारहीन ऐ
(खोखली और आधारहीन है)
आश्वासने ते प्रलोभने पर टिकी दी
(आश्वासनों और प्रलोभनों पर टिकी हुई)
टिकी नीं सकती मता चिर
(टिक नहीं सकती ज्यादा देर)
इक न इक दिन
(एक न एक दिन)
तुगी मननी पौंनी ऐ मेरी गल्ल
(तुमको माननी पड़ेगी मेरी बात)
आखर कदूं तक्कर
(आखिकर कब तक)
करगा ऐं तूं नांह्-नुक्कर
(करोगे यह तुम आनाकानी)
मेरे अधिकार कोला
(मेरे अधिकार से)
बड्डी नीं ऐ
(बड़ी नहीं है)
तेरी नांह्-नुक्कर।
(तुम्हारी आनाकानी।)
संपर्क -
124, डोगरा हाल
जम्मू
दूसरा पता
मंडी उड्ड (दरगाली)
गुढ़ा सलाथिया (181143)
फोन - 0-94-191-82817
(अनुवाद : कुमार कृष्णा शर्मा )
(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)
theek hain,sawaichhik bhav hai
ReplyDeleteDogri mein mere priya kavi Mohan Singh ki kavitain padvaane ke liye vishesh abhaar. Bahut acchhi kavitain.
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