Wednesday, January 14, 2015

अदिति शर्मा


जन्म : २७ सितम्बर १९९५ में
माँ :   श्रीमती वीणा देवी
पिता : श्री माया राम
शिक्षा : राजकीय महाविधालय , साम्बा से कला संकाय से स्नातक कर रही हैं
लेखन : कविता से शुरुआत , कहीं पर भी पहली बार प्रकाशित हो रही हैं

लिखना छुपाया नहीं जा सकता . यह प्रेम की तरह है. अदिति की कविताएँ मेरे सामने आईं. पढ़कर खुशी हुई. बिना किसी ख़ास मुहावरे से प्रभावित इनकी कविताएँ सच्ची भावनाओं और विचार का सुन्दर संवाद हैं. एक दृष्टि, निर्णयबोध तथा प्रतिरोध यहाँ साफ देखा जा सकता है. मैं कविता की दुनिया में अदिति का जोरदार स्वागत करता हूँ. वह खूब खूब लिखे पढ़े और दुनिया को और सुन्दर बनाने में योगदान दे. 

प्रस्तुत हैं इनकी चार कविताएँ -




भाषण

मंच पर खड़ा हो नेता देते है भाषण
खूब पीटी जाती हैं तालियाँ
साठ साल के युवा इन्ही के कारण युवा हैं
पन्द्रह बीस साल के युवा इन्ही के कारण बूढ़े हैं
पर कट्टर समर्थक व प्रशंसक हैं

वे आते हैं आगे
पीछे धकेले जाने के लिए
फिर वक्ता बोलता है
चुप करवाने के लिए
छीनने के लिए उनके कुछ शब्द
उनके जिन्दा रहने तक
जैसे कपड़ा मकान आसमान अधिकार आदि आदि ...

यूँ ही
क्रम चलता रहता है
एक बोलता है
तो दूसरा चुप हो जाता है
दोनों परम्परा निभा रहे हैं
यह परम्परा टूटनी चाहिए ...




घाव और बड़ा आदमी

कोहनी पर भिनभिनाती मक्खियाँ
नाक भौं सिकोड़ता बड़ा आदमी ...

उसके घाव और बड़े आदमी में समानता है
दोनों उसे खत्म कर रहे हैं .




मैं


सदियों से घिसी जाती रही औरत
अपने अस्तित्व के लिए
मर्यादा और कर्त्तव्य  के सिलबट्टे पर
शायद मैं भी घिसी जाऊँगी
चन्दन हो जाऊँगी

ईंट ईंट जुड़ती
खड़े होते झूठी शान के महल
शायद बनाकर कोई वस्तु मात्र
उसमें मैं भी रखी जाऊँगी
झाड़न हो जाऊँगी

हर दूसरे पल
चुपके से निकलता जाता जीवन
कहा जाएगा मुझे भी अगर
आँखों में सीलन लिए मुस्कराने को
फूल बन जाऊँगी

घोंट कर गला इच्छाओं का
रहना जो पड़े
रहूंगी
रोशनी की ज़रुरत जो पड़े
दीप बन जाऊँगी
.....

पर कहो कि आत्मा को बेच दो
अपनी ही चोंच से अपने पंखों को नोच दो
सोच से आसमान निकाल दो
कागज कलम को छोड़ दो
फिर तो मैं लडूंगी
सुई को छोड़कर
तलवार ही बनूँगी .





कौन

आधुनिक दिखने को आतुर
ग्राहकों से भरी कस्बाई फास्ट फूड की दूकान पर
वो कच्ची उम्र का लड़का
जो पक्क रहा हर मौसम में
रोटी के लिए
कर रहा नीलाम अपना करोड़ों का जीवन
उर्जा से भरपूर
या मालिक के डर से
वो दौड़ दौड़ कर पहुँचा रहा आर्डर
कर रहा टेबुल साफ़
जूठे बर्तन उठा रहा
फिर से चमका रहा
फिर से उठा रहा
फिर चमका रहा ...

पर उसके भविष्य को धुंधलाने वाला कौन
उसे इस दलदल में धंसाने वाला कौन ???



सम्पर्क :
गाँव व डाक - सुपवाल
जिला व तहसील - साम्बा
जम्मू व कश्मीर ( १८४१२१ )





प्रस्तुति :- 
 
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३

ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com

(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)

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