Thursday, January 22, 2015

संदीप रावत

अगर कुछ और देर अँधेरा रहा तो मुझे गोली मार दी जायेगी



मैं किसी को कोई प्रमाण पत्र देने की पात्रता नहीं रखता. फिर भी विशुद्ध पाठक की हैसियत से कविता पर जब भी बात करूँगा पूरी जिम्मेवारी के साथ करूँगा. संदीप रावत संवेदना का दूसरा नाम हैं. इनकी कविता ऊँची नहीं गहरी है. वे विचार को मुकुट की तरह नहीं पहनते. किसी समारोह की सीढ़ियाँ चढ़ने जैसे नहीं बल्कि भावों के पुल से सरोकार की नदी में रस्सी से उतरने जैसे कवि हैं.
अपने इस प्रिय कवि मित्र का आभार व खुलते किवाड़ पर हार्दिक स्वागत. शुभकामनाएँ भी. आइये पढ़ते हैं इनकी तीन कविताएँ -





शीर्षकहीन भूचाल 

रात के अँधेरे की चौंध मन की आँखों पर पड़ती है
अंधविश्वास से भरी एक बालिकावधू की आँख खुलते ही
रात्रिकालीन कर्फ्यू टूटता है
दिल चुपचाप सपनों की आवाजाही देखता है

नीदं में गिनती बोलती हुई एक बच्ची की बुदबुदाहट
अचानक अपहृत लड़की की सिसकियों में तब्दील हो जाती है
लापता लड़की
माँ की स्मृति में
लौट आती है
बार बार
ये कहते हुए – ‘मां ! मैं स्कूल जा रही हूँ ’

कोई पिता एक पल के लिये भी
दुनिया से कान नहीं हटाता 
और अपनी बच्ची को ढूंढते हुए 
दुनिया के आखरी वैश्यालय का दरवाज़ा खटखटाता है

एक रास्ता हमेशा छूट जाता है
एक वादा हमेशा टूट जाता है
छूटे हुए रास्तों पर
गुमशुदा कुछ बच्चे
गाते गाते
घूम रहे हैं गोल गोल
‘एक लड़की भीड़ में बैठी रो रही थी
    उसका साथी कोई नहीं था
        हमने कहा उठो ए लड़की
            आँख बंद कर
                अपने साथी को खोजो ’

उन टूटे हुए वादों दिलासों को
गाते गाते
भूखे बच्चों के अपश्र्व्य सुर टूट जाते हैं .


जोकर की मानिंद
आवाजें
बना रही थीं किस्म किस्म के चेहरे
और उन चेहरों को देख
उठ चुकी धूप की रोशनी में
पार्क की बेंच पर
बैठा
बच्चा एक नबीना
इस पल खिलखिलाता
उस पल हुआ जाता था उदास
कौन था वहां ?
हाथों में जिसके
थी डोरियाँ
अहा वो ध्वनियाँ
गोया ठुम ठुमा ठुमा झूमती हुई
कठपुतलियां
और उनके रक्स को
अपलक निहारता
इस पल खिलखिलाता उस पल हुआ जाता था उदास
बच्चा एक नबीना
था किस कदर गमगीं
गमगीं वजूदे-जीस्त सा
था किस कदर हसीं
हसीं विसाले–यार सा
उठ चुकी धूप की रोशनी में
पार्क की बेंच पर
बैठा
बच्चा एक ...



अगर कुछ और देर अँधेरा रहा तो मुझे गोली मार दी जायेगी 

मोमबत्ती की तरफ फूंक मारने से मोमबत्ती बुझते बुझते जल उठी
जो बुझते बुझते जली थी फिर हवा से बुझ ही गई .

अँधेरे में
घुप्प अँधेरे में
पेड़ों की सरसराहट ने उगा दिये बहुत से पेड़
पानी की छलछल ले आई कितनी ही नदियाँ
चूहों के कुतरने की आवाज़ ने सभी कुछ को कागज़ी कर दिया
पृथ्वी को सड़कों ही सड़कों से भर दिया
सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों ही गाड़ियों के शोर ने
अँधेरे में
घुप्प अँधेरे में
दूर एक बच्चे की रोने की आवाज़ ने सभी कुछ को माँ बना दिया
सभी कुछ को एक दुश्मन बना दिया कहीं गोली चलने की आवाज़ ने
भूख से रोते ,ठंड से ठिठुरते एक आदमी की रुलाई ने
पूरे विश्व से रोटी और कपड़ा छीन लिया 
अगर कुछ और देर
कुछ देर और अँधेरा रहा तो
मैं नदी में बह जाऊँगा
हवा मुझे उड़ा ले जायेगी
चूहे मुझे कुतर खायेंगे
गाड़ियाँ मुझे कुचल जायेंगी
अँधेरे में मुझे बच्चे को जन्म देने की पीड़ा सहनी होगी .
अगर कुछ देर और अँधेरा रहा तो
मुझसे रोटी और कपड़ा छिन जाएगा
मुझे गोली मार दी जाएगी ...
इससे पहले ही मैं
उठकर
मोमबत्ती जला देता हूँ .


नाम - संदीप रावत 
जन्म तिथि 31 जनवरी १९८८ 
शिक्षा - बी.एस .सी (गणित ), 
वर्तमान में दूनागिरी इंटर कॉलेज(अल्मोड़ा) में गणित का अध्यापन 
मोबाइल न. -9690248415



प्रस्तुति :- 
 
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३

ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com

(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)

3 comments:

  1. एक चिनग है. रेहटरिक व संवाद का अद्भुत सुमेल. अर्से बाद कविता के ताज़ेपन से मुखातिब हुआ हूं .

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  2. ताजापन लिए सुंदर कवितायेँ

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  3. वाह
    कंडवाल मोहन मदन

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