Wednesday, March 4, 2015

मृदुला शुक्ला


शिक्षा :- स्नातकोत्तर
लेखन :- एक लम्बे अंतराल के बाद २०१२ में फिर शुरू किया
प्रकाशित :- बोधि प्रकाशन से २०१४ में पहला कविता संग्रह ' उम्मीदों के पाँव भारी हैं ' प्रकाशित , वरिष्ठ कवि विजेंद्र द्वारा संपादित १०० कवियों के संग्रह ' शतदल ' तथा अनेक पत्र- पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
पुरस्कार : - ' इला त्रिवेणी ' सम्मान प्राप्त हुआ है 
अन्य :- दिल्ली में  'अविधा' नामक साहित्यिक संस्था की सक्रिय सदस्य हैं
सम्प्रति :- शिक्षण व स्वतंत्र पत्रकारिता

जे० एन० यू० में कवि - कथाकार मित्र सईद अयूब द्वारा आयोजित ' स्वर्गीय कवि दीपक अरोड़ा स्मृति काव्यपाठ ' में जाना हुआ . पिछले साल वही पर मृदुला शुक्ला जी से मेरा परिचय हुआ . फिर इनकी कविताएँ पढ़कर जान पाया कि वे कविताओं के अन्दर और बाहर एक जैसी हैं . इनका पहला कविता संग्रह ' उम्मीदों के पाँव भारी हैं ' काफी चर्चित है . उनका लेखन कवि होने के दम्भ से परे है . इनकी कविता एक गृहणी का प्यार है . जिसमें एकाधिकार की जिद नहीं सामूहिकता का गान है .  जिसमें अलग मुहावरा बनाने का प्रयास नहीं है . कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. वे कोरी भावुकता और गला रेतने वाले विचार से बचती हैं .सहजता से भरी कविताई की अपनी एक परम्परा है . इन्हें इसी के आलोक में देखा जाना चाहिए. वे अपनी कविताओं को संवेदना और विसंगतियों की वैध संतान मानती हैं. उनके संग्रह पर विस्तार से फिर कभी बात होगी . फिलहाल इन्हें ' खुलते  किवाड़ ' की ओर से हार्दिक धन्यवाद व बहुत - बहुत शुभकामनाएँ . 

आइये इनकी पाँच कविताएँ पढ़ते हैं -






तुम्हारा न होना

अँधेरा नहीं है ज़िन्दगी में
बस सूरज सुबह सर झुका कर निकलता है
घर के सामने से
कि मैं माँग न लूँ थोड़ा सा उजाला अपने भीतर के लिए

हवाएँ ठण्डी होती हैं मगर ...
बिना नमी की खुश्क उदासी लिए

ओस सीधा जा गिरती है ज़मीन पर
बिना मुझे छुए और कभी कभी
ठहरती भी है तो मेरी पलकों के कोर में

और चाँद ने तो आना ही छोड़ दिया इधर
कि शायद अमावस ठहरा सा है मेरे भीतर
...
वो आए भी तो भला कैसे

मैं उदास नहीं होती तुम्हारे बिना
लेकिन खुश भी नहीं हूँ शायद ...





उम्मीदों के पाँव भारी हैं

एक जहाँ हो हमारा भी
जहां तल्खियां मुस्कुरा कर गले मिलें
रुसवाइयों को मिल जाएँ पंख शोहरतों के
जब तोली जाएँ खुशियाँ बेहिसाब
तो दूसरे पलड़े पर रखा जाए थोड़ा सा ग़म

सुबहें थोड़ी धुँधली सही
शामें पुररौशन हों
बूढ़ी इमारतों के पास हो अपनी खुद की आवाज़
जो भटके मुसाफिरों को रास्ते पर लाये
सुना कर कहानी अपनी बुलंदी के दिनों की

जहां हमारी हाँ को हाँ
और न को न सुना जाए
वही समझा भी जाए

शायद मैं नींद में हूँ

मगर क्या करूँ मेरी उम्मीदों के पाँव भारी हैं
मेरे सपने पेट से हैं .





तांडव


बम भोले बम भोले बम बम बम
लट्टू की तरह नाच रहा है
जटा से निकलती गंगा की धारा
और उसमें भीग कर नाचती उन्मत्त भीड़
शिव होने का उन्माद सवार है सिर पर
कतारबद्ध औरतें पैर छूने को बेचैन
फूलों और रुपयों की भीड़ में
मुस्कुराता ठेकेदार



छनाक ! ओह आज फिर सोता रह गया
आँखों के सामने घूमती पानी की लम्बी कतार
शिव तांडव ही क्यों नाचे , कुछ आसान भी तो नाच सकते थे
कैसा टूटता है बदन ? और हर रात निकल जाता है टैंकर
तीन दिन हुए
आज रात की झाँकी में
फिर से बनेगा भोले नाथ
बिना नहाये
कोई बात नहीं !!
गंगा तो बहती रहती है उसकी जटाओं से अविरल .



यादें - एक

यादें बचपन के अंगूठे में लगी
ठेस सी होती हैं
जो भरते - भरते
फिर से ही दुःख जाती हैं अचानक
खेल खेल में

और भूलने की कोशिश
ऊन की सलाइयों पर छूट गया फंदा
जो शाम को उधड़वा देता है पूरी बुनाई
कल दुबारा बुनने के लिए

जेठ की दोपहर में डामर वाली सड़क पर
खुले सर और नंगे पाँव चलना है
जब पिघलता डामर लिपट रहा हो पैरों से
तो बस हिकारत से देख सूरज को कह देना
देखो तुम भी मत टपक पड़ना इन निगोड़ी यादों सा

भूलना और याद करना शायद
पहुँचना होता है टी पॉइंट पर
जहां ख़त्म नहीं होता पुराना रास्ता
बस दो और राहें फूट पड़ती हैं
उलझन भरी .




चाकू


खुश रहो
कामिनी के काजल की धार बनकर

पड़े रहो सब्जियों के छिलकों में
गंधाते
बजबजाते

मन नहीं करता
कि मूठ हो
मखमली म्यान हो
दीवार में एक महत्वपूर्ण स्थान हो
इतिहास में कहानियों में
वीरता का गान हो

उड़ो मत !

चाकू हो ! चाकू रहो

जरा भी कुंद हुए
घिसे जाओगे पत्थरों पर
चिंगारियाँ निकलने तक .



सम्पर्क :-
mridulashukla11@gmail.com




प्रस्तुति :- 
 
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी , साम्बा { जे० & के० }
दूरभाष - ०९४१९२७४४०३

ई मेल - kamal.j.choudhary@gmail.com

(सभी चित्र गूगल की मदद से विभिन्न साइट्स से साभार लिए गए हैं)

2 comments:

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  2. मृदुला जी का खुलते किवाड़ पर स्वागत... इनको पढ़ता रहता हूं...मैं पहली बार आपके इस ब्लॉग पर कमल जीत की किसी पोस्ट पर अपनी बात रख रहा हूं... वह भी दोस्त कमल के कहने पर... अब तक मैं इससे बचता रहा हूं... खैर यह सिलसिला जब आगे भी जारी रहेगा... एक बार फिर स्वागत इस उम्मीद के साथ कि भविष्य में भी इसी प्रकार से आप का प्रोत्साहन-सहयोग मिलता रहेगा

    आभार

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