08 सितंबर 2005, स्थान- सरकारी गेस्ट हाउस, जम्मू
सुबह के नौ बज रहें होंगे। कुछ ही समय पहले बारिश रुकी थी। मैं अपने फोटोग्राफर साथी संजय गुप्ता के साथ गेस्ट हाउस के उस कमरे के बाहर खड़ा था जिसके अंदर जीते जी किवदंती बन चुका एक व्यक्ति आराम कर रहा था। वह शख्स जो उस समय कमरे के अंदर था, वह देश की गंगा जमुनी तहजीब का दूसरा नाम है। वह नाम जिसको पूरी दुनिया के लोग पूरे अदब और मोहब्बत से लेते हैं। शहनाई का जिक्र होते ही जिस इकलौते शख्स का नाम जेहन में आता है, अंदर उन्हीं भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान से मिलने का मौका मुझे कुछ देर बाद मिलने वाला था, जो पहली और अंतिम बार जम्मू आए हुए थे।
एक दिन पहले, 07 सितंबर, 2005, स्थान- अमर उजाला आफिस, जम्मू
देर शाम मैं अपने कंप्यूटर
पर काम कर रहा था। तभी इंटरकाम पर संपादक अपने कैबिन में आने को कहते हैं। । रवींद्र
श्रीवास्तव जी वही संपादक हैं जिन्होंने मुझे पत्रकारिता में अंगुली पकड़ कर
चलना सिखाया है। श्रीवास्तव जी का कहना था कि कल जब भी मेरी बिस्मिल्लाह खान से
मुलाकात हो, तो मैं उस्ताद जी के पांव को हाथ लगा कर आशीर्वाद
जरूर ग्रहण करूं। श्रीवास्तव जी का जोर देकर कहना था कि याद रखना, असली
कलाकार और मनमौजी फकीर में ज्यादा अंतर नहीं होता है। दोनों के चरणों में रहोगे
तो कुछ न कुछ जरूर लेकर आओगे। इसके अलावा उन्होंने कुछ सवाल भी सुझाए जो बिस्मिल्लाह
खान जी से पूछे जा सकते थे।
08 सितंबर 2005, स्थान- सरकारी गेस्ट हाउस, जम्मू
लगभग पंद्रह मिनट के बाद मुझे कमरे में बुलाया गया। अब मैं उस शख्स
के सामने खड़ा था जिसको बचपन से केवल रेडिया और टीवी पर सुनते देखते आए थे। जिस ग्लैमर
की मैंने कल्पना की थी, ठीक उससे
उल्ट एक बेहद सादा बुजुर्ग हल्की सफेद दाढ़ी लिए बेड पर बैठा हुआ था। पास जाते
ही मैंने उनके पांव छू लिए। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ मुझे अपने साथ बेड पर ही बिठा
लिया। बिस्मिल्लाह खान के साथ उनके बैड पर उनकी ही बगल में बैठना सच में मेरे लिए
गौरव की बात है।
मेरी गीली कमीज को देख कर पूछा की भीगते हुए आए हो।
मैंने कहा हां, घर से बाइक पर निकला तो तेज बारिश शुरू हो गई
थी। मैं लगभग बारह किलोमीटर भीगता हुआ आया था। मैंने हंसते हुए कहा, आप से मिलना भी तो था। उसी समय उन्होंने
मेरे और संजय के लिए चाय लाने का हुक्म दे दिया।
यह है मेरी दिली तम्मना
चाय पीने के साथ ही सवालों का सिलसिला शुरू हो गया। मेरा पहले सवाल के
जबाव में उनका कहना था कि उन्होंने जीवन में वह सब कुछ हासिल कर लिया है जिसकी ख्वाहिश
एक आम आदमी करता है। फिर भी एक दिली इच्छा बाकी रह गई है। दिली तम्मना है ऐसे
सुर की तलाश जो दूरियां मिटा दे। मैं एक ऐसा सुर बजाउं जो धर्म, जातियों और इलाकों के नाम पर लड़ने लड़ाने वालों को
एक कर दे। ऐसा सुर मिलते ही मेरी तलाश खुद खत्म हो जाएगी।
भरी आंखों से कहा, लकीर खींच देने से देश अलग नहीं होते
जब बात पाकिस्तान पर चली तो उस्ताद जी भावुक हो गए। उन्होंने भरी आंखों से कहा कि लकीर खींच देने से कोई अलग नहीं होता। पाकस्तिान और उसके बाशिंदों को हमवतन कहने वाले उस्ताद जी का मानना था कि वह भी हिंदोस्तान के एक हिस्से के नागरिक हैं।
जम्मू कश्मीर में चल रही हिंसा ने किया आहत
आतंक और आतंकवादियों के बारे में उस्ताद जी का कहना था कि इनके सुर बिगड़ गए हैं। रियासत में डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से चल रही हिंसा ने उनको बहुत आहत किया है। जो लोग भी हिंसा से जुड़े हैं वह सारे बेसुरे हैं। प्रेम वही लोग करते हैं जिनको सुरों की पहचान है। अगर ऐसे लोगों को सुर की समझ होती तो वह लड़ते ही क्यों। संगीत में ऐसी ताकत है कि लोगों ने इसकी साधना के लिए तख्त छोड़ दिए, बंदूक तो कोई चीज नहीं है।
नई पीढ़ी को दिया संदेश
उस्ताद जी का कहना था कि संगीत सीखने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। संगीत करतब है। अर्थात पहले ‘कर’ फिर ‘तब’। जब तक रियाज और मेहनत नहीं की जाएगी, तब तक कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
थोड़ी देरे के लिए बंद किया शहनाई बजाना
शाम को कल्चरल अकादमी के अभिनव थिएटर में जब उस्ताद जी ने प्रस्तुति देना शुरू किया तो प्रेस के फोटोग्राफर लगातार फोटो खींच रहे थे। अंधेरा होने के कारण उनकी फ्लैश लगातार उस्ताद जी का ध्यान भंग कर रही थी। इस पर उन्होंने शहनाई बंद कर फटकार लगाते हुए कहा कि शहनाई वादन की क्या जरूरत है। फोटो ज्यादा जरूरी हैं। उसके बाद उनका कहना था कि जो भी फोटो खींचने हैं वह अभी खींच लो। जब वह शहनाई बजा रहे हों तो उनका ध्यान भंग न किया जाए।
[ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साइसाइटी फार प्रोमोशन आफ इंडियन क्लासिक म्यूजिक एंड कल्चर एमांग यूथ (स्पिकमैके) के जम्मू एंड कश्मीर चैप्टर और जम्मू कश्मीर कल्चरल अकादमी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए हुए थे।]
साक्षात्कार और प्रस्तुति- कुमार
कृष्ण शर्मा
वाह , बहुत ही अद्भुत ।
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति ने बिस्मिल्लाह खान जी को मेरे समक खड़ा कर दिया। इतना अद्भुत दृश्य । उम्दा ।
प्रेम वही लोग करते हैं जिनको सुरों की पहचान है ।
आपका बहुत बहुत आभार इस खूसूरत प्रस्तुति हेतु ।