Sunday, July 19, 2020

स्‍वामी अंतरनीरव

स्‍वामी अंतरनीरव सुच्‍चा कवि है। उनकी कविताएं ही उनका परिचय है। वह चाहे स्‍वामी का व्‍यक्तित्‍व हो या उनकी रचनाएं, हर चीज सच्‍ची, सुच्‍ची है। पंजाबी और पहाड़ी के साथ कभी कभी हिंदी में भी लिखते हैं। भारत और पाकिस्‍तान के अलावा विश्‍व में जो भी पंजाबी और पहाड़ी जानने वाले लोग हैं, वह स्‍वामी का नाम जानते हैं। उनके शब्‍द रूह को छूते हैं। उनकी कविताएं ग्‍लोबल होने के बावजूद अपनी मिट्टी का स्‍वाद लिए होती हैं। स्‍वामी कहते हैं कि वह पहाड़ी हैं और पहाड़ों में लोग अकसर मिट्टी खाते हैं। उन्‍होंने भी बहुत मिट्टी खाई है। इसलिए उनमें से मिट्टी की खुश्‍बू आती है। एक और विशेषता जो स्‍वामी की मुझे खींचती है वह है उनका कवित पाठ का तरीका। जब वह कविता पाठ करते हैं तो उनका रोम रोम कविता के शब्‍दों के भावों का अनुवाद करता प्रतीत होता है। ऐसा लगता है मानो कोई मौजी फकीर किसी दरगाह पर नृत्‍य कर रहा हो।

‘खुलते किबाड़’ पर प्रस्‍तुति कविताएं मूलत: पंजाबी में लिखी कविताएं हैं जिनका अनुवाद उनकी बेटी नेहा ने किया है। इसके लिए नेहा का आभार। केवल अंतिम कविता मूल रूप से हिंदी में लिखी गई है।



इन दिनों

मेरे इलाके में
फौजी वर्दी टोपी पेटी और
बड़ा बूट पहन कर ही आ सकते हैं
गौतम बुद्ध

इसा मसीह को
राय दी है
दुआएं सब के काम की नहीं होती
जीवितों के काम की भी नही हैं दुआएं
खाते पीतों का खेल है यह तो

वह हठ करते हैं
यही तो है प्रार्थनाओं की ऋतु

हवा नंगा करती
आग जलाती
पानी बहा देता
एवं बर्फ ढक देती
सब का सब

आग पानी हवा बर्फ
सब के सब है आजकल
मेरे इलाके के हाकिम

पड़ोसी
गुड मॉर्निंग की जगह
अब मुझसे ठाह कहता है

मैं भी उसे
जवाब में
ठाह ही कह देता हूँ

ठाह ठाह ठाह
हम एक-दूसरे से
इसी भाषा में बतियातें है आजकल

सेबों की बातें
इन दिनों
सबके सामने करने योग्य
बातें नहीं है

* ठाह : गोली चलाने की आवाज़


उसने कहा

उसने कहा
घर को कविताओं से
ज़्यादा ,फूल-पौधों की  
ज़रूरत है

मैं
फूल बोऊंगी

मेरी मानो
तुम भी फूल ही बोना

कविता
अपने आप उग आएगी


लिखें

जानता हूँ
लिखने से कुछ नहीं होगा
फ़िर भी लिखें
लिखें
असहमति के गीत
अपने ही पंख कुतर रही नज़्में
भविष्य के अफ़साने
एक रंगे
फ़ूल के भार से 
मर जाएंगे हम, परन्तु
सांस लेते रहेंगे शब्द
लिखें
कि दीवारें कभी 
चीख़ नहीं सुनती
रेत को नम नहीं कर सकते आंसू
कि न्याय बस लोकाचार है
कि दीवान-ए-ख़ास ही
दीवान-ए-आम है
लिखें
कि चुप्प बहरों को नहीं
कान वालों को सुनती है
रात का अर्थ कभी दिन नहीं रहा
रात का अर्थ कभी दिन नहीं रहेगा
अपनी ही मिट्टी से
अब ख़ुशबू नहीं आती
लिखें
कि सड़क पर चलती 
भेड़िया भीड़ मे
हर शख़्स एक मेमना है
लिखें
कि पहले से लिखा
खोद रहा नेईं खबरें
कि राजा ग़ल्त था
ग़ल्त है, ग़ल्त रहेगा
लिखें
कि शब्द मनुष्य की पहचान हैं
शब्द का होना मनुष्य का होना है
शब्द की नीयति मनुष्य की नियति है
बस लिखें


उदासी

जब उदास होती हूँ
चिड़ियों की ओर
कान लगाती हूँ

छत पर दाना पानी रख
उन के आने की
प्रतिक्षा करती हूँ

जब 
वह उदास होता है
बंदूक उठाकर निकल जाता है

संध्या को वह
ख़ुश होता है

मैं और उदास


बदबू

रक्त से
कभी ख़ुश्बू नहीं आई

रक्त से
कभी ख़ुश्बू नहीं आती

यदि आप को
सीमा पर बहे रक्त से
ख़ुश्बू आती है

आप हत्यारे हैं।


क़तबा

मैं क़तबा
इस कब्र पर
इसके
मरने के संग
जन्मा था
मुझपर देखो पढ़ो
यह जन्मा मरा कब हैं

शोक मनाओ इसके मरने का
जश्ऩ मनाओं अपने जीने का
अफ़सोस मनाओ अपने मरनेे का
अपना क़तबा घढ़ने का
मुझकों देख अहसास करो
अपना क़तबा पढ़ने का

सदियों से मैं यहाँ खड़ा हूँ
कई लोगों को आते देखा
कई लोगों को जाते देखा
अब तो बूढ़ा कतबा हूँ मैं
मेरे आगे पीछे के तो
सब क़तबे जवान खड़े हैं
उनकों पढ़ना कितना आसान 
मुझको पढ़ना कितना मुश्किल
मैं तो हूँ अब मरने वाला
मैं भी इक दिन मर जाऊंगा
तुम मेरे क़तबे पर लिखना
बूढ़े क़तबे मर जाते हैं


संपर्क: 
निवासी: निहाालपुल सिंबल कैंप ( रख्‍ख के पास)
गांव व पोस्‍ट आफिस: सिंबल कैंप
तहसील: आरएस पुरा, जम्‍मू (181104)
मोबाइल: 9419110232



प्रस्तुति व फोटोग्राफ: कुमार कृष्ण  शर्मा

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