Sunday, August 28, 2022

मुझे मंदिर मस्जिद के बीच रोटी चाहिए



दिसंबर माह की 11 तारीख का सर्द दिन था। मैं अपनी बाइक पर विक्रम चौक जम्‍मू से जल्‍द से जल्‍द झेलम रिजार्ट पहुंचना चाहता था। कारण भी साफ था। मेरी पसंदीदा शायरों में से एक निदा फ़ाज़ली से मुलाकात की संभावना थी। फाजली जश्‍न-ए-फैज़ में हिस्‍सा लेने के लिए जम्‍मू पहुंचे हुए थे।

झेलम रिजार्ट में कुछ इंतजार करने के बाद फ़ाज़ली साहब पहुंचे और हम पत्रकारों से बात करने के लिए सहमत हो गए। दैनिक जागरण के वरिष्‍ठ पत्रकार और बड़े भाई अशोक कुमार, मौजूदा समय में आउटलुक के लिए काम कर रहे पत्रकार भाई आशुतोष शर्मा भी मेरे साथ थे। हालांकि निदा फ़ाज़ली जम्‍मू में बाहरी राज्‍य के मोबाइल फोन सिम के काम नहीं करने पर वह खासे गुस्‍से में थे। उनके इसी गुस्‍से ने उनसे साथ होने वाली करीब आधे घंटे की मुलाकात को जरूरी तपिश भी बख्‍शी। देश की राजीनति और राजनेता खासतौर पर फ़ाज़ली की तपिश के निशाने पर रहे।

 


मुझे मंदिर और मस्जिद के बीच रोटी चाहिए

निदा फ़ाज़ली जी ने बिना किसी औपचारिकता के अपने अहसासों को शब्‍द देना शुरू किया। उनका कहना था कि आप जिस वर्ग के हाते हैं, आपके लेखन में, सोच में, आपके शब्‍दों में वो वर्ग झांकता है। सिर्फ कुर्सी के लिए राजनीति ने इतिहास के साथ, भूगोल के साथ और आम आदमी के साथ मजाक किया है। हमें बांट के रख दिया है। आम आदमी जो रिक्‍शा चला रहा है उसे उलझा दिया है। देख यह मजिस्‍द है और यह मंदिर है, तू बीच में खड़ा है। मुझे मंदिर और मस्जिद के बीच रोटी चाहिए। उन्‍होंने अपनी बात कुछ इस तरह से कही-

बच्‍चा बोला देख कर मस्जिद आलीशान

अल्‍लाह, तेरे एक को इतना बढ़ा मकान।



देश को दो बार बांटा गया

फ़ाज़ली का कहना था के राजनीति ने देश को दो बार बांटा। पहले भारत-पाकिस्‍तान के रूप में और दूसरा बहुसंख्‍यक और अल्‍पसंख्‍यक बना कर। इसने पूरे देश को अपाहिज बना दिया है। अब तो साहित्‍य में भी धर्म आ गया है। जो आदमी हाशिए पर था, वह अब भी हाशिए पर खड़ा है। उन्‍होंने अपनी बात कुछ इस तरह से कही-

हमको कब जुड़ने दिया जब भी जुड़े बांटा गया

रास्‍ते से मिलने वाला हर रास्‍ता काटा गया।

कौन बतलाए सभी अल्‍लाह के धंधों में हैं

किस तरफ दालें हुईं रुखसत किधर आटा गया।

वो लुटेरा था मगर उसका मुसलमां नाम था

बस इसी एक जुर्म पर सदियों मुझे डांटा गया।

 


फराज अहमद ने बताई पाक की हकीकत

फ़ाज़ली जी देश के बंटवारे से भी काफी दुखी थे। उनका कहना था कि दोनो देशों में कोई अंतर नहीं है। दोनों का एक ही हाल है। उनका कहना था कि वह एक बार पाक के मशहूर उर्दू शायर अहमद फराज़ के साथ पटना से दरभंगा जा रहे थे। सड़क बहुत खराब थी। मैंने फराज़ से कहा कि आय एम सॉरी, सड़क बहुत खराब है। इस पर फराज़ कहने लगा कि वहां भी यही हाल है। फ़ाज़ली ने सवाल किया कि अगर दोनों का यही हाल है तो बीच में लकीर क्‍यों खींची।

 


शब्‍दों का हो रहा सबसे बड़ा अनादर

फ़ाज़ली जी का कहना था कि आज की समस्‍या बहुत बड़ी है। जिस देश में रामायण पढ़ी जाती है, गीता, बाइबिल, कुरान पढ़ी, उसी देश में सबसे बड़ा अनादर शब्‍द का हो रहा है।

क्रिकेटर, नेता, एक्‍टर हर महफिल की शान

स्‍कूलों की किताबों में कैद है गालिब का दीवान।

उनके अनुसार रही सही कसर अखबारों ने पूरी कर दी है। अब समाचार पत्र अपने मकसद से भटक गए हैं। हाल यह है कि आज  की अखबारों में बेशक्‍ल लीडरों की शक्‍लें नजर आती हैं। क्‍या किसी अखबार ने हब्‍बा खातून की नज्‍़म छापी, क्‍या किसी ने यह बताने की कोशिश की कि ललेश्‍वरी देवी शेख-उल-आलम की गुरु थी।

 


मानवता में मेरा विश्‍वास और पक्‍का हो जाता है

गिरते राजनीति के स्‍तर, कट्टरवाद, उन्‍माद, यु्द्ध की आशंका, असहमति के खतरे की चिंता के बावजूद फ़ाज़ली का कहना था कि जीवन खूबसूरत है। उनका हंसते हुए कहना था कि जब मैं किसी को सुबह कबूतरों को दाना खिलाते, पूरे चांद को ताज महल पर रोशनी लुटाते या मां की गोद में किसी बच्‍चे को मुस्‍कुराते हुए देखता हूं तो प्रेम और मानवता में मेरा विश्‍वास और पक्‍का हो जाता है।

 

प्रस्‍तुति- कुमार कृष्‍ण शर्मा

94191-84412

(अंतिम दो चित्रों के लिए सृजन शर्मा का आभार)


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