Friday, May 31, 2013

भगवती देवी



जन्म : घगवाल , साम्बा में
माँ    :  सुश्री कमला देवी
पिता  :  श्री सतपाल
शिक्षा :  जम्मू वि० वि० में  एम० फिल० हिन्दी की शोधार्थी 
लेखन :  इन्हीं कविताओं से शुरुआत 
अन्य :  हिन्दी विचार मंच , जम्मू की सक्रिय कार्यकर्ता

संगठन और सामूहिक सपनों को लेकर भगवती से संवाद अनिवार्य सा हो गया है। इनका आक्रोश और प्रतिबद्धता साथियों को प्रेरित करने वाली है। इन्होंने ये कविताएँ झिझकते हुए सुनाई और कहा ये कविताएँ नहीं बस एक बयान हैं। ऐसे बयान को सलाम। अनंत शुभकामनाओं और इस डगर पर स्वागत के साथ प्रस्तुत हैं इनकी तीन कविताएँ।



पृथ्वी का बयान
 
रबड़ के हाथ में रबड़ था

मेरे देखते ही देखते
रबड़ के हाथ
अकाश तक फैल गए
मुझे घेर कर खड़े हो गए
मैं देखती रही

देखते ही देखते
मेरी बच्ची की और बढ़ने लगे
अपना मंतव्य पूरा करने लगे
वह रोती रही
चिल्लाती रही ...

रबड़ के हाथ में इंजेक्शन थे
जिसे वे मेरी बच्ची की नस नस में
रोप देना चाहते थे
मैं असहाय मूक बन देखती रही।

रबड़ के हाथ में
मेरी बच्ची का जिन्दा गोश्त है
देखते ही देखते
निर्वासित स्त्रियों का समूह
क्रोध की ज्वाला उठाए
विवेक की मशाल जलाए
रबड़ के पास आ रहा है
रबड़ के हाथ का धर्म सिकुड़ने लगा है


समूह और पास आ रहा है।




मुझे नफरत है
मुझे नफरत है इस दुनिया से
क्यों आवाज़ उठाती नहीं
अन्याय के प्रति
मुझे नफरत है अव्यवस्था से
जो गले में फूलों का हार पहनाकर
आदमी को बुत बना रही है
क्यों सूखती आंतड़ियों में आक्रोश पैदा होता नहीं।

मैं चाहती हूँ
अव्यवस्था के लिए बनाना एक गटर
चुनना सूखी लकड़ियाँ
एक तिली
या धमाकेदार ब्लास्ट ...

मैं जानती हूँ
इन बुतों में से कुछ लोग
जिन्दाबाद के नारे लगाते - लगाते
इन्कलाब के नारे लगाने लग जाएँगे
मंच से धड़ नीचे गिरने लग जाएँगे
जिनको गिद्ध भी नोचने नहीं आएँगे

कैसे खाएँगे

गिद्ध भी हक की कमाई खाते हैं।
 



युद्ध

कभी था  वह ज़माना
जब था हस्तिनापुर में एक द्रोणा
आज शहर - शहर  में हैं  उसके वंशज
ये काट रहे  हैं पूरे हाथ अपने अर्जुनों  के लिए ...

हे कटे हाथ वाले एकलव्यों !
अपनी कोहनियों को करो पैना
रक्त को बना दो रसायान -

युद्ध सिर्फ हाथों से नहीं लड़े जाते। 



सम्पर्क : -
 गाँव व डाक - घगवाल , नरसिंह मंदिर कॉलोनी
 तहसील  व जिला -  साम्बा , जे० एंड के० {१८४१४१}
  ई मेल - parul1286@gmail.com


 (सारे चित्र गूगल से साभार लिए गए हैं)




प्रस्तुति : -
 




कमल जीत चौधरी
गाँव व डाक - काली बड़ी , साम्बा {जे० एंड के०}
ई मेल -   kamal.j,choudhary@gmail.com
दूरभाष -   09419274403 



5 comments:

  1. pehli kavita bahut shandar....lekhte rho...shubkamanaye

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  2. prithvi ka bayan lajwab kavita hai haalanky kuchh aur sambhawana thi
    badhai

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  3. kavita parny ke baad laga " JO MERE DIL MAIN HAI ZUBAAN PER LATY LATY ITNI DER KYUN KI.....JO HO SAKTA THA BAHUT PEHLY USKO LANY MAIN SADI LAGA DI"......well done I m your fan....

    Dr.Sonia

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  4. your poems/writngs carry a message and highlight the problems faced by everyone at one or the other stage....but people start living with these things and become a source of it knowing that how painful it is to face them....you have written every word very systematically and beautifully and have that courage and intellect to highlight these problems.....god bless u and keep going

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  5. Ati uttam kavitaaen .Keep it up

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