Wednesday, June 3, 2020

शेख मोहम्मद कल्याण


निश्चित विचार से युक्त शेख मोहम्‍मद कल्‍याण की कविताएँ अपने आत्मीय भावों से घर , आँगन , गाँव , कस्बे व शहर को उकेरती हैं। यह आम आदमी की कविताएं हैं। आदमी को अपने हक़ के लिए लड़ना सिखाती हैं। प्रेम कविताओं और प्रकृति के मानवीय बिम्बों के लिए कल्याण खास पहचाने जाएंगे। प्रस्तुत कविताएं उनके काव्‍य संग्रह 'पहाड़ अपनी जगह छोड़ रहे हैं' से साभार ली गई हैं।
 
(अपरिहार्य कारणों के चलते नई पोस्‍ट करने में जरूरत से ज्यादा देर हुई, उसके लिए खेद है।) 



पहली तारीख

पहली तारीख का काला साया
जब-जब भी मंडराने लगता
घुमड़ आते हैं काले बादल
आज फिर पहली तारीख है
पिता के हाथ में
खुजली हुई होगी
मोल भावों में तुली होगी पेंशन की रकम
बूढ़ी मां ने फिर दोहराया होगा
नए सूट का पुराना स्‍वप्‍न
और नन्‍हें पैरों ने भी नापी होंगी
जूतों की कई दुकानें
और मकान के झड़ते
पलस्‍तर से झांकती ईंटें
आज फिर खूब हंसी होंगी
क्‍योंकि
आज पहली तारीख है
सपनों के जिंदा और मर जाने का दिन

आज पहली तारीख है।





बहुत दिनों बाद

बहुत दिनों बाद
कोयल ने सुर में गाया
बागों में नाचे मोर
और कवियों ने रचीं
प्रेम कविताएं
बहुत दिनों बाद
रंगीन तितलियों ने नापा आसान
और दुबके खरगोशों ने जमीन
समय के खिलाफ
कइयों ने मारीं चीखें
एक साथ
बहुत दिनों बाद। 




तुम्‍हारे ही बहाने से... 

शाम का किया इंतजार
ढलते सूरज की तरफ
चेहरा घुमा बनाई कई आकृतियां
समय को झिंझोड़ा कई बार
तुम्‍हारे ही बहाने से...
रात को देखा
खुद से भी व्‍याकुल
तड़पते शब्‍द देखे
कागज पर आने को
शरारती हवा जो छूकर निकल गई
पास से
फैल गई ब्रह्मांड में
तितलियों के रंग चुराने चाहे
उड़ना चाहा आसमान की ओर
लौट लौट जाना चाहा
बचपन में
किताबों को गटगट पी जाना चाहा
लैला-मजनू
शीरी-फरहाद के किस्‍से
फिर
फिर चाहे पढ़ने
तुम्‍हारे ही बहाने से...
यही नही प्रिय
काम से लौटतीं महिलाओं की पीड़ाओं को
महसूस किया
मजदूर के हाथों से रिसते लहू की
बाजारबाद में, रोटी तक पहुंचने की यात्रा को
महसूस किया
तुम्‍हारे ही बहाने से।






बोल के लब आजाद हैं तेरे
(फैज अहमद फैज को समर्पित)

माना की बोलने पर बंदी लगी है
माना कि राजा के आदमी
खींच लेंगे तुम्‍हारी जुबान कभी भी
बह रही
यह मनमोहक हवा भी
तुम्‍हारी चुगली कर देगी राजा के दरबार में
लेकिन तुम सपने देखना मत छोड़ना
हालाांकि
तुम्‍हारी रातों में घुस आएगा
लंबे दांतों वाला काला दैत्‍य
चाह कर भी भाग नहीं  पाओगे तुम
मेरे बच्‍चे
कह रहे हैं सारे
राजा की बिछी बिसात में
बहुत से मोहरे हैं
जो राजा के कहने पर चलते हैं
तुम उलझ जाओगे
शतरंज के इस व्‍यूह में
इस व्‍यूह केवल राजा ही तोड़ सकता है
मेरे बच्‍चे
कह रहे हैं सारे
बेशक तुम्‍हारे हाथ में तिरंगा है
बेशक तुमने गाया है राष्‍ट्रगीत
तुमने बेशक सींचा है
इस देश का बगीचा
अपने लहू से
तुमने उड़ाई है पतंग बेशक
काटे जा सकते हैं तुम्‍हारे हाथ
यह वक्‍त के हाकिम हैं
कह रहे हैं सारे
राजा कहां देखता है आईना
उसे मत भेंट करो
उसे आईनों से सख्‍त नफरत है
आईना दिखाता है चेहरा
असली चेहरा
राजा को लगता है
समय पड़ा है उसकी जेब में
कह रहे हैं सारे
लेकिन मैं कहता हूं मेरे बच्‍चे
जुल्‍म के खिलाफ बोलने की
जितनी आज जरूरत है
शायद इससे पहले कभी नहीं थी
कि हम सब की आजादी
बचाए रखने के लिए
हम सब का बोलना जरूरी है
बोल कि लब आजाद हैं तेरे। 



सम्पर्क :-
नरवाल पाई , सतवारी
जम्मू , जे० & के०
दूरभाष - 08825063844
ई मेल - smkalyan2010@gmail.com
प्रस्‍तुति और फोटोग्राफ: कुमार कृष्‍ण शर्मा


1 comment:

  1. कल्याण की बढ़िया कविताएं लगाने के लिए साधुवाद।
    ऐसे काम बाधित नहीं होने चाहिए साथी,चाहे स्थितियां कितनी भी विपरीत हों।
    आप कवि व कविताओं के अपने परिचय देने में और ज़्यादा मुखर हो सकते हैं।
    बढ़िया,बधाई।

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