परवीन कुमार मेरे दोस्त हैं। लेखन की दुनिया में उनका यह पहला कदम है। वे राजनीति शास्त्र के व्याख्याता हैं। दस साल पहले बिलावर,भड्डू में एक साथ नौकरी करते हुए हम एक ही घर में रहते थे। आज भी हमारा नियमित संवाद है। वे किसी भी संवाद में प्रेम, राजनीति और कविताई को रेखांकित करने से नहीं चूकते। इन कविताओं में भी वे शिनाख़्त व तसदीक करने की भूमिका में हैं। उनकी भूमिकाएँ बनी रहें।
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अँगूठा
अँगूठा उठा तो उठ गए
जोश से
विजय से
अँगूठा झुका तो झुक गए
निराशा से
एक अँगूठा बढ़ा
काले अक्खर की भैंस चराने
खत्म हो गई चरागाहें
एक अँगूठा बढ़ा गुरु यश बढ़ाने के लिए
एक अँगूठा घुमाए सोने के कंगन...
अँगूठों की कथा में
किसका अँगूठा बड़ा?
मैं आज खुश हूँ
मैं आज खुश हूँ
क्यों!
तुम्हें आज खुश देखा
खुश महसूस किया
खुश सुना
खुश जाना
मैं आज खुश हूँ
क्यों!
मेरा कवित्व खुश है
तुमसे बात करके
तुमसे मुलाकात करके
मैं आज खुश हूँ
क्यों!
आज पहली बार तुमने झूठ बोला
यह सच है झूठ नहीं
मैं आज खुश हूँ
क्यों!
तुमने एक और सम्पर्क सूत्र दिया
सिर्फ सूत्र ही नहीं
समीप आने के लिए एक पुल भी दिया।
क्या हुआ
क्या हुआ जो मेरा सिर सरहद पर कट गया
कुर्सी, कार, लश्कर तुम्हारा बंगला तो बच गया
क्या हुआ जो फूल मुरझा गया मिट्टी का
तेज़ाब खार पागलपन का कांटा तो बच गया
क्या हुआ जो मैं धूप, ट्रेन, प्लेटफॉर्म या पटरी पर मर गया
तुम्हारे कंक्रीट का जंगल, शर्म का शामियान तो बच गया ...
चरित्र
गाड़ियों पर पढ़ी जा सकती हैं
देशभक्ति, प्यार, वफ़ा, नैतिकता को दर्शाती
तुकबंदियाँ
मैंने लगभग हर गाड़ी पर लिखा देखा -
'सामान' पीछे से उतारें
सामान तो आगे सेे भी उतरता रहा
मगर 'पीछे' को हमने अपना चरित्र बना लिया।
रखकर देखेंं
मेरे मित्र के पास लाइसेंस है
मगर वह गाड़ी चलाना नहीं जानता
मेरे पास लाइसेंस नहीं है
मगर मैं गाड़ी चलाना जानता हूँ
मुझे पता है
आप 'लाईसेंस' और 'ड्राइविंग' की जगह
'लाईसेंस' और 'बंदूक' रखकर नहीं देखेंगे
आप 'बी.पी.एल. कार्ड' और 'राशन' रखकर ही देख लें।
चिट्ठी पत्र-
गाँव- सल्लन,
तहसील- दयाला चक, जिला- कठुआ
पिन कोड- 184144
दूरभाष-7006229144
मेल आई. डी.- Pk11977777@gmail.com
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