Wednesday, March 13, 2024

आदित्‍य शर्मा


अरिजीत सिंह और जसलीन रॉयल के गाए हिट गीत
'हीरिए हीरिए' 
 के अलावा अन्‍य कई हिट गानों की रचना करने वाले गीतकार आदित्‍य शर्मा जम्‍मू में रहते हैं। बेहद सादा, सौम्‍य और मिलनसार आदित्‍य मूलत: इंजीनियर हैं। उन्‍होंने  सन 2007 में पहली कविता लिखी। सन 2016 से फिल्‍मी गीतोंं को लिखना शुरू किया। मौजूदा समय में आदित्‍य एक फिल्‍म की पटकथा, कुछ धुनों पर गीत और एक किताब की बुनतर का काम कर रहे हैं। 

'खुलते किवाड' के पाठकों के लिए प्रस्‍तुत हैं आदित्‍य की कुछ रचनाएं

■ 
जो मरा
वो मैं नहीं,
मेरा नहीं,
मुझसे दूर, बहुत दूर मरा

उसके बैन, चीखें,
आँसू, आँसुओं के सेक नहीं पहुँचे इधर
जो मरा 
वो इंक़लाब था या ख़्वाब मैं नहीं जानता
वो कुफ़्र था या सवाब, 
रजं था या अहबाब मैं नहीं जानता 
वो तस्वीर था या नाम 
या चुप था अख़बारों में, 
द्रोही था भाषणों में, 
दोस्त था उदासियों में 
पर वो दूर था, बहुत दूर मुझसे
ना मेरा था, ना होता कभी
फिर भी 
मुझे मुझसे मौत की बू आ रही है
ये चुप्पी मेरी, तुम्हारी मुझे खा रही है


र मन औपचारिकताओं से बीमार 
हम सब इश्तिहार बेचते हुए इश्तिहार 
सिफ़त की भूख से तिलमिलाए हुए
कसमसाते शोर के डब्बे 
हम सब 
नाचते गाते 
तस्वीरों में दर्ज करते लम्हा लम्हा अपनी हस्ती
हम सब 
टटोलते अपनी ज़रूरत रिश्तों की मे’यार में
ढेर होते आस का, कयास का, सोच का
हम सब 
हो जाने चाहते कुछ ओर, कहीं ओर, कैसे भी
कुछ अलग, भव्य, विशाल
ऐसे के जैसे कोई नहीं था, कोई नहीं होगा
अपने व्यक्तित्व के परायेपन से अनजान
हम सब बहुत वहमों से लदे
ख़ुद के मोह में डूबे भूले भूले ये सच के 

हम सब समय की हथेली पे आये छाले से हैं 
जो धीरे धीरे भर रहा है |

क दाव लगा 
कमर से उठाया, पलटा
पटक के ज़मीं पर थपेड़ दिया
एक सीटी बजी
दो पॉइंट 
और तालियाँ
बहुत तालियाँ
दूर दूर तक गूंजती तालियाँ.. .. ..

फिर एक सीटी बजी
और लाठियाँ
धक्के, मुक्के
चीखें
और 
सन्नाटा पसर गया

यूँ लगा…
पर खेल ख़त्म हुआ नहीं अभी 
उसके दाव पेच अभी बाक़ी है
होनी ज़र्द तुम्हारी ख़ाकी है

यूँ ही अकस्मात्
मेरी आँख में जब
तुम्हारी याद की उँगली लग जाती है
लाल-सी ढल जाती है शाम मुझमें
भर जाती है एक झील
और तैरने लगता है उसमें बहुत पतला-सा
एक चाँद तुम्हारे जाने के कारण का
मैं पोंछ भी नहीं पाता हूँ उसको
वो दाग़-सा जो मेरे अंदर धड़कता रहता है
 
दर्द की घड़ी पर अलार्म-सा लगा के रख दिया था
तुमने सीने की ख़ला में याद है?
वो गूँजता रहता है दम-ब-दम मुझमें
अब वो बजेगा जिस रोज़
मैं जाग जाऊँगा

दीवारों से मैल खुरचने से
रंग पोतने से नया-सा नहीं हो जाता घर
पुराने दिनों के दुख
मृत्यु का रुदन
झगड़ों के काँच
सब रहते हैं
सिर्फ़ ब्याह का स्वस्तिक रंगे दीवारों पर हाथ
रिसती लालिमा शगुन की ही नहीं रहती
घर की दीवारों में सेंध से रेंगते रहते हैं
खिड़कियों को दीमक-सी चाटती रहती है
पीड़ा
गुप्त कोनों में बहाए आँसुओं की नमी से
पपड़ियाँ निकल आती है दीवारों के मुँह पर
घर में कहीं अनदेखे हुए बुज़ुर्ग की व्यथा-सा
उग आता है पिछली दीवार की पीठ पर
एक बड़ का पौधा
 
धीरे-धीरे फैलता है हर ओर
जिससे अनजान सब लोग
घर की करवाते रहते हैं साफ़-सफ़ाई
दीप जलाते रहते हैं पाठ करवाते रहते हैं
धीरे-धीरे
घर छोड़ देता है प्राण
केवल वो 'बड़' जीवित रहता है

न्होंने कहा कि
उनके अलावा उनके सिवाय
और जो कोई भी हैं यहाँ
वो सब के सब निर्मम हैं निर्दयी हैं, अमानवीय हैं
इसलिए उनके प्रति कोई भी
किसी भी प्रकार का दया भाव रखना
प्रेम मोह वात्सल्य रखना
स्वयं व समाज के साथ द्रोह होगा
ऐसा कहा उन्होंने और ठीक तभी
प्रतिध्वनि में
ऐसा सुना (उन्होंने)
 
मारा दिन
उसकी सोच का एक हाला है
सोचो कितनी पास उसके उजाला है
कि वो दिखता ही नहीं
बहुत रोशनी से भरा वो
तुम ही तो हो
आँख मूँदो
और देखो ज़ेहन की खिड़की पे
एक हल्की गुलाबी रोशनी
नसों में भर के
हाँफती-दौड़ती है
 
दिल बौछार है
रोशनी का आबशार है
ओत-प्रोत हो तुम उससे
 
उजली-उजली धूप-सी
पोशाक पहने तुम हो
बहुत साफ़, बहुत पाक
बहुत नज़दीक बहुत पास
उसके
जो ज़रा-सी मिट्टी खा के
ब्रह्मांड रचा देता है।


■ 
आदित्‍य शर्मा
9419251307
inquireaditya@gmail.com

1 comment:

  1. Very nice...biggest fan of khulte kiwad...Amazing writeup by aditya sharma.. great going

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