तेरह जून 1984 को जम्मू में पैदा हुए आशुतोष पत्रकार हैं। कई समाचार पत्रों में सेवाएं देने के बाद अब स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे हैं। इस साल नेशनल मीडिया फेलोशिप एवार्ड हासिल करने वाले पत्रकार हैं। उर्दू गजलों और
नज्मों को खासतौर पर पसंद करते हैं। गीत लिखना आशुतोष को सबसे ज्यादा पसंद है। सरलता, बहाव, गहराई, रिश्तों के बदलते मायने और भावुकता इनके गीतों की विशेषता है। कई कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाओं को पढ़ चुके हैं। गजल भी कहते हैं। पत्रकारिता के अलावा समाज सेवा में भी रुचि हैं। आशुतोष का एक गीत और एक नज्म पाठकों के लिए...
गीत
जिधर से तुम्हारी खबर कोई आई
उधर ले चला मन मेरा बावरा
चाँद सूरज से होने लगा बेखबर,
ढूँढते- ढूँढते इक तुम्हारा पता…….
मन मेरा बावरा ……
मन मेरा बावरा …….......
कोई आहट नहीं, कोई साया नहीं
कोई मौसम तुम्हे साथ लाया नहीं ….
भूले भटके सही, बस घडी दो घडी
जाने वाले कभी, तू तो आया नहीं…..
नाम ले कर तेरा, हर गली, हर जगह,
दे रहा है सदा …………..
मन मेरा बावरा ……
मन मेरा बावरा ………….
मेरा कोई न था इक तुम्हारे बिना,
मेरा कोई नहीं इक तुम्हारे सिवा ….
अब तुझे भूल कर ज़िन्दगी में भला,
क्या तम्मन्ना करूँ और चाहूँ भी क्या ………
ये तुम्हारा ही था, ये तुम्हारा ही है……..
तुम्हारा रहे गा ……….
मन मेरा बावरा ……
मन मेरा बावरा …….................!!
‘बंजारा
अनजानी सी इन राहों में,
घूम रहा हूँ मैं आवारा....
मत पूछो तुम ठोर-ठिकाना ,
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
हर नगरी में, हर बस्ती में,
अपनी मर्ज़ी से आता हूँ...
जो रस्ता ये मन दिखलाए,
उस रस्ते पर ही जाता हूँ…
अपनी ही धुन में गाता हूँ,
ले कर सांसों का इक-तारा…
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
देश- धर्म के नाम पे इनको,
मैने सब कुछ करते देखा…….
जिंदा रहने की कोशिश में
उनको भी है मरते देखा….....
चलते-चलते इस जीवन में,
जैसे -तैसे वक़्त गुज़ारा .....
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
इस धरती पे हर इक निर्धन,
हर धनवान से वाकिफ हूँ मैं....
इंसानों की इस दुनिया में,
हर भगवान् से वाकिफ हूँ मैं .…
अम्बर भी है मेरा रस्ता ,
वाकिफ़ है ये तारा - तारा .....
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
किसी किसी के आंगन में ही,
देखा है खुशिओं का डेरा..…
बाकी घर -घर में है मातम,
हर चेहरे को दुःख ने घेरा…
देख के उन के बहते आंसू,
रोता है क्यों दिल बेचारा .....
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
अपना सब कुछ बाँट चुका हूँ,
अब खाली है मेरा दामन.. ..
मुड के पीछे मैं न देखूं,
छोड़ दिया जब कोई आँगन...
रोज़ नए इक रस्ते पर मैं,
चुनता जाऊं हर अंगारा ..…
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
जाते - जाते तेरे दर से,
अपना ये मन हुआ पराया.. ..
पीछे - पीछे है मन मेरा
आगे - आगे मेरा साया... …
आज इधर से गुज़रा हूँ तो,
शायद न आऊं दोबारा……..
मेरा क्या मैं हूँ बंजारा …!!
पता-
50, वार्ड नंबर 3, गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल के पास, सुंदरबनी, जम्मू व कश्मीर (185153)
मोबाइल - 0-94-191-83759
ई-मेल- bulawaa@gmail.com
ashutosh ji...aap ko pehli bar padha...bahut sunder our sarthek rachnaein...abhar
ReplyDeletebahut saral bhasha mein prababhshaly...ashutoshji keep it up
ReplyDeleteसंयत स्वर है . यदि आप कवि की कविताओं के साथ उसका समकालीन हिंदी कविता में जहां भी जुड़ाव बैठ रहा है, उसे भी रेखांकित करें तो यह मेहनत और सार्थक होगी. युवा कवियों का भी मार्ग-दर्शन होगा ! बहुत बार केवल अच्छा-अच्छा अथवा मात्र परिचयात्मक आख्यान काफी नहीं होता -मनोज शर्मा
ReplyDeleteAshutosh jee Badhai ! Aapki abhivyakti saral aur manbhaavak hai . Lok ka dhyaan rakhenge to aapke geet adhik lokpriya aur sahityak honge . Haardik shubhkaamnai. Kumar jee sahityak aalekh , paricharcha , sameeksha , goshti report aadi ko bhee sthaan Dein . Varisht kavi aalochko se anugrah Karen . Shuruaat jmu se kr sakte hain.
ReplyDeleteहौसला-अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.........ख़ास तौर पर बडे भाई कुमार कृशन जी का.......... जो समय समय पर पीठ थपथपाते हैं......।
ReplyDeleteAashutosh ji sabhi kritiyan saral aor man ko chhoone bali. Doosari najam ne kafi pravabhit kiya. Sujhab main manoj sir aor choudhary sahab ka samarthan karun ga. Bahut bahut shubhkamnayain . Do char bar aapko suna bhee hai .
ReplyDeleteसबसे पहले बधाई स्वीकार करें /गीत पर तो कुछ कहा नहीं जा सकता हाँ लोक रंग हो तो सार्थकता अधिक होगी/दूसरी कविता जितनी हो सके विस्तृत करिए बोहुत कुछ सामाजिक जुड़ सकता है शेष कुछ कह नहीं सकता अभी से/
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