Tuesday, April 23, 2013

बलवंत ठाकुर







- रियासी के पहाड़ी क्षेत्र में सन १९६० में जन्म
-  स्कूल से ही कला के साथ जुड़ गए थे
- सन १९८३ में नटरंग थिएटर की स्थापना की
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए चार बार स्टेट अकादमी अवार्ड, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1999), संस्कृति अवार्ड (1991), डोगरा रत्न (2005), सर्वश्रेष्ठ निदेशक (दूरदर्शन, 2004), नेशनल सीनयर फेलोशिप (संस्कृति विभाग, 2005), सीनियर फेलोशिप (एचआरडी 1990) आदि
- लंदन, आक्सफोर्ड, डेनमार्क, दुबई, जर्मनी, मास्को, रोम, तुर्की, सिंगापुर, मलेशिया, स्ट्राटफोर्ड, ढाका, जर्मनी समेत विश्व के अधिकांश देशों में प्रस्तुतियां दे चुके हैं। जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी के सचिव के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी अहम पदों पर रहे।
- सन २०१३ में पद्मश्री से सम्मानित









पद्मश्री बलवंत ठाकुर को बीस अप्रैल को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पद्मश्री से सम्मानित किया। जम्मू पहुंचने पर उनके साथ की गई बातचीत के कुछ मुख्य अंश...






प्र. अपने सफर को कैसे देखते हैं
- आज से करीब चार दशक  पहले जब मैंने थिएटर में कॅरियर बनाने का फैसला किया तो हर किसा ने मुझको समझाया। सभी का यही कहना था कि जम्मू जैसे शहर में थिएटर में कॅरयिर बनाने के  बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। कुछ का कहना था कि यह एक प्रकार से आत्महत्या है। कारण भी साफ था। मैं ला का छात्र रह चुका हूं। उसके बाद मास कम्युनिकेशन किया। लेकिन समय के साथ साथ सब कुछ बदलता गया। लोगों की सोच बदली और लोग मेरे साथ आए। दूसरे शब्दों में कहें तो मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग मिलते गए कारवां बनता गया। अब पद्मश्री मिलने के बाद सही मायनों में मेरे सफर की शुरूआत हुई है। अब लगता है कि मेरा वह फैसला ठीक था। यह सम्मान उनका है जिन्होंने मुझे हर हाल में मेरा समर्थन किया है।




प्र. रियासत खासकर जम्मू जैसे शहर में क्या चुनौतियां हैं
- अगर जम्मू कश्मीर की बात करें तो हमारी सरकार सरकार के लिए संस्कृति प्राथमिकता में नहीं है। रियासत कलाकारों, साहित्यकारों या अन्य फनकारों के लिए क्या कर रही है? अगर बाहरी राज्यों के साथ तुलना करें तो रियासत का कलाकार या साहित्यकार अपने दम पर कला को जिंदा रखने में जुटा हुआ है। इसके अलावा आजकल फटाफट और पैसे का युग है। अगर कोई कलाकार टीवी या फिल्मों में काम करता है तो उसको कितना पैसा मिलता है यह सभी जानते हैं। लेकिन थिएटर में ऐसा नहीं है। थिएटर के साथ वही लोग गंभीरता से जुटते हैं जो वास्तव में कला को बचाना चाहते हैं। सरकारें कला को तैयार तो नहीं कर सकतीं, लेकिन कलाकारों को प्रोत्साहन जरूर दे सकती हैं।








प्र. आतंक से ग्रस्त जम्मू कश्मीर में थिएटर का क्या भविष्य है
- आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद में ही कला और संस्कृति की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जम्मू-कश्मीर जैसी रियासत को अगर किसी ने बांध कर रखा है तो वह कला और संस्कृति ही है। इसके अलावा पर्यटन में भी इसकी अपार संभावनाएं हैं। क‌िसी भी इलाके में पर्यटक केवल वादियां या झरने देखने नहीं जाना चाहते हैं। वह वहां की कला, संस्कृति और और अन्य पहलुओं से भी रूबरू होना चाहते हैं।


संपर्क
बलवंत ठाकुर
नटरंग, तांगे वाली गली
पैलेस रोड
जम्मू
जम्मू व कश्मीर 180 001.
Ph. / Fax : 91-191-2578337

1 comment:

  1. Balwant Thakur jee aapko haardik badhai. Kumar jee kya samay abhaav tha? Baat lambee hotee to sarokaar pata chalte.khair phir kabhee.

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